मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग के एक कार्यक्रम में गुरुवार को चौंकाने वाली जानकारी मिली। यूनीसेफ के सहयोग से आयोजित यह कार्यक्रम राज्य में रोटा वायरस के टीकाकरण और मिशन इंद्रधनुष के चौथे चरण की शुरुआत के बारे में जानकारी देने के लिए आयोजित किया गया था।
कार्यक्रम में स्वास्थ्य विभाग की ओर से बताया गया कि इस बार मध्यप्रदेश में मिशन इंद्रधनुष के तहत पूर्ण टीकाकरण के लिए 15 जिलों को चिह्नित किया गया है। इनमें विदिशा, सागर और पन्ना भी शामिल हैं। सुनने में यह बहुत ही सामान्य सी जानकारी लग सकती है, लेकिन इस जानकारी के पीछे कई गंभीर सवाल छिपे हैं।
दरअसल मिशन इंद्रधनुष दो साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती माताओं के टीकाकरण का विशेष अभियान है। इसके अंतर्गत पूर्ण टीकारण से छूट गए बच्चों का टीकाकरण कोर्स पूरा करने और नए बच्चों को पूरे टीके लगाने का लक्ष्य रखा जाता है। इसके लिए विशेष डाटा बेस के आधार पर उन जिलों का चयन किया जाता है जहां यह कार्यक्रम चलाया जाना है।
जिन गंभीर सवालों का जिक्र मैं कर रहा हूं, वे सवाल इन्हीं तीन जिलों से जुड़े हैं जिनका जिक्र मैंने ऊपर किया है। यानी विदिशा, सागर और पन्ना। इन जिलों का मामला गंभीर इसलिए है कि इन तीनों जिलों में सतत प्रयास के बाद भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पा रही है और उन्हें लगातार मिशन इंद्रधनुष के चौथे चरण में भी शामिल करना पड़ा है।
टीकाकरण के विशेष अभियानों में मुख्य भूमिका स्वास्थ्य विभाग की ही होती है और यूनीसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएनडीपी जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन सहयोगी की भूमिका निभाते हैं। ये संस्थाएं अपने स्तर पर यथासंभव प्रयास करती हैं। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद यदि बच्चों को जीवन रक्षक टीके लगाने का अभियान अपेक्षित लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाता तो स्वाभाविक रूप से सवाल उठता है कि क्या इसके लिए समाज और समाज के प्रतिनिधि भी बराबरी से दोषी नहीं हैं?
विदिशा का ही उदाहरण ले लें। इस जिले को प्रदेश का सबसे वीवीआईपी जिला कहा जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय संवेदनाओं को प्रदर्शित करने वाली भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज यहीं से सांसद हैं,प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इस जिले को मॉडल जिला बनाने का संकल्प ले रखा है और बच्चों के लिए काम करके नोबल पुरस्कार पाने वाले कैलाश सत्यार्थी भी इसी जिले के हैं।
यानी रसूख के लिहाज से यह जिला सारे जिलों पर भारी पड़ता है। लेकिन उसके बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि इतने सारे भारी भरकम लोग मिलकर भी वो जन जागरण पैदा नहीं कर पा रहे हैं जो इस जिले के बच्चों के पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करवा सके।
स्वास्थ्य विभाग के सरकारी अमले की तो प्राथमिक जिम्मेदारी है ही,लेकिन क्या जिले के जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे अपने-अपने संसदीय, विधानसभा, नगर पालिका, जनपद आदि क्षेत्रों में खुद से जुड़े कार्यकर्ताओं को सक्रिय करें। उनकी जिम्मेदारी तय करें कि इस लक्ष्य को पूरा करना उनका भी कर्तव्य है। क्या ये कार्यकर्ताओं सिर्फ नेताओं के आगमन प्रस्थान पर स्वागत या विदा देने अथवा कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने जैसे कामों के लिए ही तैयार किए जाते हैं?
समाज की भूमिका क्यों अहम है, इसका कारण भी जान लीजिए। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि टीकाकरण से जो बच्चे छूट गए हैं उनमें से 63 प्रतिशत बच्चे जागरूकता या जानकारी के अभाव और टीके को लेकर बने हुए डर के कारण वंचित हुए हैं। यदि इनमें वे 11 प्रतिशत बच्चे भी शामिल कर लिए जाएं जो रोजगार की तलाश में अपने माता पिता द्वारा किए गए पलायन के कारण टीके नहीं लगवा पाते, तो यह आंकड़ा 74 प्रतिशत हो जाता है।
यानी समाज की सक्रियता हो तो इन सभी 74 प्रतिशत बच्चों को पूर्ण टीकाकरण के दायरे में लाया जाकर, जानलेवा बीमारियों से उनकी रक्षा की जा सकती है। लेकिन बच्चे या माताएं हमारी प्राथमिकता में हों तब ना!पिछले दिनों खबर आई थी कि विदिशा में पासपोर्ट कार्यालय खोला गया है। मुझे नहीं मालूम कि विदिशा से कितने लोग विदेश जा रहे हैं या वहां के कितने लोग एनआरआई हैं। लेकिन चूंकि विदेश मंत्री वहां से सांसद हैं इसलिए वहां कार्यालय की सुविधा हो गई।
अपने संसदीय क्षेत्र में सुविधाएं मुहैया कराने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन सवाल प्राथमिकताओं का है। शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत खराब है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि इस दिशा में ज्यादा ध्यान दिया जाए। यदि भारत सरकार कड़ी निगरानी में तैयार किए गए मापदंडों के आधार पर किसी जिले को लगातार चौथे साल भी कार्यक्रम में शामिल करे तो यह इस बात का प्रमाण है कि वहां के हालात ठीक नहीं हैं।
ठीक है कि हर विभाग को अपने काम का लक्ष्य शत प्रतिशत पूरा करना चाहिए, लेकिन लोग ही यदि बच्चों को टीका लगाने के प्रति गंभीर न हों,तो पूरा ठीकरा विभाग या टीकाकरण के काम में लगी संस्थाओं पर फोड़ना भी ठीक नहीं। दो को चार बताना सरकारी अमले की आदत रही है। यदि एक परिवार बच्चे को टीका लगाने से इनकार करेगा तो प्रचारित यह होगा कि गांव के लोग ही नहीं चाहते। बेहतर होगा गांव के लोग खुद चाहें और आगे आएं कि हर बच्चे को टीका लगे, तभी यह भी तय हो सकेगा कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ…