अजय बोकिल
पाकिस्तान के साथ ‘सिंधु नदी जल समझौते’ को स्थगित कर भारत ने पहली बार इतना कठोर कदम नहीं उठाया है। पिछले साल फरवरी में भी भारत ने सिंधु की सहायक नदी रावी नदी का पानी यह कहकर रोक दिया था कि सिंधु नदी समझौते के तहत पानी के उपयोग का उसका विशेषाधिकार है। इसके बाद भी पाकिस्तान नहीं चेता। उल्टे उसने भारत के इस कदम की ‘जल आतंक’ कहकर आलोचना की थी और आतंकवाद को पोसना जारी रखा। अब पहलगाम में पाक समर्थित आतंकियों के अमानवीय तरीके से 26 निर्दोष नागरिकों की धर्म के आधार पर हत्या करने के बाद जब भारत ने सिंधु नदी का पानी रोकने जैसा कड़ा और निर्णायक कदम उठाया तो पाक इसे अमानवीय और ‘युद्ध जैसा’ बताकर बौखला रहा है। पाक के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो तो यहां तक कह गए कि सिंधु नदी में हमारा पानी बहेगा और तु्म्हारा (भारत) खून।

भस्मासुर साबित हो रहा आंतकवाद का खेल

पाकिस्तान यह जानते हुए भी कि आंतकवाद का यह खेल उसके लिए भस्मासुर साबित हो रहा है, ‘खून और पानी’ का यह खेल पिछले चालीस सालों से खेल रहा है। बस इसके मोहरे और लक्ष्य अलग-अलग रहे हैं। इस बात को खुद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक इंटरव्यू में कबूल किया है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक शक्तियों ने पाकिस्तान का इस्तेमाल अपने हितों के लिए किया और पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारत के प्रति नफरत के चलते ऐसा होने दिया। यही पाकिस्तान अब संभावित ‘जल बम’ से अपनी तबाही के बारे में सोचकर परेशान है और वहां के नेता गीदड़ भभकियां देकर पाक जनता को गुमराह किए जा रहे हैं। खुद ख्वाजा आसिफ भी विवादित नेता रहे हैं।

पानी मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकता

वैसे किन्हीं भी दो देशों के बीच युद्ध और तनातनी के बाद भी नदियों के बहाव को सामान्यत: रोका नहीं जाता, क्योंकि पानी मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। पानी रोकने से आम जनता ही परेशान होती है, हुक्मरानों का कुछ नहीं बिगड़ता। भारत ने अगर सिंधु जल समझौता स्थगित करने जैसा अत्यधिक कठोर कदम उठाया है तो इसलिए कि पानी अब सिर से ऊपर निकल चुका है। आखिर हम कब तक आंतकियों से लड़ते-लड़ते अपने निर्दोष नागरिको, जवानों को मरवाते रहेंगे। इस मामले में पाकिस्तान के दोहरे खेल का इलाज क्या है? एक तरफ वह खुद को आंतकवाद का शिकार बताता है तो दूसरी तरफ खुद आंतकियों को बिरयानी खिलाता है। नफरत, झूठ, भीख और धर्मान्धता पर पाकिस्तान का अस्तित्व टिका हुआ है, जिसकी इस बार भारत ने कमजोर नस दबा दी है।

पाकिस्तान के पास अपनी कोई बड़ी नदी नहीं

खास बात यह है कि 1947 में धर्म के आधार पर देश के विभाजन के बाद बने (पश्चिम) पाकिस्तान के पास अपनी कोई बड़ी नदी नहीं थी। उसे जल प्रदाय करने वाली सभी 6 प्रमुख नदियां भारत से होकर ही पाकिस्तान जाती हैं। लेकिन सदाशयता के चलते भारत ने अपने जल दाता होने का कभी नाजायज फायदा नहीं उठाया, फिर चाहे पाक के साथ लड़े गए चार युद्ध  ही क्यों न हों। उलटे 1960 में  भारत-पाक के बीच हुई सिंधु जल संधि के तहत सिंध कछार में बहने वाली छहों नदियों का पानी दोनों देशों ने आधा-आधा बांट लिया ताकि कोई प्यासा न रहे।

समझौते में सिंधु बेसिन से बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में बांटा गया था। पूर्वी हिस्से की नदियों रावी, ब्यास और सतलज के पानी पर भारत का पूरा अधिकार है। पश्चिमी हिस्से की नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम का 20 प्रतिशत पानी भारत रोक सकता है।

पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती सिंध नदी पर निर्भर

यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाक राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुई थी। लेकिन जिस राज्य कश्मीर से होकर यह नदियां गुजरती हैं, उसकी राय ली ही नहीं गई। यह बात जम्मू कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला के बयान से साफ होती है। उन्होंने कहा कि हमारा पानी पाकिस्तान को दे दिया गया। इन नदियों के पानी के उपयोग और इन पर बांध बनाने को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद भी होते रहे हैं। इनमें से भी सिंध नदी सबसे बड़ी होने के कारण पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती, पेयजल और बिजली उत्पादन इसी पर निर्भर है।

पर वर्तमान स्थितियों में पाकिस्‍तान को भारत का यह जवाब कैसा और किस रूप में होगा, यह साफ नहीं है। उधर पाक नेता और सैन्य अफसर अपने देश के पास परमाणु बम होने की धमकी भारत को बार बार दे रहे हैं। यह समझे बगैर कि बौखलाहट और अत्यधिक हताशा में पाकिस्‍तान ने एकाध बम भारत पर डाल भी दिया तो उसके बाद उस पर परमाणु बमों की जो बारिश होगी, उससे पाकिस्तान का नामोनिशान भी शायद ही बचे। वैसे भारत ने इस बार पाकिस्तान को चेतावनी ही नहीं दी है बल्कि उस पर अमल भी शुरू कर दिया है। इसके‍ लिए केन्द्र सरकार ने तीन स्तरीय कार्यक्रम तय किया है, जिसकी विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।

हालांकि कुछ लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या किसी नदी का पानी दूसरे देश को जाने से सचमुच और पूरी तरह बहने से रोका जा सकता है? क्या व्यावहारिक रूप से ऐसा संभव है? क्या भारत के पास इतना पानी रोक सकने या डायवर्ट करने का नेटवर्क है और वो भी सिंधु जैसी बड़ी नदी का? अगर ऐसा हकीकत में फिलहाल संभव नहीं है तो फिर पाकिस्तान इतना हड़बड़ाया क्यों है? तो इसके कुछ ठोस कारण हैं। पहला तो यह कि अभी कल तक जब सिंधु व उसकी अन्य दो सहायक नदियों का पानी बदस्तूर पाकिस्तान जा रहा था, वह भी पाकिस्तान की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा था। इन तीनों नदियों में सालाना 135 मिलियन एकड़ फीट पानी बहता है। जिसका अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान को जाता है।

सिंधु नदी चीन के मानसरोवर के पास एक ग्लेशियर से निकलती है। इसका कुछ हिस्सा हमारे लद्दाख और कारगिल से होकर पाकिस्तान अधिकृत गिलगित और बाल्तीस्तान होते हुए खैबर पख्तूनख्वाह, पंजाब और सिंध में बहता है, जहां से यह अरब सागर में ‍मिल जाती है। पाक में नदियों के पानी की लगातार कमी का एक बड़ा कारण तो जलवायु परिवर्तन है। दूसरे, इन सभी नदियों के पानी का ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान के पंजाब में ही इस्तेमाल हो जाता है, क्योंकि वहीं सिंचाई का नेटवर्क सबसे अच्छा है। पंजाब में ज्यादा पानी इस्तेमाल होने से सिंध नदी के आखिरी छोर सिंध प्रांत तक बहुत कम पानी पहुंच पाता है। इसको लेकर सिंध के किसान आंदोलन भी कर रहे हैं।

पहाड़ी नदियों के पानी का बहाव बहुत तेज होता है, इसलिए इन पर जल विद्युत कम खर्च में बनाई जा सकती है। सिंधु और सहायक नदियों के पानी के संदर्भ में दोनो देशों के बीच संधि के अनुपालन में भारत जल प्रवाह और मौसम आदि की जानकारी पाकिस्तान के साथ साझा करता रहता है, जो अब नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि अगर सिंधु में बाढ़ आई भी तो भारत पाक को सचेत नहीं करेगा। इसकी एक बानगी शुक्रवार को देखने को मिली, जब भारत ने झेलम का पानी पाकिस्तान को पूर्व सूचना दिए बगैर ही छोड़ दिया, जिससे पीओके के कुछ गांवों में बाढ़ आ गई। वही स्थिति सिंधु में पानी घटने के संदर्भ में भी रहेगी। दूसरी तरफ इन नदियों पर बांध बनाने और जल विद्युत संयत्र लगाने के लिए पाकिस्तान की सहमति जरूरी नहीं होगी।

सिंधु नदी का पानी रोकने से पहले भारत को चिंता इस बात की करनी होगी कि रोका गया पानी कहीं उसके लिए बाढ़ का कारण न बन जाए। सवाल यह भी है कि क्या पाकिस्तान के कहने पर चीन भी सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भारत जाने से रोक सकता है। अगर ऐसा हुआ तो भारत क्या करेगा? सिंधु से भी ज्यादा ब्रह्मपुत्र नदी पर भारत के पूर्वोत्तर के कई राज्य और बांगला देश भी निर्भर है।

वर्तमान हालात में चीन अपने दोस्त पाकिस्तान के लिए ऐसा कदम उठाएगा या नहीं, कहना मुश्किल है, क्योंकि ट्रंप के टैरिफ वॉर के चलते चीन की अर्थ व्यवस्था मुश्किल में है। उसे भारत के बाजार की जरूरत है। 2016 में कश्मीर में हुए एक आंतकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि ‘खून और पानी दोनो एक साथ नहीं बह सकते।’ इसके बावजूद चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी का पानी रोक दिया था।

उधर पाकिस्तान में जल संकट को इसी बात से समझा जा सकता है कि वहां बीते 75 सालों में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में 70 फीसदी की कमी आई है। वहां हुए अध्ययनों में बताया गया है कि प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1017 घन मीटर है, जो इसके वैश्विक मानक 1385 घन मीटर से बहुत कम है और प्रति व्यक्ति 1 हजार घन मीटर तक गिर सकती है। अगर सिंधु का पानी बंद न हो और कम भी हो जाए तो पाकिस्तान में पानी के लिए कैसा हाहाकार मचेगा, समझा जा सकता है। पाकिस्तान में जल उपलब्धता की यह कमी, पानी के अत्यधिक दोहन, खेती व उद्योगों की बढ़ती जल मांग, अव्यवस्थित जल प्रबंधन, तेजी से बढ़ती आबादी़, घटती बारिश और पर्यावरण में परिवर्तन के कारण मानी जाती है। यही नहीं, पाकिस्तान के पास जल संग्रहण क्षमता मा‍त्र 30 दिनों की है, जबकि इसका वैश्विक औसत 120 दिन है।

पाकिस्तान दुनिया के अत्यधिक जल जोखिम वाले 17 देशों में 14 वे नंबर पर है। वहां भूजल भी खतरे के निशान से नीचे जा चुका है। पाक की 42 फीसदी जनता कृषि पर ही निर्भर है लेकिन  देश के जल प्रबंधन पर भी फौज का ही नियं‍त्रण है।
(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार और विश्‍लेषक हैं।)

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