गिरीश उपाध्याय
ऐसा लग रहा है कि मध्यप्रदेश की राजनीति और नौकरशाही दोनों ही इन दिनों सोशल मीडिया के जाल में उलझ गए हैं। इस उलझन की खास बात यह है कि सोशल मीडिया ने कई लोगों को संकट से उबारने में मदद की है तो कई लोगों को गंभीर संकट में डाल दिया है। कुछ लोगों को तो शायद ऐसा तगड़ा सबक मिला है कि आने वाले दिनों में वे इस मंच पर आने से पहले शायद कई बार सोचेंगे।
पहले सबसे ताजा किस्से की बात। यह मामला एक अफसर से जुड़ा है। बड़वानी जिले के एडीशनल कलेक्टर लोकेश जांगिड़ ने सोशल मीडिया पर अपने ही कलेक्टर को भ्रष्ट बताते हुए उसमें मुख्यमंत्री निवास तक को घसीट लिया। आईएएस अधिकारी लोकेश का पिछले दिनों बड़वानी से तबादला कर उन्हें भोपाल में राज्य शिक्षा केंद्र में भेज दिया गया था। बस इसी से खफा लोकेश जांगिड़ ने इधर उधर नहीं बल्कि आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन के वाट्सऐप ग्रुप पर अपनी भड़ास निकाली और यह कहते हुए सनसनी फैला दी कि उनका तबादला जिला कलेक्टर शिवराजसिंह वर्मा ने इसलिए करवाया क्योंकि वे कलेक्टर के कथित भ्रष्टाचार की राह का रोड़ा बन गए थे। जांगिड़ यहीं नहीं रुके उन्होंने यह भी कह डाला कि कलेक्टर ने मुख्यमंत्री के कान भरे और उनसे कहकर उन्हें बड़वानी से हटवाया। यहां वे यह बताने से भी नहीं चूके कि कलेक्टर और मुख्यमंत्री एक ही समाज के हैं और कलेक्टर की पत्नी उसी समाज के संगठन की एक पदाधिकारी भी हैं।
सोशल मीडिया पर कलेक्टर की यह पोस्ट जैसे ही वायरल हुई हड़कंप मच गया। आईएएस एसोसिएशन ने इस पर आपत्ति करते हुए जांगिड़ से इस पोस्ट को वापस लेने को कहा लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद एसोसिएशन ने उन्हें ग्रुप से बाहर निकालते हुए उनकी पोस्ट को डिलीट कर दिया। लेकिन लगता है जांगिड इस मामले को यूं ही छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने दो कदम और उठाए हैं, एक तो मध्यप्रदेश छोड़कर तीन साल महाराष्ट्र में सेवा करने के लिए सरकार अनुमति मांगी है, दूसरे उन्होंने कहा है कि वे सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद एक किताब लिखकर सारे तथ्य लोगों के सामने लाएंगे। अभी उनके हाथ ‘घटिया’ आचरण नियमों से बंधे हैं।
जांगिड़ प्रकरण को लेकर सोशल मीडिया के जरिये उठे तूफान और नौकरशाही में भ्रष्टाचार, भ्रष्ट अफसरों को राजनीतिक संरक्षण जैसे मुद्दों से अब सरकार कैसे निपटती है यह देखना होगा। लेकिन सोशल मीडिया ने सिर्फ अफसरशाही को ही नहीं हिलाया है। प्रदेश की राजनीति भी इन दिनों इससे हलकान है। इसकी ताजा शुरुआत कुछ दिन पहले कांग्रेस विधायक दल की एक वर्चुअल बैठक से हुई थी। उस बैठक में कांग्रेस विधायकों ने प्रदेश पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के समक्ष पार्टी के ही एक विधायक उमंग सिंघार से जुड़ा मामला उठाया था। उनका कहना था कि सिंघार के घर पर एक महिला द्वारा की गई खुदकुशी के मामले में राज्य की भाजपा सरकार राजनीतिक द्वेष से कार्रवाई करते हुए सिंघार को बिना वजह फंसाने की कोशिश कर रही है। उसी बैठक के दौरान कमलनाथ ने यह कह दिया था कि यदि सरकार ऐसा करेगी तो हमारे पास भी ‘हनी ट्रैप’ मामले की पेन ड्राइव है।
पता नहीं कैसे कांग्रेस विधायक दल की वर्चुअल बैठक में हुई यह बातचीत सोशल मीडिया पर आ गई और उसके बाद भाजपा ने कमलनाथ को यह कहते हुए घेर लिया कि वे किसी आपराधिक मामले के महत्वपूर्ण सबूत को अपने पास रखकर सरकार को ब्लैकमेल करना चाहते हैं। हालत उस समय और खराब हो गई जब कमलनाथ ने मीडिया से वर्चुअल संवाद करते हुए यह कह दिया कि उनके पास ‘हनी ट्रैप’ कांड की जो पेनड्राइव है वह सबसे ओरिजनल है। यह मामला अभी भी कांग्रेस और भाजपा के बीच अच्छी खासी रस्साकशी का सबब बना हुआ है।
उसके बाद कमलनाथ अपने एक और बयान को लेकर घिर गए। उनका वह बयान सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ जिसमें उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर का कारण बने वायरस को ‘भारतीय वायरस’ कह दिया। साथ ही वे यह भी बोल बैठे कि ‘अब मेरा भारत महान नहीं, मेरा भारत बदनाम है।‘ उनका इतना कहना था कि भाजपा को उन्हें घेरने का मौका मिल गया और भाजपा के तमाम दिग्गज नेता उन पर चढ़ बैठे। सोशल मीडिया पर यह घमासान अच्छा खासा चला।
ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया ने केवल कांग्रेस को ही परेशान किया। भाजपा में भी इसके चलते अच्छी खासी उठापटक हुई। हुआ यूं कि पार्टी के सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश भोपाल यात्रा पर आए और उसी दौरान पार्टी के कुछ नेताओं के आपसी मेलजोल के वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुए या वायरल करवा दिए गए। इन वीडियोज में पार्टी नेता कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा, प्रहलाद पटेल, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और संगठन के अन्य पदाधिकारियों की चाय और भोजन भेंट के दृश्य थे। जैसे ही इन ‘सौजन्य’ मुलाकातों के वीडियो सिलसिलेवार सोशल मीडिया पर आए, हवा चल पड़ी कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होने जा रहा है। पर इस मामले का दिलचस्प पटाक्षेप भी उसी सोशल मीडिया पर हुआ जहां से यह बात उठी थी। इन सारी मेल मुलाकातों में शामिल नेताओं ने बाद में बयान दिए कि उनका मिलना केवल सौजन्य भेंट थी, शिवराजसिंह चौहान उनके नेता हैं और प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन जैसी कोई बात नहीं है।
ऐसा ही एक और ताजा मामला प्रदेश के एक और दिग्गज और विवादों से घिरे रहने वाले नेता दिग्विजयसिंह का है। सोशल मीडिया ऐप ‘क्लब चैट’ पर उनकी एक बातचीत का एक हिस्सा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया जिसमें उन्हें यह कहते हुए बताया गया कि- ‘’कांग्रेस यदि सत्ता में आती है तो जम्मू कश्मीर में धारा 370 को फिर से लागू करने पर विचार कर सकती है।‘’ बयान आने की देर थी कि भाजपा के नेता सक्रिय हुए और फिर सोशल मीडिया पर दिग्विजयसिंह के खिलाफ जो तूफान आया वह अभी तक ठंडा नहीं पड़ा है।
कुल मिलाकर इन दिनों मध्यप्रदेश की राजनीति मैदान पर कम सोशल मीडिया पर ज्यादा नजर आ रही है। या यूं कहें कि नेता अपने तीर सोशल मीडिया के जरिये ही छोड़ रहे हैं और वहीं पर एक दूसरे पर निशाने लगा रहे हैं। कई बार ये तीर निशाने पर बैठ रहे हैं तो कई बार पलट कर तीर चलाने वाले को ही घायल कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि लहूलुहान होने के बावजूद कोई भी इस रणक्षेत्र को छोड़ने या पीछे हटने को तैयार नहीं है। (मध्यमत)
—————-
नोट- मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।– संपादक