ये जीना भी कोई जीना है लल्‍लू, तुम तो मरवा ही दो

कभी कभी यूं भी होता है कि लिखने का मन नहीं करता… अब मन तो मन है उसका कोई क्‍या कर सकता है… कबीर ने कहा है- चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह… तो मन कभी कभी बेपरवाह हो जाता है…

शुक्रवार वैसे भी हम लोगों का वीकेंड होता है क्‍योंकि शनिवार को कॉलम की छुट्टी रहती है, ऐसे में मन कभी कभार पहले से ही वीकेंड के मूड में आ जाता है। इस बार कुछ ऐसा ही हुआ, लिखने का मन ही नहीं हो रहा था, फिर भी लिखना तो था ही, नियमित कॉलम जो है…

अब जब मूड न लिखने का हो और फिर भी लिखना मजबूरी हो तो सबसे बड़ी मुसीबत विषय को लेकर आती है। क्‍या लिखें और कैसा लिखें कि मन की बात भी रह जाए और काम की भी… भगवान भला करे कर्नाटक के भाजपा विधायक बसाना गौड़ा पाटिल यतनाल (चौंकिये मत, यह पूरा एक ही नाम है) का जो इस मुश्किल में मेरा बड़ा सहारा बनकर आए…

बसाना गौड़ा पाटिल ने गुरुवार को कारगिल विजय दिवस पर बहुत क्रांतिकारी बयान दे डाला। उन्‍होंने कहा- ‘’अगर मैं देश का गृहमंत्री होता तो सभी बुद्धजीवियों को गोली मारने का आदेश दे देता।‘’ भाजपा विधायक ने उदारवादियों और बुद्धिजीवियों को राष्ट्रविरोधी बताते हुए यह बात कही।

उन्‍होंने कहा- लिबरल लोग हमारे देश में रहकर सारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, जिनका हम लोग टैक्स देते हैं, लेकिन फिर भी ये लोग भारतीय सेना के खिलाफ नारेबाजी करते हैं। इन बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष लोगों से हमारे देश को ज्यादा खतरा है।‘’

कर्नाटक की विजयपुर विधानसभा सीट से विधायक पाटिल पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं। वे बीजापुर से सांसद चुने जाने के बाद तत्‍कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहे। यतनाल को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष येदियुरप्पा का नजदीकी माना जाता है।

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाटिल इससे पहले भी कई बार विवादित बयान देते रहे हैं। चार जून को एक कार्यक्रम में उन्‍होंने स्‍थानीय पार्षदों से कहा था कि वे मुस्लिमों के लिए काम न करें, सिर्फ हिंदुओं के लिए काम करें, क्योंकि हिंदुओं ने ही मुझे वोट दिया है। सोशल मीडिया पर उनका यह बयान खूब वायरल हुआ था।

जब ऐसा बयान आया तो जाहिर है उस पर प्रतिक्रिया भी होनी ही थी। कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष दिनेश गुंडुराव ने मामले को तुरंत लपक लिया और भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि ये लोग केवल नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। ये हिंसा के जरिये सत्‍ता पाना चाहते हैं और इस तरह के बयान देकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।

गुंडूराव ने कहा कि यह बयान इनकी मानसिकता को दर्शाता है कि वे क्‍या सोचते हैं। पार्टी ने भी ऐसे नेताओं को खुली छुट दे रखी है ताकि ये लोग सार्वजनिक रूप से ऐसी बातें करते रहें। भाजपा को यतनाल के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई करनी चाहिए।

लेकिन मुझे लगता है कि कार्रवाई की बात करना पाटिल के साथ अन्‍याय होगा। आखिर उन्‍होंने ऐसी कौनसी गलत बात कह दी है? अरे देश के बुद्धिजीवियों को ठिकाने लगाने की मंशा ही तो जाहिर की है ना… तो इसमें कौनसी बुरा मानने वाली बात है…!!

मैं माननीय विधायक जी से सौ फीसदी सहमत हूं। ये सारे के सारे बुद्धिजीवी ठिकाने लगाने लायक ही हैं। जब देखो बात बात पर अभिव्‍यक्ति की आजादी का झंडा उठाकर टांग अड़ाने चले आते हैं। सरकार आखिर सरकार होती है, उसकी आलोचना का हक किसी को नहीं, और इन टटपूंजिये बुद्धिजीवियों को तो कतई नहीं…

आप भूल जाइए उस अभियान को जिसके तहत भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह से लेकर हमारे मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक अपने ‘संपर्क फॉर समर्थन’ अभियान में घर घर जाकर बुद्धिजीवियों से मिल रहे हैं। दरअसल इनसे मिलने का कोई फायदा है नहीं, जो न खुद वोट देता हो और न दूसरों को देने देता हो उसे तो निपटा देना ही अच्‍छा…

लोकतंत्र में ऐसे ‘विघ्‍नसंतोषियों’ के लिए कोई स्‍थान नहीं होना चाहिए।

हर बात में टांग अड़ाना और बनती बात को बिगड़वा देना इन लोगों की फितरत में शामिल है। ये न खुद चैन से बैठते हैं न दूसरों को चैन की बंसी बजाने देते हैं, ऐसे लोगों को ठिकाने लगाना ही चाहिए…

प्रसिद्ध लेखक/पत्रकार और धर्मयुग के संपादक स्‍व. धर्मवीर भारती ने आपातकाल के ठीक पहले एक कविता लिखी थी। ‘मुनादी’ शीर्षक से लिखी गई यह कविता बहुत लंबी है, लेकिन ताजा प्रसंग में उसकी कुछ पंक्तियां यहां शेयर करने को मन कर रहा है-

खलक खुदा कामुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का
हर खासोआम को आगह किया जाता है
कि खबरदार रहें

ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है
पर जहाँ हो वहीं रहो
यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि
तुम फासले तय करो और
मंजिल तक पहुँचो
क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है
और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है
वहीं ठप कर दिया जाए

तो सारे बुद्धिजीवियों को, जो जहां है वहीं ठप कर दिया जाना लाजमी है। अमिताभ बच्‍चन ने फिल्‍म ‘मिस्‍टर नटवरलाल’ में अपनी आवाज में एक गीत गाया था। वह गीत बच्‍चों के लिए था और उसमें एक शेर और शिकारी की कहानी थी जिसके अंत में शिकारी बताता है कि शेर उसे मारकर खा गया… इस पर एक बच्‍चा सवाल करता है- ‘लेकिन आप तो जिंदा हैं?’शिकारी जवाब देता है- ‘’यह जीना भी कोई जीना है लल्‍लू…’’

मैं भी उसी तर्ज पर कहना चाहूंगा, इन बुद्धिजीवियों का जीना भी कोई जीना है लल्‍लू, तुम तो चलाओ गोली और किस्‍सा खत्‍म करो…

 

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