प्रकाश भटनागर
सचमुच यह लगने लगा है कि सचिन पायलट की हालत भी रात-दिन मुख्यमंत्री पद का सपना देखने वाले जैसी हो गयी है। वैसे पायलट के संदर्भ में यह आकाश-कुसुम जैसी हास्यास्पद बात नहीं है। राजस्थान के बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उनका बड़ा योगदान रहा।
अगर मुझे ठीक याद है तो उनका नाम कमलाकांत तिवारी था। कांग्रेस में आगे बढ़ने के लिए गांधी-नेहरू परिवार की वंदना वाली अघोषित किन्तु अनिवार्य योग्यता में काफी आगे थे। इसी लिहाज से राजीव गांधी के करीबी भी हो गए थे। कांग्रेस की केन्द्र सरकार में मंत्री भी रहे। वह राष्ट्रीय फलक पर क्षेत्रीय दलों के उभार का शुरूआती समय था।
आंध्र प्रदेश में अत्यंत लोकप्रिय एनटी रामाराव तेजी से आगे बढ़ रहे थे। तब एक पत्रिका से बातचीत में तिवारी का रामाराव पर गुस्सा फूट पड़ा। बोले, ‘एनटी रामाराव को रात-दिन प्रधानमंत्री का पद सपने में दिखता है। वह रात में साड़ी पहनकर, औरत की तरह पूरा श्रृंगार कर सोते हैं, ताकि इस तंत्र क्रिया से उन्हें प्रधानमंत्री का पद मिल जाए।’
मुझे नहीं पता कि तिवारी के इस दावे में कितना सच था, लेकिन सचमुच यह लगने लगा है कि सचिन पायलट की हालत भी रात-दिन मुख्यमंत्री पद का सपना देखे वाले जैसी हो गयी है। वैसे राजस्थान के बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उनका बड़ा योगदान रहा। केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने राहुल गांधी के विश्वसनीय ऊर्जावान युवा चेहरे के रूप में संतोषजनक काम किए। राहुल के निर्देश पर ही मुख्यमंत्री पद के लिए खुद को पीछे कर एक समय संतोष भी कर लिया था।
लेकिन अपने घोर राजनीतिक शत्रु अशोक गेहलोत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गयी प्रशंसा को लेकर पायलट अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं को जिस तरह ‘टेक ऑफ’ वाली शक्ल देने की कोशिश कर रहे हैं, वह उनके धैर्य के दूसरी बार टूटने का साफ संकेत दे रही है। पायलट ने कहा कि इससे पहले मोदी ने गुलाम नबी आजाद की भी ऐसी ही प्रशंसा की थी और सबने देखा कि उसके बाद फिर क्या हुआ। क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि सचिन सियासत की पिच पर किसी भी समय गेहलोत के हिट विकेट हो जाने के सपने देखने लगे हैं?
गहलोत और आजाद की स्थिति के बीच जमीन-आसमान का अंतर है। आजाद कांग्रेस में लगातार अपनी न सुने जाने के चलते इस दल से अलग हुए, जबकि गेहलोत का मामला यह है कि वह जो कह रहे हैं, पार्टी आलाकमान को चुपचाप उसे सुनना पड़ रहा है। जो लोग कहते थे कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो जाने के बाद गेहलोत की कुर्सी जाना तय है, वे अपनी कुर्सी पर अपनी तशरीफ धंसाए मन मसोस कर यह देख रहे हैं कि राजस्थान में गेहलोत के राज का स्थान अब तक पूरी तरह निरापद ही है।
वैसे तो यह कांग्रेस है और इसमें कुछ भी हो सकता है। लेकिन यदि इस दल में जरा भी समझ शेष है तो फिर उम्मीद की जा सकती है कि पंजाब से सबक लेकर वह राजस्थान में चुनाव से बमुश्किल तेरह महीने पहले कोई बदलाव करने का जोखिम नहीं लेगा। दरअसल मुख्यमंत्री पद को लेकर बीते करीब साढ़े तीन साल से मृगमरीचिका के शिकार पायलट अब छटपटाहट से भर गए हैं। कुछ समय पहले की उनकी बगावत की हवा निकल गयी और हाल ही में गेहलोत की बगावत ने पार्टी आलाकमान की हवा बंद कर दी। विधायक दल का बहुमत गेहलोत के लिए कट्टरता की हद तक लगातार समर्थन जता रहा है और पायलट खेमा इस चक्रव्यूह को भेद पाने में असफल ही बना हुआ है।
ताजा बयान के बाद लगने लगा है कि पायलट की स्थिति भी एनटी रामाराव वाली होती जा रही है। कल्पना की जा सकती है कि एकांत में वह आईने के सामने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने लगे होंगे। उनका मुख्यमंत्री बन पाना कितना संभव है, यह तो पार्टी के शीर्ष को ही पता है, लेकिन यह सबको पता है कि पायलट अपनी खीझ को छिपा नहीं पा रहे हैं। गेहलोत भाजपा में या कांग्रेस से अलग जाकर इस उम्र में सियासी आत्महत्या नहीं करेंगे, यह तय है। रामाराव की कथित साड़ी और पायलट के कुर्ते, दोनों में निराशा की सिलवटों के बीच क्या कोई समानता है? अगर खोज लिया तो उत्तर रोचक होगा।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)
(मध्यमत)
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