नयी दिल्ली, मई 2016/ मोदी सरकार के, 48 साल पुराने शत्रु संपत्ति कानून को संशोधित करने के प्रयास को राज्यसभा में मंजूरी मिलने के आसार नहीं हैं क्योंकि इस कदम का विरोध कर रहे चार राजनीतिक दलों का कहना है कि मूल कानून संतुलित था और इसमें किए जा रहे बदलाव प्राकृतिक न्याय के आधारभूत सिद्धांत का उल्लंघन है।
कांग्रेस, जदयू, भाकपा और समाजवादी पार्टी का कहना है कि प्रस्तावित परिवर्तन से लाखों भारतीय नागरिकों को एक तरह से सजा मिलेगी और किसी शत्रु सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। चार राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों जदयू के केसी त्यागी, कांग्रेस के पी एल पुनिया, के. रहमान खान और हुसैन दलवई,भाकपा के डी राजा और सपा के जावेद अली खान ने शत्रु संपत्ति कानून 1968 में संशोधनों पर प्रवर समिति में अपनी असहमति की टिप्पणियां दी हैं। यह रिपोर्ट शुक्रवार को राज्यसभा में पेश की गई।
असहमति टिप्पणियों में कहा गया है ‘वर्तमान विधेयक 2016 के प्रावधान पूर्वकथित सिद्धांतों के उलट हैं और अगर इन्हें कानून 1968 में शामिल करने की अनुमति दी गई तो न केवल पूरा संतुलन गड़बड़ा जाएगा बल्कि यह कानून की अदालत में भी टिकाउ नहीं होगा। इसलिए हम यह असहमति टिप्पणी इस आग्रह के साथ दे रहे हैं कि इसे समिति की रिपोर्ट के हिस्से की तरह देखा जाए।’