एक अच्‍छी कविता ‘कसम से’

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कसम से
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बुरी कोढ़ में खाज कसम से
जैसे जाकिट राज कसम से
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बात-बात में लुट जाती है
राजनीति में लाज,कसम से
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कुर्सी की बीमारी घातक
इसका नहीं इलाज,कसम से
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काट रहा है कोई निर्मम
अपनी,सबकी प्याज कसम से
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अगर न बदली हवा दुबारा
छिन जाएगा ताज,कसम से
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अंजामों की फ़िक्र न कीजै
करिये तो आगाज,कसम से
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हो महान डंका वादक तुम
क्यों न करें हम नाज,कसम से
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लोकतंत्र का असली वारिस
होगा टल्लेबाज कसम से
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@ राकेश अचल की फेसबुुुक वाॅॅल से साभार

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