‘एकीकरण’ तो ठीक है पर इसकी कीमत क्‍या होगी?

देश में इन दिनों एनआरसी (पूरा नाम नैशनल सिटिजन रजिस्‍टर ऑफ इंडिया) यानी भारतीय राष्‍ट्रीय नागरिक रजिस्‍टर की बहुत चर्चा है। असम में हुई एनआरसी गणना के बाद वहां बसे लोगों की नागरिकता को लेकर कई विसंगतियां सामने आई हैं और उसके चलते पूरी प्रक्रिया पर भारी विवाद हो रहा है। इस बीच देश के भाजपाशासित कुछ अन्‍य राज्‍यों की ओर से कहा जा रहा है कि वे भी अपने यहां एनआरसी लागू करने पर विचार कर रहे हैं।

दो दिन पहले एनआरसी मसले को लेकर दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्‍ली भाजपा अध्‍यक्ष मनोज तिवारी आपस में भिड़ गए। मनोज तिवारी कई बार असम की तरह राष्ट्रीय राजधानी में भी एनआरसी लागू करने की मांग कर चुके हैं। उन्‍होंने इस सबंध में गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी और कहा था कि राजधानी में बहुत से घुसपैठिए हैं, जिन्हें बाहर किया जाना चाहिए।

25 सितंबर को इस मसले पर मीडिया ने जब अरविंद केजरीवाल से मनोज तिवारी की मुहिम को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘’अगर दिल्ली में एनआरसी लागू हुआ तो सबसे पहले मनोज तिवारी को दिल्ली छोड़नी पड़ेगी।’’ केजरीवाल के इस बयान पर जवाबी हमला करते हुए मनोज तिवारी ने कहा- ‘’क्या वह (केजरीवाल) यह कहना चाहते हैं कि पूर्वांचल के लोग घुसपैठिए हैं? क्या दूसरे राज्य के लोगों को सीएम विदेशी मानते हैं? मुझे लगता है कि उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। एक आईआरएस अफसर को कैसे नहीं पता कि एनआरसी क्या है?’’

दरअसल विविधता या अनेकता में एकता की पहचान रखने वाले भारत में इन दिनों एक नए किस्‍म के ‘एकीकरण’ की मुहिम चलाई जा रही है। इसके तहत बहुत सारी योजनाओं और दस्‍तावेजों को एक कर उन्‍हें बहुआयामी या मल्‍टीपरपज बनाया जा रहा है। सरकार का कहना है कि ऐसा करने से लोगों को अलग-अलग जगहों पर जाने और अलग-अलग दस्‍तावेज लेकर चलने की मुश्किलों से निजात मिलेगी। इस ‘एकीकरण अभियान’ को लगभग हर क्षेत्र में आजमाया जा रहा है।

एक जुलाई 2017 की मध्‍यरात्रि को संसद के दोनों सदनों के संयुक्‍त सत्र के दौरान जब देश में जीएसटी लागू करने का ऐलान हुआ था, तब यही कहा गया था कि यह भारत में ‘एक देश, एक टैक्‍स’ प्रणाली की शुरुआत है। अब लोगों को अलग अलग तरह के टैक्‍स भरने से मुक्ति मिलेगी और टैक्‍स चोरी भी रुकेगी। यह बात अलग है कि दो साल बाद भी जीएसटी को लेकर उलझनें बरकरार हैं।

उसके बाद ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना का विचार बना और 9 अगस्‍त 2019 को खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस योजना को दो क्लस्टर राज्यों आंध्र प्रदेश-तेलंगाना और महाराष्ट्र-गुजरात में शुरू किया। इसके तहत आंध्र प्रदेश के निवासी तेलंगाना में और तेलंगाना के निवासी आंध्र प्रदेश में किसी भी राशन की दुकान से अनाज ले सकते हैं। इसी तरह की व्‍यवस्‍था गुजरात और महाराष्ट्र के निवासियों के लिए भी होगी।

केंद्र सरकार का विचार है कि जून 2020 तक इस योजना को देश भर में लागू कर दिया जाए। ऐसा होने पर योजना के लाभार्थी देश में कहीं भी किसी भी राशन की दुकान से अपने हिस्से का अनाज ले सकेंगे। जून 2019 में हुई एक बैठक में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को योजना लागू करने के लिए एक साल का समय दिया था। सरकार का विचार सभी राशन कार्डों को आधार कार्ड से जोड़ने और पाइंट ऑफ सेल मशीनों की मदद से राशन वितरण करने का है।

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 मार्च 2019 को अहमदाबाद से वित्‍तीय लेन देन को लेकर ‘एक देश, एक कार्ड’ योजना की शुरुआत कर चुके थे। उस समय बताया गया था कि इस स्‍मार्ट कार्ड में डेबिट और क्रेडिट कार्ड की सभी सुविधाएं होंगी। नेशनल मोबिलिटी वाले इस कार्ड से पैसे निकालने के अलावा शॉपिंग भी हो सकेगी और किसी भी मेट्रो या परिवहन के अन्य साधनों के लिए भी इसे इस्‍तेमाल किया जा सकेगा। जल्द ही यह सुविधा पूरे देश में उपलब्‍ध कराई जाएगी।

और इसी कड़ी में अब गृह मंत्री अमित शाह ने एक और नए कार्ड की योजना का प्रस्‍ताव रखते हुए 24 सितंबर को बताया है कि सरकार एक ऐसे मल्‍टीपरपज कार्ड पर काम कर रही है जिसमें आधार, पासपोर्ट, बैंक खाता, लाइसेंस, वोटर कार्ड जैसी तमाम बातें शामिल हों। दिल्ली में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के नए दफ्तर का शिलान्यास करते हुए शाह ने कहा कि ‘’आखिर इन सभी बातों के लिए एक ही कार्ड क्यों नहीं हो सकता। ऐसा सिस्टम होना चाहिए कि सभी डेटा एक ही कार्ड में रखा जा सके। ऐसा संभव है।‘’

इसके साथ ही यह भी बताया गया कि सरकार 2021 की जनगणना को डिजिटल बनाने पर काम कर रही है और यह गणना मोबाइल एप के जरिये होगी ताकि दर्ज किए जाने वाले आंकड़ों का बारीकी से विश्‍लेषण किया जा सके और उसके आधार पर योजनाएं बनाने और उन्‍हें प्रभावी तरीके से जमीन पर उतारने का काम हो।

यदि आप सतही तौर पर देखें तो पहली नजर में ये तमाम प्रयास बहुत उपयोगी और जरूरी लगते हैं। कौन नहीं चाहेगा कि उसे अलग अलग कार्ड या दस्‍तावेज रखने के झंझट से मुक्ति मिले। काम में उलझनें जितनी कम हों और समय और धन की जितनी बचत हो उतना ही अच्‍छा है। लेकिन अभी तक का अनुभव यह रहा है कि ऐसे तमाम प्रयास आमतौर पर या तो अधकचरे तरीके से लागू किए जाते हैं या फिर उनसे होने वाली लाभ-हानि अथवा दूरगामी परिणामों का ठीक से अध्‍ययन नहीं किया जाता।

सरकार कोई भी प्रयास करे, लेकिन उसे अमली जामा पहनाने से पहले उसके सारे पहलुओं पर विचार हो जाना चाहिए। दूसरी बात ऐसे प्रयासों की विश्‍वसनीयता और उससे जुड़े जोखिम की है। आधार कार्ड जैसी योजना की विश्‍वसनीयता को लेकर आज भी सवाल उठ रहे हैं। इन दिनों इंडिया को ‘डिजिटल’ बनाने की बात बहुत जोरशोर से हो रही है लेकिन इसके पीछे छिपा एजेंडा हमेशा संदेह का कारण बना रहता है। जैसे सरकार ने पहले तो डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दिया और बाद में पता चला कि ऐसे हर लेनदेन पर लोगों को कुछ न कुछ टैक्‍स देना पड़ता है। यानी यह योजना के नाम पर लोगों की जेब काटने जैसा है। सरकार को उपयोगिता या सुविधा का मुलम्‍मा चढ़ाकर पेश की जाने वाली ऐसी हर योजना के बारे में लोगों को खुलकर यह भी बताना चाहिए कि आखिर इसकी असली कीमत उन्‍हें क्‍या चुकानी होगी?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here