अपने सवालों से सामने वालों के छक्के छुड़ा देने वाले टीवी के मशहूर पत्रकार रवीश कुमार की एक कमजोरी सामने आई है। रवीश कुमार ने खुद इस कमजोरी का खुलासा किया है और वह भी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर। इसमें भी दिलचस्प बात यह है कि रवीश ने अपनी कमजोरी को उजागर करने के लिए एक फिल्म का सहारा लिया है।
हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘निल बट्टे सन्नाटा’ को लेकर रवीश कुमार ने देश सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को खुला खत लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के मन से यदि गणित का भूत हंसते खेलते उतारना है तो आप मुख्यमंत्री गण अपने शिक्षा मंत्रियों, शिक्षा सचिवों और शिक्षा अधिकारियों के साथ इस फिल्म को जरूर देखें।
रवीश ने कहा है कि गणित गरीब को और गरीब बना देता है। उसका सपना तोड़ देता है। गणित ने न जाने कितने छात्र छात्राओं को मानसिक और सामाजिक रूप से कुंठित किया है। उन्हें अपराधी बना दिया है। मैं खुद गणित में काफी कमजोर था, इसलिए इस विषय की मार को नस नस से जानता हूं। भारत में इसके डर का कारोबार चल रहा है। मैं नहीं कहता कि आप सभी लोग इसके बारे में नहीं जानते लेकिन आपका ध्यान दिलाने के लिए एक पत्र तो लिख ही सकता हूं।
मैंने एक फिल्म देखी है। ‘निल बट्टे सन्नाटा’ यह फिल्म सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के जीवन पर गणित के असर को समझने का प्रयास करती है। उस डर से सामना कराती है जिसके कारण बच्चे अगली बेंच से पीछे की बेंच पर बैठने लगते हैं। फेल होने लगते हैं और उनका बचपन नई नई किस्म की आजादी या तरह तरह के भटकावों की ओर जाने लगता है। फिल्म में मैंने गणित के डर से बगावत का एक सुंदर चेहरा भी देखा। गणित ने फेल होने वाले छात्रों के बीच दोस्ती और मौज मस्ती को उभरने का मौका भी दिया। मगर वो मौका उन्हें आगे बड़े सपने देखने से रोक भी देता है।
आज कई माताएं असहाय देख रही हैं कि कैसे गणित और अंग्रेजी के भय से उनके बच्चे पढ़ाई से दूर हो रहे हैं और फेल हो रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों के बच्चे अरबों रुपए ट्यूशन और कोचिंग में दे रहे हैं। आपके राज्यों में खराब तरीके से गणित पढ़ाने वाले मास्टरों और उनके शिकार बच्चों का ईमानदार सर्वे करा लीजिए तो पता चल जाएगा कि वर्षों से इस विषय के नाम पर कोमल मन को किस तरह से यातना दी जा रही है। कई राज्यों में दसवीं की परीक्षा में लाखों की संख्या में बच्चे फेल हो रहे हैं। इससे कानून व्यवस्था से लेकर उत्पादकता तक पर असर पड़ता होगा ।
‘निल बट्टे सन्नाटा’ फिल्म आत्मविश्वास पैदा करती है कि गणित पर विजय प्राप्त की जा सकती है। बच्चे न सिर्फ गणित को जीत सकते हैं बल्कि अपनी गरीबी से निकलने का सपना भी देख सकते हैं।
फिल्म में दिखाए गए तीन बच्चों का जिक्र करते हुए रवीश लिखते हैं कि ये बेहद प्यारे बच्चे हैं और बिल्कुल फेल होने वाले बच्चे की तरह। मैं खुद इन तीनों में से एक रहा हूं। गणित का खौफ आज भी इतना गहरा है कि पत्रकारिता में आने के बाद एक डाक्यूमेंट्री ‘क्या आपको मैथ्स से डर लगता है’ बनाई थी। प्राइम टाइम का एक शो किया था। हर समय सोचता हूं कि कैसे इस डर के बारे में लोगों से बात की जाए। एक योजना भी है कि गणित को लेकर सरकारी स्कूलों के लिए कुछ बनाऊं। ज्यादातर गणित मास्टर अहंकारी जमींदार होते हैं जिनका काम गणित के नाम पर बच्चों का आत्मविश्वास तोड़ना भर होता है।
आप इस खूबसूरत फिल्म को सभी सरकारी स्कूलों के बच्चों को दिखाने का इंतजाम कीजिए। प्रिसिंपलों को लिखिए कि वे इस फिल्म को दिखाएं। संस्थाओं से अपील कीजिए कि वे किसी एक सरकारी स्कूल के बच्चों को प्रायोजित करें ताकि वे इस फिल्म को सिनेमा हॉल में देख सकें तभी असर होगा। इस फिल्म में न तो गणित के भय को बढ़ा चढ़ाकर बताया गया है न ही भय पर जीत की अतिरंजना है। फिल्म धीरे धीरे बताती है कि क्या करना है। रुला भी देती है और हंसा भी देती है। कोई नैतिक शिक्षा नहीं देती बल्कि कहती है चलो गणित के संग चलते हैं।