कई सालों से मीडिया में यह परंपरा सी बन गई है कि जैसे ही किसी साल का अंत नजदीक आए, उस साल में घटी घटनाओं को याद किया जाए और आने वाले साल के संकल्पों का जिक्र हो। मैं उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज मां नर्मदा की बात करना चाहता हूं। नर्मदा की बात इसलिए नहीं कि मध्यप्रदेश की अधिकांश आबादी का जीवन इस नदी से जुड़ा है, बल्कि इसलिए कि जो साल बीत रहा है, उस साल में नर्मदा मैया ‘पुण्यसलिला’ के साथ ही ‘सत्तासलिला’ का रूप भी पा गईं।
जिस तरह नदी सतत प्रवहमान रहती है, उसी तरह नर्मदा से जुड़ी खबरें भी मध्यप्रदेश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में पूरे साल बहती रहीं। नदी की ही तरह यह प्रवाह पिछले यानी साल 2016 से बहता हुआ साल 2017 में पहुंचा था। इस साल का सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम रहा मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित ‘नमामि देवि नर्मदे नर्मदा सेवा यात्रा’ जो 11 दिसंबर 2016 को नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से प्रारंभ हुई थी।
इस यात्रा का ‘घोषित’ उद्देश्य नर्मदा को सदानीरा और प्रदूषण मुक्त बनाना था और इसमें मुख्य मंत्री शिवराजसिंह चौहान ने सपत्नीक भागीदारी की। यह यात्रा नर्मदा के दक्षिणी तट पर 1831 किलोमीटर एवं उत्तरी तट पर 1513 किलोमीटर की रही। दक्षिणी तट पर 548 ग्रामों/कस्बों एवं उत्तरी तट पर 556 ग्रामों/कस्बों यानी कुल 1104 ग्रामों/कस्बों से होकर गुजरी इस यात्रा ने कुल 3344 किलोमीटर का सफर तय किया। 148 दिन चली यात्रा का समापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 मई 2017 को अमरंकटक में किया।
इसी साल ‘दूसरी नर्मदा यात्रा’ प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजयसिंह ने दशहरे के दिन 30 सितंबर 2017 को शुरू की जो अभी जारी है। दिग्विजयसिंह के साथ उनकी पत्नी अमृता राय सिंह भी चल रही हैं। मीडिया में इस यात्रा को भले ही राजनीतिक एंगल से देखा जा रहा हो, लेकिन खुद दिग्विजयसिंह का कहना है कि यह पूरी तरह आध्यात्मिक यात्रा है और उन्होंने पार्टी से बाकायदा इसके लिए छुट्टी ली है।
दिलचस्प बात यह है कि शिवराजसिंह की नर्मदा यात्रा पिछले साल शुरू होकर इस साल समाप्त हुई थी और दिग्विजयसिंह की यात्रा इस साल शुरू होकर अगले साल यानी 2018 में समाप्त होगी, जो मध्यप्रदेश में चुनाव का वर्ष भी है। इन यात्राओं के घोषित, सामाजिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों के बावजूद जनमानस में धारणा यह बनी है कि अचानक उमड़े इस नर्मदा प्रेम के पीछे ’अल्टीमेट गोल’ राजनीति ही है।
एक मुख्य मंत्री और एक पूर्व मुख्य मंत्री की बहुचर्चित नर्मदा यात्राओं से जुड़े इन प्रसंगों की याद आज इसलिए भी आई क्योंकि हाल ही में मुझे नर्मदा से जुड़े एक कार्यक्रम का हिस्सा बनने का मौका मिला। शुक्रवार को जिस कटनी पुस्तक मेले का मैंने यहां जिक्र किया था, उसमें मुझे नर्मदा के अनन्य साधक अमृतलाल वेगड़ जी की नर्मदा परकम्मा पर लिखी तीन पुस्तकों पर वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया गया था। मैं इसे अपना सौभाग्य ही कहूंगा कि पुस्तक मेले के बहाने मुझे वेगड़ जी की इस ‘नर्मदात्रयी’ को पढ़ने और उसके बहाने नर्मदा को अलग ही नजरिये से देखने का अवसर प्राप्त हुआ।
मैं कह सकता हूं कि आपको यदि नर्मदा के सौंदर्य से लेकर उसके साक्षात स्वरूप का दर्शन करना हो, तो आप राजनीतिक व्यक्तित्वों द्वारा की जाने वाली नर्मदा यात्राओं को परे रखकर वेगड़ जी की इन तीनों पुस्तकों ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, ‘अमृतस्य नर्मदा’ और ‘तीरे तीरे नर्मदा’ को एक बार जरूर पढ़ें। उन्होंने यह जो धरोहर हमें सौंपी है, वह अनंत काल तक नर्मदा के ऐसे रूपों से हमारा साक्षात्कार कराती रहेगी जो शायद समय की धारा में अक्षुण्ण न रह सकें। आने वाले सालों में नर्मदा वैसी न रहे, लेकिन ये किताबें हमें याद दिलाती रहेंगी कि नर्मदा ऐसी भी थी…
राजनेताओं के ‘नर्मदाष्टक’ से अलग इन पुस्तकों में वस्तुत: ‘अमृत’ ने ‘जल’ का स्तुतिगान किया है। यह यात्रा वृतांत नहीं बल्कि अमृत के मुंह से जल के माहात्म्य का वर्णन है। अमृत के बारे में कहा जाता है कि मनुष्य को जिलाने या पुनर्जीवित करने के लिए उसकी चंद बूंदें ही पर्याप्त होती हैं। लेकिन जल का महत्व तो जीवन के लिए, जीवन के साथ, जीवनपर्यंत है। अमृत का उपयोग प्यास बुझाने में नहीं होता, लेकिन जल हमें अपनी प्यास बुझाने के लिए चाहिए।
वेगड़जी की ये तीनों कृतियां, नदी की यात्रा के बहाने, हमारी सभ्यता, संस्कृति, समाज और हमारे अस्तित्व को बनाने व संचालित करने वाले तत्वों के बारे में जानकारी की प्यास बुझाती हैं। यह यात्रा वृत्तांत हमें उस उत्तर को तलाशने में मदद देता है कि कैसे एक नदी अपने अस्तित्व के साथ साथ पूरी सभ्यता का विकास करती है और कैसे एक दिन वही सभ्यता अपनी इस जननी के विनाश का कारण बन जाती है।
वेगड़ जी ने 50 साल की उम्र में नर्मदा परकम्मा शुरू की और 82 वर्ष की आयु में उनकी यात्रा का अंतिम पड़ाव आया। उन्होंने बिलकुल ठीक लिखा है कि ‘’मेरी इस यात्रा के सौ साल बाद तो क्या, पचीस साल बाद भी कोई इसकी पुनरावृत्ति न कर सकेगा। पचीस साल में नर्मदा पर कई बांध बन जाएंगे और इसका सैकड़ों मील लंबा तट जलमग्न हो जाएगा। न वे गांव रहेंगे, न पगडंडियां। पिछले 25 हजार वर्षों में नर्मदा तट का भूगोल जितना नहीं बदला है, उतना आने वाले 25 वर्षों में बदल जाएगा।‘’
नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है। अमृतलाल वेगड़, अपनी यात्रा पुस्तकों के जरिए, उस जीवन रेखा का फलित बांचते दिखाई देते हैं। नदी सिर्फ जल का प्रवाह मात्र नहीं होती। उसके साथ उसके आसपास बसने वाली और उस पर निर्भर रहने वाली पूरी मानव सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक संरचना का इतिहास भी प्रवहमान होता है। उसके पानी में हमारी सभ्यता का चेहरा प्रतिबिंबित होता है। इस मायने में नदी को पढ़ना अपने आपको पढ़ना है।
बीत रहे साल को यदि आप शिवराज और दिग्विजय की नर्मदा यात्राओं के बहाने याद रखना चाहें तो आपकी मर्जी लेकिन मैं गारंटी से कह सकता हूं कि नर्मदा को सही मायनों में याद रखने का उपक्रम वेगड़ जी जैसे नर्मदा के दीवानों को पढ़ना है। कोशिश कीजिए अगले साल के लिए यह संकल्प लेने की…