फ्लैश बैक
मनोज खांडेकर
बैंकाक में हनीमून मनाने गई 19 साल की भूमि रामचंदानी ने अपनी सास धनवंतरी के लिए चाकू और चॉपर का एक सेट खरीदा था। अगले पांच महीने उसे शायद ही कभी यह अहसास हुआ होगा कि वह सास के लिए गिफ्ट नहीं बल्कि उसकी अपनी मौत का सामान था। धनवंतरी ने उन्हीं बेहद तीखे और धारदार चाकू से अपनी बहू को टुकड़े-टुकड़े में काट डाला था, फिर एक पोटली में बांधकर शव के टुकड़ों को घर के पास बगीचे में फेंक दिया था। वह भी अपनी खुद की एक्टिवा पर जाकर।
क्राइम की भाषा में खौफनाक, रिश्तों का खून या दिल दहला देने वाला यह हादसा 16 साल पहले हुआ था। तारीख भी 16 ही थी और साल 2006 का वह महीना सितंबर का था। आज अचानक इसका जिक्र इसलिए क्योंकि आफताब ने भी इसी तरह श्रद्धा का खून कर दिया। उसने भी अपनी माशूका के शरीर के 35 टुकड़े किए तो धनवंतरी ने भी अपनी बहू पर चाकू से 35 वार किए थे। पहला मामला शादी और संबंधों का था तो दूसरे के जड़ में सास और बहू के आपसी झगड़े और घरेलू विवाद थे, जिसका अंत इतना खौफनाक रहा कि किसी को भी यकीन नहीं हुआ था।
मुझे आज भी अच्छे से याद है वह रात और पूरा क्राइम सीन। हल्की बारिश हो रही थी और मध्य प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था। मैं और कैमरामैन जय व्यास जब वहां पहुंचे तो हमें बस इतना पता था कि किसी युवती की हत्या हुई है और डेड बॉडी कुछ ही देर में पहुंचेगी। चूंकि सोर्स पुख्ता था और उसने किसी से ख़बर शेयर नहीं की थी, तो उस वक्त अस्पताल में पहुंचने वाले मैं और जय व्यास ही थे।
हम अस्पताल के पिछले गेट से पहुंचे थे और जैसे ही ओपीडी के बाहर पहुंचे (अब अस्पताल का स्वरूप बदल गया है, होलकर कालीन इस अस्पताल में पहले सभी मरीजों के पहुंचने के लिए एक ही रास्ता था, जहां पुलिस चौकी बनी हुई थी) तब अचानक से एक सफेद रंग की मारुति वैन आकर रुकती है। एक या दो पुलिसकर्मी साथ में थे। उस शांत रात में अस्पताल के पुराने जंग खाए स्ट्रेचर के ‘चर चर’ की आवाज से सन्नाटा टूटता है। दो अटेंडेंट वैन का पिछला गेट खोलते है तो उसमें शव रखा हुआ था।
शव भी क्या.. अलग-अलग सफेद चादरों में लिपटे हुए टुकड़े थे। उन्हें स्ट्रेचर पर जमाकर अटेंडेंट मॉर्चूरी की तरह रवाना हो गए। फिर वही ‘चर चर’ की आवाज और स्ट्रेचर पर रखे शव के टुकड़े…तमाम दृश्य आज भी जेहन में ताजा हैं। शॉट्स से लेकर बाइट्स सब कुछ Exclusive था। 10 या 11 बजे के बुलेटिन में सबकुछ ऑन एयर भी जा चुका था। चूंकि मामला बेहद संवेदनशील था इसलिए शिफ्ट का वक्त खत्म होने के बावजूद हमने गाड़ी स्पॉट की तरफ दौड़ा दी। वॉक थ्रू घर के शॉट्स और प्रत्यक्षदर्शियों के शॉट्स लेते वक्त पूरा सीन फिल्मी लग रहा था। बॉलीवुड की किसी फिल्म की तरह बारिश और पुलिस अधिकारी की एंट्री। पता ही नहीं चला कि कब घड़ी का कांटा आधी रात के आगे जा चुका था।
देर रात मेहनत करने का नतीजा यह रहा कि सुबह के वक्त किसी के पास उस ख़बर को कवर करने के लिए कोई एंगल नहीं बचा था। अगले दिन बुखार आने की वजह से मैं छुट्टी पर था। दो या तीन दिन छुट्टी पर रहा और संयोग से इस बीच इस केस पर कोई खास डेवलपेंट नहीं हो रहा था। जिस दिन दोबारा ड्यूटी ज्वाइन तो मॉर्निंग शिफ्ट थी और यहां एक बार फिर संयोग जुड़ गया कि जय व्यास की शिफ्ट भी सुबह की हो गई।
फिर उसी दिन सोर्स के जरिए बड़ी ख़बर हाथ लगी। हत्यारों की तलाश में पुलिस के शक की सुई परिजनों पर जाकर टिक गई। सास और पति गायब थे, जबकि जिस दिन भूमि का शव मिला था उस दिन ही ससुर जमनादास ने जूनी इंदौर पुलिस थाने पर जाकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस जब सारी कड़ियों को जोड़ते गई तो आखिरकार इस हत्याकांड का खुलासा हो गया कि हत्यारा बाहरी न होकर घर के अंदर ही है।
ऐसे में आपके सोर्स ही काम आते हैं। पुलिस की ऑफिशियल प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले यह ख़बर ऑन एयर थी कि सास धनवंतरी ने ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया और उसमें पति और बेटे यानी भूमि के पति की भी भूमिका थी। उस दिन सुबह से देर रात तक काम किया। कभी-कभी काम आपको एनर्जी देता है। यह उस दिन एक बार फिर साबित हुआ। वायरल की वजह से कमजोरी का पता ही नहीं चला। घर में तोड़फोड़ से लेकर प्रदर्शन और उदयपुर से आए पिता और बाकी परिजनों से खास बातचीत के जरिए इस कहानी के हर पहलू को सबसे सामने लाया गया।
काम करने की बात पर भूमि और सास में झगड़ा हुआ और फिर वह खून पर जाकर ही खत्म हुआ। सास ने बहू को चाकू मारा और फिर पांच चाकुओं से (वही चाकू जो भूमि ने हनीमून के दौरान खरीदे थे) उसके शरीर के टुकड़े कर दिए। अफताब ने 35 टुकड़े किए थे तो यहां बहू के शरीर के टुकड़ों को जोड़कर पोस्टमार्टम किया गया था तो उस पर जख्म के 35 निशान थे।
कोई कितना बेरहम हो सकता है, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि सबूत छिपाने के लिए भूमि की अंतड़ियों को निकाला गया और खून के निशान मिटाने के लिए उसे पानी से धोया गया। फिर रात भर आरोपी सास ने अपने पति और बेटे के साथ शवों के 7 टुकड़े किए और फिर अलसुबह उसे गार्डन में फेंककर आ गई।
इस केस की तफ्तीश उस वक्त के एएसपी धर्मेंद्र चौधरी ने की थी। उनकी टीम की जांच में कई खौफनाक खुलासे हुए थे। यह केस बहुत उलझा हुआ था और आरोपियों ने कोशिश की थी कि पुलिस को कोई सबूत नहीं मिले। हत्या के बाद ससुर का गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराना और सबकुछ सामान्य होना बताता था कि हत्या भले ही क्षणिक आवेश में हुई हो, लेकिन इसके बाद बेहद ठंडे दिमाग से इस मर्डर को मिस्ट्री का रूप देने की कोशिश की गई थी।
एएसपी चौधरी और जूनी इंदौर थाने की टीम ने बेहद बारीकी से जांच कर हर सबूत जुटाया था। नतीजा यह रहा कि आरोपियों को कोर्ट से कोई राहत नहीं मिल सकी और उनका जुर्म साबित हो गया।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)
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