अरुण पटेल
15 माह के भीतर ही राज्य की कांग्रेस सरकार को गिराने वाले विधायकों को चूंकि अब जनता की अदालत में जाना है, इसलिए अपने दलबदल के औचित्य को साबित करने के लिए वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा का आरोप लगाने के साथ ही अब अपने निशाने पर सीधे-सीधे पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को ले रहे हैं। इन विधायकों का कहना है कि उनके क्षेत्रों में कमलनाथ सरकार ने कोई काम नहीं किया और मुख्यमंत्री के पास विधायकों से ही नहीं बल्कि मंत्रियों व कांग्रेस कार्यकर्ताओं, जिनके बल पर 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आई, उनसे मिलने का समय नहीं था।
इसके साथ ही वे यह सवाल भी उठाने लगे हैं कि आखिर घंटों सचिवालय में बैठ कर कमलनाथ क्या करते रहे। धीरे-धीरे दिग्विजय सिंह के स्थान पर कमलनाथ को निशाने पर लेना इसलिए भी स्वाभाविक है, क्योंकि इन 24 उपचुनावों में असली प्रतिष्ठा ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की ही दांव पर है, इसलिए ये दोनों ही आरोपों-प्रत्यारोपों को झेलने वाले असली चेहरे होंगे।
चूंकि कमलनाथ इस समय प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं, इसलिए उन पर ही सबसे ज्यादा निशाना साधा जायेगा। दिग्विजय सिंह पर धीरे-धीरे सिंधिया समर्थकों के स्वर धीमे होने की संभावना इसलिए है क्योंकि 16 उपचुनाव जिन अंचलों में होना है, वहां उनके समर्थकों की भी अच्छी-खासी संख्या है। यहां सिंधिया विरोधी कांग्रेसजन भी अच्छी-खासी संख्या में हैं जो यह मानते हैं कि सिंधिया राज परिवार के कारण कांग्रेस में उन्हें अवसर नहीं मिले। ऐसे अधिकांश लोग दिग्विजय समर्थक ही हैं।
इसके साथ ही दिग्विजय एकमात्र ऐसे कांग्रेस नेता हैं जिनका अपना व्यापक असर है और कांग्रेस के बहुसंख्य कार्यकर्ताओं पर उनकी पकड़ है। दूसरे अन्य कांग्रेस नेताओं का असर अपने-अपने इलाके तक सीमित है। सिंधिया समर्थक यह भी महसूस करने लगे हैं कि दिग्विजय सिंह के कहने से यदि कमलनाथ कुछ कर रहे थे, तो जो भी हालात बने, उसके लिए कमलनाथ ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि संगठन व सत्ता दोनों ही टीमों के वे कप्तान थे। इस नाते कप्तान जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
इस प्रकार उपचुनावों में दोनों ही पक्ष अपने नजरिए को न्यायपूर्ण साबित करने की पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन चुनाव परिणामों से ही यह पता चल सकेगा कि जनता किसके पक्ष को सही समझती है। भले ही सिंधिया समर्थक जोरशोर से यह बात कहें कि कमलनाथ सरकार में घपले-घोटाले हुए, किसी के काम नहीं हुए और सरकार ने कुछ नहीं किया तो यह बात भी वे आसानी से मतदाताओं के गले नहीं उतार पायेंगे।
मिलावटखोरों, भूमाफियाओं, अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध जो विभिन्न अभियान छेड़े गए थे उससे लोगों को राहत मिली थी और वर्षों से जो अपने घरों का सपना देख रहे थे, उनका प्लाट मिलने का सपना साकार हुआ। मिलावट से आम लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा था, उसके खिलाफ जो अभियान छेड़ा गया, उसमें कमलनाथ के बाद असली किरदार और अभियान के अगुवा तुलसी सिलावट ही थे, जो अब पाला बदल चुके हैं।
अधिकांश समय मंत्रालय की चारदीवारी में व्यतीत करने का कारण बकौल कमलनाथ यह है कि सरकार चलाने और मुंह चलाने में बहुत अन्तर होता है। वे सरकार चला रहे थे, भाजपा सरकार की तरह उन्होंने उसे आउटसोर्स नहीं किया था।
ऐदल सिंह कंसाना मूल रुप से दिग्विजय समर्थक रहे हैं और जबसे वे बसपा से कांग्रेस में आये, तब से उनके ही नजदीकी माने जाते रहे। लेकिन उनके मन में यह टीस थी कि दूसरी बार के विधायकों को सीधे केबिनेट मंत्री बना दिया गया और छठवीं से लेकर सातवीं बार तक के विधायकों की उपेक्षा की गयी। मंत्री न बनाये जाने की टीस कंसाना के मन में काफी समय से थी और उसे वे छिपा भी नहीं रहे थे।
लेकिन मंत्री न बनाया जाना दलबदल का औचित्य सिद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि उनसे काफी वरिष्ठ के.पी. सिंह मूलत: कांग्रेसी हैं, केबिनेट मंत्री भी रहे हैं तथा कई बार के विधायक हैं। उन्होंने तो मंत्री ना बनाये जाने से अपनी पार्टी नहीं छोड़ी और आज भी कांग्रेस में हैं। कंसाना ने एक निजी चैनल के “अदालत में बागी’’ कार्यक्रम श्रृंखला की बातचीत में कहा कि कमलनाथ के पास हमारी बात सुनने का समय नहीं था, विकास को लेकर उनकी सोच केवल छिंदवाड़ा तक सीमित थी।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने झूठे वायदे कर सरकार बनाई थी, ऐसे में हम जनता को क्या मुंह दिखाते, इसलिए सरकार गिरा दी। इसके जिम्मेदार कमलनाथ और कांग्रेस हाईकमान ही हैं। चौथी बार के विधायक कंसाना चूंकि अब भाजपा में चले गये हैं, इसलिए यह भी कह रहे हैं कि भाजपा से मेरे वैचारिक मतभेद नहीं थे, यहां सभी अच्छे नेता हैं। पूर्व मंत्री प्रभुराम चौधरी कह रहे हैं कि कांग्रेस सरकार में कुछ न कुछ कमी तो रही ही होगी, यदि सब कुछ ठीकठाक होता तो हमें बाहर होने की आवश्यकता नहीं थी।
कमलनाथ ने किसानों की कर्जमाफी भी पूरी नहीं की, किसानों व युवाओं के मुद्दों को अनदेखा किया। बागी विधायक कहते हैं कि कांग्रेस सरकार बनाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भागीदारी कांग्रेस मानती थी, तो फिर उन्हें अपमानित क्यों किया गया? चूंकि दलबदल करने वालों पर सौदेबाजी का आरोप लग रहा है इसलिए प्रभुराम कहते हैं कि भाजपा हमने किसी शर्त पर ज्वाइन नहीं की, केवल जनता की समस्याओं का निराकरण हमारी प्राथमिकता थी।
सिंधिया का चेहरा देख कर मतदाताओं ने वोट दिए थे, उन्हें मुख्यमंत्री ना बनाये जाने से मतदाताओं और युवाओं में निराशा थी। सिंधिया ने जो मुद्दे उठाये उन्हें अनदेखा किया गया और जब यह बात कही तो जवाब मिला- ‘’सड़क पर उतरना है तो उतर जायें।‘’ इन परिस्थितियों को देखकर ही सिंधिया और उनके समर्थकों ने इस्तीफा दिया।
अक्सर मीडिया में सुर्खियों में रहने वाली पूर्व मंत्री इमरती देवी का कहना है कि हमने जनता की नहीं कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपा है, क्योंकि ऐसी पार्टी किस काम की जो जनता के काम नहीं करती। उनका कहना है कि महाराज ने मुझे कुएं में नहीं फेंका, बल्कि धूल से उठा कर सिंहासन पर बिठाया है। जब हम कमलनाथ से मिलते थे, तो वे खड़े हो जाते थे ताकि हमें बैठना न पड़े।
इमरती देवी कई मर्तबा कांग्रेस सरकार में मंत्री रहते हुए यह कहती रहीं कि महाराज के लिए वे कुएं में कूद सकती हैं। उनका कहना है कि वे जनता के दिलों पर राज करने वाली महिला हैं और अभी छोटा मंत्रिमंडल बना है, जब महाराज ने उनसे पूछा पहले तुम्हें भेजूं या तुलसी को, तो मैंने कहा कि मेंरे बड़े भाई तुलसी मंत्री बनेंगे तो मुझे खुशी होगी। इमरती देवी कहती हैं कि महाराज और भाजपा द्वारा जो जिम्मेदारी सौंपी जायेगी उसे वे निभायेंगी। कम से कम वे यह तो स्वीकार कर रही हैं कि उन्होंने अपनी मातृ-पार्टी को छुरा घोंपा है।
मुरैना के विधायक रहे सिंधिया समर्थक रघुराज सिंह कंसाना का कहना है कि सभी 22 पूर्व विधायकों का टिकट पक्का है, क्योंकि भाजपा सम्बंध बनाने में विश्वास करती है और कांग्रेस तोड़ने में। उनका आरोप है कि सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने और राज्यसभा भेजने में उनकी उपेक्षा की गयी। किसी बड़े नेता ने उनसे मिलने की चेष्टा भी नहीं की।
ग्वालियर के विधायक रहे सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल का कहना है कि कमलनाथ की सरकार थी उसे चला दिग्विजय सिंह रहे थे। महाराज के लगातार अपमान के कारण कांग्रेसी सरकार गिर गयी। सिंधिया का पन्द्रह महीने तक बेहद अपमान किया गया और उनके समर्थक हम सभी विधायकों की उपेक्षा की गयी। हमारे काम नहीं किए गए, जिसके कारण यह स्थिति बनी। हम सिंधिया के साथ थे और रहेंगे, तथा क्षेत्र के विकास के लिए लड़ते रहेंगे।
और यह भी
मध्यप्रदेश में पहली बार एक साथ 24 उपचुनाव हो रहे हैं और इनकी खासियत यह है कि ये उपचुनाव प्रदेश में यह तय करेंगे कि किसकी सरकार रहेगी। इसलिए इन उपचुनावों में मतदाता का मानस निर्णायक जनादेश देने का रहेगा और उसके बाद ही यह बात साफ हो सकेगी कि वह कमलनाथ सरकार फिर से चाहता है या शिवराज सिंह चौहान की सरकार को बनाये रखना चाहता है।
(लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।)
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