अरविंद तिवारी
0 सरकार के किसी भी फैसले की मुखालफत कोई आसान और छोटा मोटा काम नहीं है, खासकर सत्ताधारी दल के ही किसी बड़े नेता द्वारा। लेकिन यह कैलाश विजयवर्गीय के मिजाज में ही है कि जब भी उन्हें लगता है कि जनता के हितों को अनदेखा कर कोई निर्णय लिया गया है तो वे मुखर हो जाते हैं। इंदौर में जनता कर्फ्यू में और अधिक सख्ती के मामले में उनका जो ट्वीट आक्रामक शब्दों के साथ आया उसने प्रशासन के साथ ही जनप्रतिनिधियों की परेशानी को भी बढ़ा दिया। लोगों ने सीधा सवाल यह खड़ा किया कि जब कैलाश जी हमारे लिए बोल सकते हैं तो जिन्हें हमने चुना है वह आखिर मौन क्यों हैं। इसका जवाब तो प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट, सांसद शंकर लालवानी और शहर के विधायक ही दे सकते हैं, लेकिन इस ट्वीट ने कैलाश जी को तो आम लोगों की नजरों में हीरो बना दिया है।
0 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने तो इंदौर के भाजपा के दिग्गजों की दाल गली नहीं। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के सामने जरूर इन लोगों ने अपना दुखड़ा रो दिया। मुख्यमंत्री इंदौर से रवाना होने के कुछ घंटे बाद ही जब सख्त लाकडाउन का आदेश जारी हुआ तो सब चौक पड़े। एक दूसरे का मुंह देखने लगे। किसी के पास कहने को कुछ था नहीं। अगले दिन जब वी.डी. इंदौर आए और भाजपा कार्यालय पर पार्टी नेताओं से रूबरू हुए तो जनता से मिल रहे उलाहनों से त्रस्त नेताओं ने उनके सामने अपनी पीड़ा का इजहार किया। हालात से वाकिफ प्रदेशाध्यक्ष ने भी इतना ही कहा कि मुख्यमंत्री जी से बात कर कोई रास्ता निकालते हैं। हालांकि उन्हें मालूम था कि अब कोई रास्ता निकलने वाला है नहीं।
0 छतरपुर जिले के बकस्वाहा में हीरे की खुदाई के लिए सरकार द्वारा वन क्षेत्र को निजी कंपनी को देने का मामला तूल पकड़ने लगा है। करीब 380 हेक्टेयर का जंगल हीरा खनन के लिए काटा जाना है। पूर्व में एक विदेशी कंपनी यहाँ असफल प्रयास कर चुकी है। तब श्री अनिल दवे केंद्र में पर्यावरण मंत्री थे। अब उनके भतीजे निखिल दवे और उनकी पत्नी धरा पांडे ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर स्व. अनिल दवे की पुण्यतिथि पर किये मुख्यमंत्री के संकल्प का हवाला देकर इस वन कटाई को रुकवाने की मांग की है। इस मुहिम से देश के कई बड़े लेखक, साहित्यकार सामाजिक कार्यकर्ता जुड़ने लगे है और सोशल मीडिया पर यह दो दिन से ट्रेंडिंग में है। सोशल मुद्दों के लिए निस्वार्थ काम करने वाली यह जोड़ी मुख्यमंत्री से काफ़ी आशान्वित है कि वे इस मामले में ज़रूर अपनी संवेदनशीलता दिखाएँगे।
0 दिल हो तो कृष्ण मुरारी मोघे जैसा जो अक्सर मचलता रहता है। सालों पहले संगठन के इस पुरोधा का मन मचला और खरगोन से लोकसभा का चुनाव लड़ने पहुंचे। पुराने रिश्ते काम आए और जीत भी गए पर जब उपचुनाव हुआ तो गच्चा खा गए। फिर शिवराज सिंह चौहान ने नजरे इनायत की और कुछ दिग्गजों का रास्ता रोकने के चक्कर में इंदौर के महापौर बन गए। इंदौर से लोकसभा लड़ना चाहते थे लेकिन बात बनी नहीं। अब फिर साहब का दिल मचल रहा है और खंडवा जाकर लोकसभा का उप चुनाव लड़ना चाहते हैं। एक जमाने में मध्यप्रदेश की 320 विधानसभा सीटों के टिकट का फैसला करने में अहम भूमिका निभाने वाले मोघे को टिकट मिलता है या नहीं यह तो वक्त बताएगा है, लेकिन इस बहाने लोगों की मदद के नाम पर उनका आउटगोइंग तो शुरू हो गया है।
0 बाजी भले ही जीतू पटवारी मार गए हों लेकिन अपनी नेता सोनिया गांधी को खुश करने के लिए विधायक संजय शुक्ला के पास यह अच्छा मौका है। कांग्रेस अध्यक्ष ने पिछले दिनों पार्टी विधायकों से कोविड संक्रमण के दौर में एंबुलेंस दान देने का आग्रह किया था। पटवारी ने ताबड़तोड़ दो एंबुलेंस उपलब्ध करवा दी। संकट के समय इंदौर की जनता के लिए खाली चेक लेकर प्रशासन के पास पहुंचने वाले शुक्ला, जो महापौर पद के लिए भी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, चाहे तो अपनी राष्ट्रीय अध्यक्ष की इच्छा का सम्मान करते हुए इंदौर के हर विधानसभा क्षेत्र में दो-दो एंबुलेंस तो उपलब्ध करवा ही सकते हैं। खाली चेक तो उनके पास पड़ा ही है, बस इसमें राशि ही भरना है।
0 देश के मुख्य चुनाव आयुक्त पद से सुनील अरोरा के रुखसत होने से सबसे ज्यादा राहत मध्य प्रदेश के 3 आईपीएस अफसर महसूस कर रहे होंगे। ईडी की रिपोर्ट के बाद चुनाव आयोग ने संजय माने, वी. मधुकुमार और सुशोभन बनर्जी को निशाने पर ले रखा था। आयोग इन अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का पक्षधर था और इसी मुद्दे पर प्रदेश के मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह को दो तीन बार तलब भी कर चुका था। आयोग के सामने जाने के पहले हर बार सरकार इन अफसरों के खिलाफ छोटी मोटी कार्रवाई के कागज तैयार कर लेती थी ताकि अरोरा नाराज ना हो। अब जबकि अरोरा सेवानिवृत्त हो चुके हैं इन तीनों अफसरों को भी चैन की नींद आ रही होगी और सरकार भी राहत महसूस कर रही होगी।
0 भावी मुख्य सचिव माने जा रहे मोहम्मद सुलेमान पिछले 25 साल में हर मुख्यमंत्री के चहेते रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों इस बार शिवराज सिंह चौहान ने उनसे आंखें फेर रखी है। पिछले कुछ दिनों में सुलेमान कई बार मुख्यमंत्री के निशाने पर आ चुके हैं। मुख्यमंत्री ना तो उन्हें स्वास्थ्य जैसे अहम महकमे से रवानगी दे रहे हैं ना ही उनके काम से संतुष्ट नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान जिस अंदाज़ में मुख्यमंत्री सुलेमान पर बरस पड़े उससे नौकरशाही का चौंकना स्वाभाविक था। एक और मुद्दे पर भी वे तल्ख शब्दों में अपनी नाराजगी दर्शा चुके हैं। देखना है इस बार कौन सुलेमान का संकटमोचक बनता है।
0 ललित शाक्यवार को मुरैना का एसपी बनाए जाने से सबसे ज्यादा राहत कटनी के एसपी मयंक अवस्थी महसूस कर रहे होंगे, उन्हें लग रहा होगा कि चलो अब तो कटनी का एसपी बंगला खाली हो ही जाएगा। सुनील पांडे के स्थान पर मुरैना भेजे गए शाक्यवार अवैध शराब और रेत के कारोबार में लिप्त माफिया पर कितनी नकेल कस पाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इससे ज्यादा टेढ़ी खीर उनके लिए वहां जातिगत समीकरणों के आधार पर होने वाली राजनीति से निपटना होगा। कहा जाता है कि मुरैना में जिसने ठाकुरों और गुर्जरों को बस में कर लिया उसकी हर तरफ से चांदी ही चांदी है।
-चलते चलते-
0 दिग्विजय सिंह और उमंग सिंगार की राजनीतिक अदावत किसी से छुपी हुई नहीं। यदि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कोई नजदीकी अफसर सोशल मीडिया पर यह लिखे कि उमंग सिंगार पर महिला मित्र की आत्महत्या के मामले में कड़ी और तेज कार्रवाई होना चाहिए तो इसका क्या मतलब निकाला जाए।
0 अंदाज़ लगाइए हनी ट्रैप की जिस ओरिजिनल पेनड्राइव के अपने पास होने का दावा कमलनाथ कर रहे हैं, उसके सार्वजनिक होने की स्थिति में सबसे ज्यादा नुकसान किसे उठाना पड़ेगा।
-बात मीडिया की-
0 वरिष्ठ पत्रकार श्री राजकुमार केसवानी, श्री जीवन साहू, श्री शिव अनुराग पटेरिया और श्री प्रकाश बियानी का हमें छोड़ कर चले जाना मध्यप्रदेश के पत्रकारिता जगत के लिए बड़ी क्षति है।
0 जर्नलिस्ट क्लब भोपाल ने एक अच्छी पहल की है। क्लब ने वरिष्ठ पत्रकार श्री कमल दीक्षित, श्री राजकुमार केसवानी और श्री शिव अनुराग पटेरिया की स्मृति में पत्रकारिता के तीन पुरस्कार देने की घोषणा की है। श्री दीक्षित की स्मृति में श्रेष्ठ संपादन के लिए, श्री केसवानी की स्मृति में श्रेष्ठ खोजी पत्रकारिता के लिए और श्री पटेरिया की स्मृति में श्रेष्ठ आंचलिक पत्रकारिता के लिए यह पुरस्कार दिए जाएंगे।
0 दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल कुमार ने एक अच्छी पहल की है। लोकल पत्रकार स्मृति फंड के नाम से उन्होंने एक कोष की स्थापना की है। इसका मकसद कोविड संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले पत्रकार साथियों के बच्चों को पढ़ाई के लिए मदद करना है। वह कहते हैं, किसी भी पत्रकार साथी के बच्चे की पढ़ाई किसी कमी के कारण न रुके यही हमारा एकमात्र उद्देश्य है। अलग-अलग राज्यों में अनेक पत्रकार इस मुहिम का साथ दे रहे हैं। (मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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