अजय बोकिल
अगर ‘आ बैल मुझे मार’ कहावत को एक शख्सियत में तब्दील कर दिया जाए तो उसे मणिशंकर अय्यर नाम देना पड़ेगा। क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनकी बातों का क्या मतलब निकाला जाएगा, क्या मतलब निकाला जाना चाहिए, फिर भी वो ऐसे शगूफे छोड़ने से बाज नहीं आते कि जिससे दोस्त और दुश्मन में फर्क करना दूभर हो जाए। सुर्री छोड़कर आंसू बहाने में उस्ताद मणिशंकर अय्यर ने अपने ताजा बयान के ‘हाई जैक’ हो जाने पर शिकवा किया कि प्रधानमंत्री मोदी मेरे शब्दों को तोड़ते मरोड़ते रहते हैं। इस बार भी मेरे शब्दों से उन्हें हमेशा की तरह बिल्कुल झूठा दावा करने का मौका मिल गया कि मैंने राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की तुलना मुगलों की वंशवादी प्रणाली से की थी।
अय्यर की सफाई यह है कि उन्होंने दोनों की ‘तुलना’ नहीं की थी बल्कि ‘अंतर’ बताया था कि मुगल प्रथा के विपरीत कांग्रेस में लोकतांत्रिक तरीके से नेता चुने (?) जाने का रिवाज है। बकौल अय्यर उन्होंने साथ में यह भी कहा था कि महाराष्ट्र में पार्टी के नेता शहजाद पूनावाला को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में चल रही चुनाव प्रक्रिया में नामांकन दाखिल करने की छूट है।
दरअसल अय्यर ने इशारों-इशारों में कहा था कि मुगल बादशाह के तख्त पर शाहजहां के बाद औरंगजेब आ गया। तब कोई चुनाव हुआ था क्या? यह तख्त की विरासत का नैसर्गिक हस्तांतरण था। जैसे कि होना ही था, अय्यर के बयान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान खूब ले उड़े। उन्होंने राहुल की ताजपोशी पर तीखा कटाक्ष करते हुए कहा- ‘औरंगजेब राज’ आ गया! यानी मां की जगह बेटा आ गया। यही है कांग्रेस का ‘लोकतंत्र।‘
प्रधानमंत्री का आशय यह था कि पार्टी में सत्ता सूत्र मां से बेटे के हाथों में देने के प्रायोजित फैसले को वैधता प्रदान करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पद के ‘चुनाव’ का ड्रामा किया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘औरंगजेब चुनकर नहीं आता’ वह खुद तख्त–ए-ताऊस पर कब्जा कर लेता है। वो भी अपने भाइयों को ठिकाने लगाकर। अब इसमें कौन सा लोकतंत्र खोजेंगे आप?
लेकिन मणिशंकर अय्यर ऐसा नहीं सोचते। उनका दिमाग कुछ और सोचता है, जबान कुछ और कहती है और मैसेज कुछ और जाता है। वैसे मणिशंकर अय्यर एक प्रतिष्ठित तमिल परिवार से आते हैं। काफी पढ़े-लिखे हैं। उर्दू भी जानते हैं। दुनिया जहान की खबर रखते हैं। उन्होंने बरसों भारतीय विदेश सेवा में नौकरी की। फिर राजीव गांधी के निधन के बाद नौकरी छोड़ राजनीति में आ गए। अय्यर को टिकट मिलने के पीछे उनका दून स्कूल में पढ़ा भी होना था। तब दिल्ली के गलियारों में इस मंडली को ‘दून के बाबा लोग’ कहा जाता था।
जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तो यूपीए-1 सरकार में अय्यर मनमोहन कैबिनेट में मंत्री बने। यूपीए- 2 में अय्यर को किनारे कर दिया गया। तब से वे अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए तरस रहे हैं। वे जब-तब बयानों के बूमरेंग फेंकते रहते हैं, खुद भी घायल होते हैं और अपनी पार्टी को रक्षात्मक होने के लिए विवश करते हैं। कांग्रेस के लिए वे अब कितने काम के हैं, पता नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए अय्यर काफी काम के साबित हुए हैं। मोदी को मोदी बनाने में अय्यर का कितना जबर्दस्त हाथ है, यह खुद अय्यर भी अब जाकर समझ पाए हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में अय्यर ने डंके की चोट पर भविष्यवाणी की थी कि नरेन्द्र मोदी कम से कम 21 वीं सदी में देश के प्रधानमंत्री नहीं हो सकते। हां, अगर वे चाय बेचना चाहते हैं तो उन्हें जगह देने के बारे में विचार किया जा सकता है। अय्यर ने सोचा था कि वे मोदी को ‘चायवाला’ बताकर उनकी असल हैसियत दिखा रहे हैं, लेकिन वे यह भूल गए कि मोदी ऐसे कई अय्यरों को चाय पिला चुके हैं।
लिहाजा मोदी और उनकी पार्टी चुनाव के दौरान ‘चायवाला’ को यह कहकर ले उड़ी कि एक चायवाला भी इस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है। यह बात मतदाताओं को गहरे अपील कर गई। अय्यर की यह देसी चाय, मोदी के अब तक काम आ रही है। इसके पहले अय्यर मुंबई में 26/11 हमले की निंदा करते हुए आंतकी हाफिज सईद को ‘हाफिज साहब’ कहकर इतनी इज्जत बख्श चुके हैं कि जितनी उसे पाकिस्तान में भी नहीं मिलती होगी।
दरअसल मणिशंकर अय्यर के साथ भी वही दिक्कत है, जो किताबी ज्ञान पर पले बुद्धिजीवी-राजनेताओं की होती है। उन्हें तथ्यों की जानकारी तो खूब होती है लेकिन उसमें छिपे सत्य की पब्लिक परोसगारी की तमीज नहीं होती। ऐसे में वो कहना कुछ चाहते हैं, कहा कुछ जाता है। इस बार भी वे राहुल गांधी को ‘औरंगजेब’ बताकर एक तरफ वंशवाद का समर्थन कर रहे थे तो दूसरी तरफ इस नजीर के मार्फत यह स्थापित करने की लंगड़ी कोशिश कर रहे थे कि नेहरू-गांधी परिवार कोई मुगल खानदान नहीं है। यानी यहां वंशवाद है भी तो लोकतांत्रिक खांचे में है। अगर लोगों को यह सूक्ष्म अंतर नहीं दीखता तो यह उनका दृष्टि दोष है।
अब सवाल सिर्फ इतना है कि मणिशंकर ऐसे विवादित मुददों पर अपना मुंह खोलते ही क्यों हैं, खासकर तब कि जब कांग्रेस के घर में बधाई बजने की थोड़ी सी भी संभावना हो। अब गुजरात में जी तोड़ मेहनत कर रहे राहुल को उन्होंने भले सकारात्मक अर्थ में औरंगजेब कहा हो, लेकिन रायता तो फैल ही गया है। यह जानते हुए भी औरंगजेब ने जिंदगी में एक बार मुहब्बत भी की थी, दो-चार अच्छे काम भी किए थे, लेकिन अहंकार और कट्टरता ने सब गुड-गोबर कर दिया। अय्यर को अब अपने बयान पर अफसोस हो रहा है, लेकिन वो उम्र के जिस मोड़ पर हैं, वहां गुड़ और गोबर के बीच फर्क कर पाना नामुमकिन सा है।
(सुबह सवेरे में प्रकाशित आलेख)