बाजार हमारे जीवन और रहन सहन को हमारी आर्थिक क्षमताओं से भी परे जाकर किस कदर चूस रहा है और किस कदर हमें गरीब से और गरीब बनाने के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य और पोषण जैसी मदों को किस कदर प्रभावित कर रहा है, इसे जानने के लिए हमें कुछ खबरों को बारीकी से पढ़ना और समझना चाहिए।
ऐसी ही एक खबर 21 नवंबर को कुछ अखबारों में प्रकाशित हुई है। कहने को यह खबर कुछ कंपनियों के कारोबार और उनकी ग्राहक संख्या के विस्तार से जुड़ी है, लेकिन गंभीरता से छानबीन करने पर आप पाएंगे कि इसमें हमारे आसपास की जाने कितनी सामाजिक और आर्थिक विसंगतियों का राज छुपा है।
खबर यह है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सितंबर के महीने में मोबाइल ग्राहकों की संख्या 7.54 करोड़ हो गई है। अगस्त 2019 में यह संख्या 7.52 करोड़ थी। यानी मोबाइल कंपनियों के घाटे में चलने की खबरों के समानांतर एक धारा और चल रही है जिसके कारण गरीब राज्यों में गिने जाने वाले मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक महीने में ही मोबाइल के करीब दो लाख नए ग्राहक जुड़ गए हैं।
कंपनियों के परफार्मेंस के लिहाज से देखें तो सितंबर महीने में सिर्फ रिलायंस जियो ही अधिकतर नए ग्राहक जोड़ने में कामायाब रही जबकि भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और सार्वजनिक क्षेत्र की बीएसएनएल के मोबाइल ग्राहकों की संख्या में गिरावट आई है। रिलायंस जियो के अगस्त में 2.62 करोड़ ग्राहक थे जो सितंबर में बढ़कर 2.68 करोड़ हो गए। अकेले जियो ने सितंबर महीने में 5.6 लाख ग्राहक जोड़े।
दूरसंचार क्षेत्र की नियामक संस्था ट्राई की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भारती एयरटेल के अगस्त में 1.49 करोड़ उपभोक्ता थे जो सितंबर में घटकर 1.48 करोड़ रह गए। वोडाफोन आइडिया के ग्राहकों की संख्या 2.76 करोड़ से घटकर सितंबर में 2.73 करोड़ रह गई। जबकि बीएसएनएल के 63.8 लाख ग्राहक थे जो सितंबर में घटकर 63.7 लाख रह गए।
भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या सितंबर में 117.37 करोड़ तक जा पहुंची है। जबकि अगस्त में यह आंकड़ा 117.1 करोड़ था। सितंबर में एक्टिव मोबाइल ग्राहकों की संख्या 96.08 करोड़ रही। इस महीने ग्रामीण इलाकों में मोबाइल ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, वहीं शहरी इलाकों में ग्राहकों की संख्या घटी है। सितंबर में ग्रामीण क्षेत्र में मोबाइल ग्राहकों का आंकड़ा 51.10 करोड़ से बढ़कर 51.72 करोड़ हो गया।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जियो फोन की अधिकतर बिक्री ग्रामीण इलाकों में ही हो रही है। मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाले एक डीलर के मुताबिक लोग मनोरंजन, फेसबुक, व्हाट्सएप और वायस असिस्टेंट जैसी सुविधाओं और फीचर्स के चलते जियो फोन को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि यह अपेक्षाकृत सस्ता है। दूरसंचार क्षेत्र का पूरे भारत का लेखा-जोखा देखें तो वोडाफोन आइडिया ने 25.7 लाख और भारती एयरटेल ने 23.8 लाख ग्राहक खोए हैं, वहीं रिलायंस जियो ने 69.83 लाख ग्राहक जोड़े हैं।
यह तो हुई कंपनियों के कारोबार की बात। इसमें ऊपर से देखने पर कुछ भी नया अथवा चौंकाने वाला नहीं लगेगा क्योंकि इन दिनों मोबाइल फोन एक अनिवार्यता बन गया है और लोगों की रुचि के साथ साथ कंपनियों की आक्रामक मार्केटिंग के चलते मोबाइल फोन और मोबाइल नेटवर्क सेवाओं का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। जो लोग पहले सिर्फ फोन लगाने या रिसीव करने के लिए मोबाइल सेवाएं लेते थे अब वे डाटा का इस्तेमाल भी धड़ल्ले से कर रहे हैं। इसके चलते स्मार्ट फोन की बिक्री भी बढ़ी है और डाटा की बिक्री और खपत भी।
लेकिन अंदर की बात यह है कि संचार की यह क्रांति हमारे सामाजिक और आर्थिक ढांचे को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। पहले तो ऊपर दिया गया वही आंकड़ा ले लीजिए जो कहता है कि अगस्त की तुलना में सितंबर महीने में ग्रामीण इलाकों में मोबाइल ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। इस एक महीने में ग्रामीण इलाकों में मोबाइल ग्राहकों का आंकड़ा 51.10 करोड़ से बढ़कर 51.72 करोड़ हो गया। यानी देश के ग्रामीण क्षेत्र में मोबाइल के 62 लाख नए ग्राहक पैदा हुए।
अब एक तरफ तो देश में भारी आर्थिक मंदी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर बहस हो रही है, यह कहा जा रहा है कि आमदनी के स्रोत लगातार कम होते जाने के कारण लोगों का जीना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की आबादी, खासतौर से ग्रामीण आबादी मोबाइल के रूप में न सिर्फ एकमुश्त नया खर्चा कर रही है, बल्कि वह नियमित (रिकरिंग) खर्चा भी खुद पर ओढ़ रही है। खासतौर से गरीब वर्ग इसकी चपेट में ज्यादा आ रहा है।
मेरी बात को जरा दूसरे ढंग से समझिए। जनसंख्या वृद्धि पर सतत निगाह रखने वाली संस्थाओं के आंकड़े कहते हैं कि इस समय मध्यप्रदेश की आबादी करीब साढ़े आठ करोड़ और छत्तीसगढ़ की करीब तीन करोड़ होनी चाहिए। यानी दोनों राज्यों की कुल आबादी इस समय लगभग साढ़े ग्यारह करोड़ होगी। इस आबादी में बीपीएल यानी गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या देखें तो मध्यप्रदेश में यह करीब चार से पांच करोड़ और छत्तीसगढ़ में डेढ़ से दो करोड़ होगी।
इसका मतलब यह हुआ कि दोनों राज्यों की करीब साढ़े ग्यारह करोड़ की आबादी में से लगभग सात करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे जी रहे हैं। दूरसंचार कंपनियों के ढांचे के लिहाज से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ अलग-अलग राज्य नहीं बल्कि वे एक ही सर्कल में आते हैं। और ट्राई के आंकड़े कहते हैं कि सितंबर माह में इन दोनों राज्यों में मोबाइल ग्राहकों की संख्या साढ़े सात करोड़ से अधिक हो गई है।
अब आप दोनों राज्यों की अनुमानित आबादी साढ़े ग्यारह करोड़ में से सात करोड़ बीपीएल की जनसंख्या को हटा दें तो साढ़े चार करोड़ लोग बचते हैं। माना जा सकता है कि ये लोग वे होंगे जो स्मार्ट फोन और उनसे जुड़ी मोबाइल नेटवर्क और डाटा की सेवाएं लेने और उनका भुगतान करने में सक्षम होंगे। लेकिन ट्राई के आंकड़े तो कहते हैं कि दोनों राज्यों में मोबाइल ग्राहकों की संख्या साढ़े सात करोड़ है। तो इसका अर्थ यह हुआ कि करीब तीन करोड़ लोग ऐसे हैं जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने के बावजूद मोबाइल फोन की सेवाओं का खर्च वहन कर रहे हैं।
अब यह हमारे योजनाकारों, सरकारों और गैरसरकारी संगठनों का काम है कि वे पता लगाएं कि गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाले लोग मोबाइल सेवाओं पर कितना खर्च कर रहे हैं और इस खर्च को करने के एवज में वे अपनी व परिवार की किन किन बुनियादी जरूरतों से समझौता या उनमें कटौती कर रहे हैं। अगर ये तीन करोड़ लोग न्यूनतम आकलन के हिसाब से औसतन 100 रुपये महीना भी मोबाइल पर खर्च कर रहे होंगे तो भी यह राशि सालाना 3600 करोड़ रुपये होती है। आपको यह आंकड़ा छोटा लग रहा हो तो जाते जाते आपको बताता चलूं कि छत्तीसगढ़ सरकार के 2019-20 के बजट में सामाजिक सुरक्षा और कल्याण एवं पोषाहार का कुल बजट ही 3063.26 करोड़ रुपये का है।