जीत के लड्डू असली ही हों, कंकड़ पत्‍थर के नहीं

एक्जिट पोल के अनुमान सामने आने के बाद सोमवार को मैंने लिखा था कि एक्जिट पोल पर प्रतिक्रियाओं के भी कुछ पैटर्न सेट हैं। पोल यदि आपके फेवर में हुआ तो आपको धीर गंभीर मुद्रा अपना लेनी है और यदि प्रतिकूल हुआ तो उसे दो दिशाओं में ले जाना है। पहली दिशा है- ये सब फर्जी है, पैसे देकर करवाया गया है और दूसरी दिशा, जो पिछले कुछ सालों में भारी लोकप्रिय हुई है, उसके मुताबिक सारा ठीकरा ईवीएम पर फोड़ देना है।

दरअसल इस बार भी ईवीएम को यदि दोष नहीं दिया जाता तो मुझे आश्‍चर्य होता। क्‍योंकि तब हार जाने की स्थिति में हरेक दल पर इस सवाल का जवाब देने का दबाव बनता कि आखिर उसकी हार क्‍यों हुई? अब छोटा मोटा दल हो तो वह कुछ भी बहाना करके पतली गली से निकल सकता है, लेकिन दल यदि राष्‍ट्रीय है, राजनीति में ‘प्रतिष्ठित’ है तो उसके लिए, और उससे भी ज्‍यादा उसके नेतृत्‍व के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होता है। क्‍योंकि वह गलत जवाब दे तो मुसीबत और सच बोले तो और भी मुसीबत…

शुक्र है कि ऐसे शुतुरमुर्गों के लिए ईवीएम रेत का टीला बनकर आई है। इसलिए पिछले कई चुनावों से हम देख रहे हैं कि विपरीत परिणाम आने की दशा में सारी बला ईवीएम के सिर डालकर नेता साफ बच निकलते हैं। हार के कारणों की समीक्षा करने या भविष्‍य में अपनी चुनावी रणनीति को और मजबूत करके चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश कोई नहीं करता। सोमवार को कांग्रेस के नेता राशिद अल्‍वी तो ईवीएम के खिलाफ कमाल का तर्क (?) लेकर आए। तंज में ही सही, उन्‍होंने नई थ्‍योरी देते हुए कहा कि नवंबर 2018 में छत्तीसगढ़, एमपी और राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस की जीत भी एक साजिश थी। वहां जानबूझकर ईवीएम के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई, ताकि ईवीएम पर सवाल न उठें।

अब जब विरोध का यह स्‍तर हो तो आप किसी से क्‍या कहें और किसी को क्‍या समझाएं। मंगलवार को ईवीएम को फिर घसीटा गया। ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट की सभी पचिर्यों का ईवीएम से मिलान करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी अर्जियां आखिर कितनी बार सुनी जाएंगी? इनका मकसद सिर्फ चुनाव प्रक्रिया में टांग अड़ाना है।

सुप्रीम कोर्ट के इस रुख ने विपक्षी दलों को थोड़ा झटका दिया। क्‍योंकि मंगलवार को वे इसी मुद्दे पर दिल्‍ली में इकट्ठे हुए थे। मीटिंग के बाद गैर एनडीए दलों के इन नेताओं ने चुनाव आयोग पहुंच कर मांग की कि सुप्रीम कोर्ट की व्‍यवस्‍था के हिसाब से वीवीपैट पर्चियों के मिलान की कार्रवाई जब हो तो, मतगणना शुरू होते ही की जाए न कि मतगणना समाप्‍त होने के बाद। और यदि किसी भी मतदान केंद्र के पर्ची मिलान में विसंगति पाई जाए तो फिर उस विधानसभा क्षेत्र के शत प्रतिशत केंद्रों पर वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाए।

अब यह बात समझ से परे है कि आखिर गैर एनडीए दल चाहते क्‍या हैं, उनका स्‍टैण्‍ड क्‍या है? एक तरफ वे एक्जिट पोल को फर्जी और एकपक्षीय करार देते हुए, खारिज करने के साथ यह दावा कर रहे हैं कि मतगणना के दिन असली परिणाम कुछ और ही आने वाले हैं। यानी गैर भाजपा गठबंधन वाले दलों को पूरा भरोसा है कि 23 मई को उनकी ही सरकार बनने की स्थिति बनेगी। लेकिन वे यह भी बयान दे रहे हैं कि ईवीएम के साथ सत्‍तारूढ़ गठबंधन ने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की है।

अब इसमें से किस बात को सही माना जाए। यदि विपक्षी दलों के हिसाब से एक्जिट पोल फर्जी हैं और असली नतीजों में उनकी ही सरकार बनने वाली है, तो फिर उन्‍हें चिंता क्‍यों करनी चाहिए। उन्‍हें तो असली नतीजों का इंतजार करने का धैर्य दिखाना चाहिए। सवाल तो यह भी बनता है कि दावे के मुताबिक यदि असली नतीजों में उनकी सरकार बन गई, तो क्‍या तब भी वे अपने इस आरोप पर कायम रहेंगे कि ईवीएम में गड़बड़ी हुई है। तब क्‍या यह माना जाएगा कि भाजपा ने गैर एनडीए दलों को जिताने के लिए ईवीएम में गड़बड़ी की?

मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट तक के द्वारा ईवीएम विरोधी याचिकाएं खारिज करने के बावजूद, विपक्षी दलों की यह अधीरता उनके लिए ही घातक है। उनके इस रवैये से तो ऐसा लगता है मानो वे भी एक्जिट पोल को मन ही मन सही मान रहे हैं। उनके मन में भी यह आशंका बहुत गहरे तक पैठ गई है कि कहीं सचमुच वैसा ही तो नहीं होने जा रहा जैसा एक्जिट पोल बता रहे हैं। अन्‍यथा जब मतगणना ही नहीं हुई है तो फिर उन्‍हीं मशीनों या प्रक्रिया पर सवाल उठाने का क्‍या मतलब जिसके जरिये वे खुद अपनी सरकार बनने का दावा कर रहे हैं।

इस पूरे हल्‍ले में जो खतरनाक बातें कही जा रही हैं ध्‍यान उस पर भी देना जरूरी है। बिहार में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाह ने ईवीएम मामले पर भाजपा को निशाना बनाते हुए धमकी दी है कि अगर इनका रवैया नहीं सुधरा तो सड़कों पर खून बहेगा। जरूरत पड़े तो लोग हथियार उठाएं। हम शासन और प्रशासन में बैठे लोगों को सचेत कर रहे हैं कि स्थिति बिगड़ी तो कानून नहीं संभल पाएगा।

यह बयान बताता है कि मतगणना और परिणाम वाले दिन हालात कितने नाजुक हो सकते हैं। बंगाल में मतदान के दौरान जैसी हिंसा देखने को मिली है वह और चिंता में डालने वाली है। राजनीतिक आरोप प्रत्‍यारोप और सरकार बनाने के दावे प्रतिदावे अपनी जगह हैं, लेकिन सरकारों से लेकर सभी दलों की पहली कोशिश यह होनी चाहिए कि मतगणना के दिन कोई खून खराबा न हो। बंगाल, बिहार और उत्‍तरप्रदेश जैसे राज्‍यों में ऐसी आशंकाएं ज्‍यादा हैं।

मंगलवार को मैं टीवी पर देख रहा था कि भाजपा समर्थक भारी मात्रा में लड्डू बना रहे हैं। अब सरकार किसी की भी बने, जीत के लड्डू जरूर असली होना चाहिए, कंकड़ पत्‍थर के नहीं, जैसाकि चुनाव अभियान के दौरान कहा गया था…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here