राकेश अचल
देश में विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों की कथित जासूसी के मामले को लेकर कांग्रेस संसद में चाहे जितनी भड़क ले लेकिन न तो ये सरकार गिरेगी और न इस सरकार के गृहमंत्री इस्तीफा देंगे, क्योंकि न तो ये सरकार चंद्रशेखर की सरकार जैसी कमजोर सरकार है और न जासूसी के शिकार राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की तरह पूर्व प्रधानमंत्री। सरकार को विपक्ष और कांग्रेस की हैसियत का अंदाजा है।
अगर आप गाहे-बगाहे टीवी देखते होंगे या अखबार पढ़ते होंगे तो आप जानते होंगे कि कांग्रेस ने बीजेपी को ‘भारतीय जासूस पार्टी’ करार दिया है। मुख्य विपक्षी पार्टी ने इस मामले में पीएम मोदी के खिलाफ जांच और गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग की। लेकिन भाजपा ने बिना घबराये संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले ये जासूसी काण्ड की रिपोर्ट आने के पीछे साजिश की शंका जाहिर की है। भाजपा को पता है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
दरअसल जासूसी के आरोपों से चौतरफा घिरी भाजपा को किसी विरोध का डर इसलिए भी नहीं है क्योंकि उसे पूर्व में सम्पूर्ण विपक्ष द्वारा समर्थन दिए गए किसान आंदोलन को कुचलने में कामयाबी मिल गयी। केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार जानती है कि आंदोलनों को कैसे कुचला जाता है? कैसे प्रतिरोध की आवाजों को दबाया जा सकता है? मुश्किल ये है कि कांग्रेस संसद में एकदम अकेली है। उसके सहयोगी दल अनेक मुद्दों पर कांग्रेस के साथ नहीं हैं।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा- ‘’राहुल गांधी और अपने मंत्रियों की जासूसी की गई है। हमारे सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों की भी जासूसी गई है। पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और कई मीडिया समूहों की भी जासूसी कराई गई। क्या किसी सरकार ने इस तरह का कुकृत्य किया होगा? भाजपा अब ‘भारतीय जासूस पार्टी’ बन गई है।‘’ कांग्रेस की ही तरह आम आदमी भी सवाल कर सकता है कि,‘’मोदी जी, आप राहुल गांधी जी के फोन की जासूसी करवाकर कौन से आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे थे? आप मीडिया समूहों और चुनाव आयुक्त की जासूसी करवाकर किस आतंकवादी से लड़ रहे थे। अपने खुद के कैबिनेट मंत्रियों की जासूसी करवाकर कौन से आतंकवाद से लड़ रहे थे?’’
जाहिर है कि इन तमाम सवालों के जवाब कभी नहीं आएंगे, आ भी नहीं सकते क्योंकि दुनिया जानती है कि सत्ता का काम बिना जासूसी के नहीं चल सकता, इसलिए यदि भाजपा ने पेगासस से कोई जासूसी कराई भी है तो आश्चर्य की कोई बात नहीं है। ये पहला और आखरी मौक़ा नहीं है। पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी की सत्ता तक इस जासूसी के सहारे ही चली है। वो तो चंद्रशेखर की अल्पमत की कांग्रेस समर्थित सरकार थी इसलिए गिर गयी थी, लेकिन ये सरकार भाजपा की आत्मनिर्भर सरकार है उसे गिराना तो दूर हिलाया भी नहीं जा सकता।
देश का दुर्भाग्य देखिये कि उसके नायक को आधी आबादी अधिनायक और आधी से कुछ ज्यादा खलनायक समझती हो उस देश का भविष्य कैसा होगा? नेतृत्व के प्रति ये समझ एक दिन में नहीं बनी। इसमें पूरे सात साल लगे हैं। बीते सात सालों में जो कुछ हुआ उसके सामने नेताओं और पत्रकारों की जासूसी करना बहुत बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात तो ये है कि इस देश में एक से बढ़कर एक आपदाएं हैं लेकिन इनको लेकर कोई गुस्सा नहीं है। किसान अपने ढंग से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं यानि अवाम को लेकर जैसे सरकार लापरवाह है उसी तरह दीगर मुद्दों को लेकर विपक्ष भी उदासीन है।
गौरतलब है कि सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये भारतीयों की जासूसी करने संबंधी खबरों को सोमवार को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले लगाये गए ये आरोप भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास हैं। लोकसभा में स्वत: संज्ञान के आधार पर दिये गए अपने बयान में वैष्णव ने कहा कि जब देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है तब अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है।
इस मामले में मोड़ तभी आ सकता है जब सुप्रीम कोर्ट स्वत:संज्ञान ले, और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट को क्या पड़ी है संज्ञान लेने की? जासूसी एक अनैतिक अपराध है, पर सवाल ये है कि हमारे यहां राजनीति में नैतिकता बची ही कहाँ है? ध्यान दीजिये मैं यहां पक्ष-विपक्ष की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं सिर्फ नैतिकता की बात कर रहा हूँ जो दुर्भाग्य से कहीं है ही नहीं। इस मुद्दे पर संसद कुछ घंटों, दिनों के लिए ठप्प रह सकती है, सरकार भी इसके किये तैयार है, उसे कोई जरूरी संसदीय कार्य करना ही नहीं है और यदि करना भी होगा तो उसके पास ध्वनिमत का हथियार है। पहले भी हमारी बिरादरी से सियासत में आकर राज्य सभा के उप सभापति बने, ये सब करके दिखा ही चुके हैं।
इस जासूसी काण्ड के उजागर होने से कुछ हो या न हो लेकिन इतना जरूर प्रमाणित हो गया है कि केंद्र की मजबूत (?) सरकार भीतर ही भीतर घबराई हुई है, यदि ऐसा न होता तो उसे किसी की जासूसी करने की क्या जरूरत थी? कांग्रेस शक्तिहीन हो ही चुकी है और विपक्षी दल अभी तक एकजुट नहीं हैं, लेकिन डर तो डर होता है। एक बार दिल में बैठ जाये तो उसे बाहर निकालना कठिन हो जाता है फिर भले ही सीना छप्पन का हो या छियासठ इंच का। ध्यान रखिये कि ऐसा ही डर देश में आपातकाल का जनक बना था।
मुझे तो लगता है कि लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपनी सरकार के उज्ज्वल/धवल दामन पर वे सब दाग लगवाने पर तुले हैं जो अतीत में कांग्रेस की सरकारों पर लग चुके हैं। आप समझदार हैं, इस जासूसी काण्ड से दूर ही रहिये, आपको यदि सरकार के खिलाफ आक्रामक होना है तो महंगाई के खिलाफ आक्रामक होइए, किसान आंदोलन को लेकर आक्रामक होइए, अन्यथा कुछ करने की जरूरत नहीं है। शौक से सिनेमा देखिये। (मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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