यानी काशी में अब बिना ‘आधार’ चिता भी नहीं जलेगी!

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अजय बोकिल

अगर आप के पास आधार कार्ड नहीं है तो आपको मोक्ष मिलना भी दूभर है, भले ही अंतिम संस्कार काशी में ही क्यों न हो। कारण वहां स्थानीय प्रशासन ने अंत्येष्टि के लिए भी आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया है। यानी स्वर्ग (या नर्क?) भी जाना हो तो आधार कार्ड नंबर देना जरूरी है।

मोक्षदायिनी काशी के बारे में मान्यता है कि यहां मृत्यु पाने वाले को डायरेक्ट स्वर्ग में वास मिलता है। इसलिए दूर-दूर से हिंदू यहां अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। मानकर कि महाप्रयाण में तो कम से कम कोई सरकारी अड़चन नहीं आएगी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। यहां पर अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन ने आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया है।

यह व्यवस्था वाराणसी के प्रख्यात मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर शुरू की गई है। दाह संस्कार के लिए इन घाटों की महिमा अपार है। बताया जाता है कि इन घाटों का रखरखाव एनडीआरएफ की मदद से किया जा रहा है। नई व्यवस्था के तहत शव वाहिनी की सुविधा उसे ही मिलेगी, जिसके पास मृतक से संबंधित पहचान पत्र मौजूद होगा।

हालांकि ऐसी व्यवस्था पहली बार किसी शहर में लागू नहीं की गई है, इससे पहले ‍हरियाणा के फरीदाबाद में इसे लागू किया जा चुका है। लेकिन काशी में स्वर्ग जाने की आकांक्षा लिए आने वाले मुर्दों के लिए यह नया अनुभव है। यहां लाए जाने वाले मृतकों में कई ऐसे भी होते हैं, जिनकी मृत्यु विवादास्पद और सामाजिक दृष्टि से हेय समझी जाती है, जैसे कि हत्या, दहेज हत्या आदि। ऐसे ही एक मामले में जब शव वाहिनी के संचालकों ने मृतक का आईडी मांगा तो बवाल मच गया कि क्या भगवान के घर जाने के लिए भी ‘आधार’ लगेगा?

यह स्थिति तब है, जब कहा जा रहा है कि हर काम के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है। लेकिन सरकार अब जन्म से लेकर मृत्यु पंजीयन तक आधार कार्ड अनिवार्य बना चुकी है। ‘आधार’ आपके जीवन का आधार बन चुका है। ‘आधार’ वास्तव में 12 अंकों का समुच्चय है, जिसमें व्यक्ति के रूप में आपकी पहचान समाहित होती है। यह एक तरह से आधुनिक जन्म कुंडली है, जिसे आजकल यह इनकम टैक्स फाइलिंग से लेकर सिम कार्ड लेने तक के लिए अनिवार्य किया जा चुका है।

इसीके चलते सुप्रीम कोर्ट को सरकार को कहना पड़ा था कि आधार हर मर्ज की दवा नहीं है। आधार कार्ड भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूएआईडीए) जारी करता है। अब तक देश भर में 117 करोड़ से अधिक आधार कार्ड जारी किए जा चुके हैं। इनमें कई फर्जी भी हैं। पिछले साल ही ऐसे 84 लाख कार्ड रद्द किए गए। ‘आधार’ से सरकार हर सुविधा लिंक कराना चाहती है। क्योंकि यही वह पहचान पत्र है, जिसके जरिए आपको कहीं भी ट्रेस किया जा सकता है। हालांकि यह पूरी तरह सु‍रक्षित नहीं है।

काशी की यह खबर भी तब आई कि जब यूआईडीआईए ने माना कि आधार कार्ड पूरी तरह सुरक्षित नहीं है और उसकी जगह अब वर्च्युअल आईडी जारी किए जा रहे हैं। दरअसल वर्च्युअल आईडी 12 की जगह 16 नंबरों वाला पहचान पत्र है, जिसमें आधार की चुनिंदा जानकारियां होंगी। आप पूरी डिटेल देने से बच जाएंगे। यह वर्च्युअल आईडी भी इसी महीने जारी हो रहे हैं।

पर यहां मुद्दा मोक्ष के लिए भी आधार कार्ड के साक्ष्य का है। यह ठीक है कि मृतक की सही पहचान होनी चाहिए, लेकिन मामला केवल तकनीकी नहीं है। चूंकि हिंदुओं में काशी में अंतिम संस्कार का विशेष महत्व है, हर हिंदू की दिली तमन्ना होती है कि वह अंतिम सांस काशी में ही ले। यह संभव न हो तो कम से कम उसका दाह संस्कार काशी में हो। इस मामले में कोई रोक टोक नहीं थी।

लेकिन अब यह भी आसान नहीं रहा। अगर मुर्दे के पास ‘आधार’ नहीं है तो उसका मरना भी बेकार होगा। हो सकता है कि उसे कहीं और अंत्येष्टि के लिए ले जाना पड़े। क्योंकि अभी ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि स्वर्ग (या नर्क का भी!) द्वार बगैर आधार कार्ड के नहीं खुल सकता।

इसी के साथ मन में कुछ और सवाल भी उठ सकते हैं। मसलन जब इहलोक में आधार कम्पलसरी हो गया है तो क्या परलोक में भी इसकी कोई क्रॉस चैकिंग होगी? यहां जारी कार्ड वहां भी चलेंगे? चलेंगे तो उन्हें कौन चेक करेगा? क्या यहां की आईडी पर वहा जन्नत में सीट बुक हो सकेगी? क्या अब वहां भी कोई नया कानून बनेगा कि आधार कन्फर्म होने के बाद ही यमराज के दूत अपनी ड्यूटी शुरू करेंगे? क्या हर आत्मा अपने साथ ‘आधार’ लेकर चलेगी या हर रूह को उसकी 12 नंबर वाली आईडी से ही आईडेंटीफाई किया जाएगा और उसी के मुताबिक स्वर्ग या नर्क का अलॉटमेंट होगा?

यह भी संभव है कि ‘आधार’ की अनिवार्यता के मद्देनजर परलोक में भी यूएआईडीआईए की ब्रांच खुल जाए। क्योंकि अभी तक देवताओं में ‘आधार’ का चलन नहीं है। वे बिना किसी पहचान पत्र के ही गुणात्मक आधार पर अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। लेकिन ‘आधार’ के चलते उनका फिजीकल वेरिफिकेशन भी जरूरी हो जाएगा।

फिलहाल अंतिम संस्कार के लिए ‘आधार’ हिंदुओं के श्मशान घाट के लिए लागू किया गया है, कल को यह कब्रिस्तानों के लिए भी लागू हो सकता है। तब फरिश्तों को मरने वाले का आईडी चेक करना होगा। कयामत के दिन वो पाप पुण्य का हिसाब पूछने से पहले आधार नंबर पूछ सकते हैं। ऐसा हुआ तो यह देश में ‘साम्प्रदायिक एकीकरण’ की दिशा में बड़ा कदम होगा। क्‍योंकि हर धार्मिक विश्वास की धार, ‘आधार’ पर आकर खत्म होगी। खुद इंसान भी ‘आधार’ में तब्दील हो जाएगा।

(सुबह सवेरे से साभार)

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