सफाई से नहीं इंकार फिर भी पानी-पुरी से है बे‍इंतिहा प्यार!

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अजय बोकिल

सेहत के लिए ही सही किसी शहर में हरदिल अजीज पानी-पुरी  पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो पानी-पुरी प्रेमियों के लिए इससे बुरी खबर शायद कोई हो नहीं सकती। क्योंकि पानी-पुरी का मतलब ही है जिसे देखकर ही मुंह में पानी आ जाए। गुजरात के वडोदरा (बडौदा) नगर पालिका ने मॉनसून के मद्देनजर शहर में पानी-पुरी की बिक्री पर रोक लगा दी है।

नपा का कहना है कि पानी-पुरी बनाने में साफ-सफाई का समुचित ध्यान नहीं रखा जाता। इसके खाने से लोगों को टाइफाइड, पीलिया और फूड प्वाइजनिंग जैसी बीमारियां हो रही थीं। इसके लिए नपा अधिकारियों ने कई जगह छापे मारे और करीब चार हजार किलो पानी-पुरी, साढ़े तीन हजार‍ किलो आलू और काबुली चना तथा 1200 लीटर पानी-पुरी का चटापटा पानी बेरहमी से फेंक दिया। खबर में यह साफ नहीं है कि यह पानी-पुरी पर रोक कितने दिनों के लिए है और इसके हटने तक बडोदरावासी किस तरह अपने दिन गुजारेंगे?

स्वच्छता के आग्रह से इंकार नहीं, लेकिन चाट और खासकर पानी-पुरी प्रेमियों के लिए यह खबर गाज गिरने जैसी है। यूं पानी-पुरी हर मौसम के लिए मुफीद और जरूरी है। लेकिन रिमझिम बारिश में पानी-पुरी गटकने का अलग ही मजा है। वैसे भी यह शुद्ध भारतीय व्यंजन है और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की पसंद है। पानी-पुरी को कई नामों से जाना जाता है। पश्चिमी भारत में यह पानी-पुरी है तो उत्तर भारत और दिल्ली में ये गोल-गप्पा है। गोल-गप्पा इसलिए कि इसे मुंह में एक साथ गपा जाने में ही रोमांच है।

इसे फुल्की, फुचका, पानी पतासे, गुपचुप और पकौड़ी के नाम से भी जाना जाता है। पानी-पुरी  का शाब्दिक अर्थ है ‘पानी की रोटी।‘ पानी-पुरी शब्द चलन में कैसे आया यह शोध का विषय है। लेकिन इसका आकार छोटी कड़क पूरी की तरह और इसकी जान इसके चटपटे पानी में है। इसे नाश्ते में भी खाया जाता है। लेकिन पार्टियों में लोग अक्सर इसे मेन कोर्स निपटाने के बाद सूतना पसंद करते हैं। कई लोगों के लिए मुखशुद्धि की तरह है। लिहाजा शादी या अन्य पार्टियों में पानी-पुरी का स्‍टॉल उतना ही जरूरी माना जाता है ‍जितना कि दुल्हन का मंगल सूत्र।

गुजरात में लोग शराबबंदी भले झेल गए हों, लेकिन पानी-पुरी पर रोक शायद ही गवारा करें। गुजरात ही क्यों पानी-पुरी इस देश की ज्यादातर आबादी के मुंह लगी है। यह हकीकत में धर्म निरपेक्ष है और अपने झन्नाटेदार स्वाद और उसे खाने की बेतकल्लुफ अदा के कारण हर दिल अजीज है। और फिर गुजरात में तो पानी-पुरी तक तक में बिजनेस नवाचार हो चुका है।

पिछले ही साल बापू के जन्मस्थान पोरबंदर में एक गोल गप्पा व्यवसायी ने जियो रिलायंस अनलिमिटेड की तर्ज पर दो स्कीमें लांच की थीं। जिसके तहत पहली स्कीम में ग्राहक 100 रुपये में डेली और हजार रुपये में पूरे माह अनलिमिटेड गोल गप्पे खा सकते थे। बताया जाता है कि इस स्कीम के बाद अंबानी की तरह उसका धंधा भी खूब फला-फूला।

भारतीय संस्कृति पर गर्व करने वालों के लिए भी पानी-पुरी देशाभिमान का विषय इसलिए है ‍कि पिज्जा बर्गर के दौर में भी पानी-पुरी अपनी हैसियत कायम रखे हुए है। इसका आविष्कार भी भारतीयों ने ही किया है। भरी सड़क पर किसी खोमचे पर बेतकल्लुफी के साथ पानी-पुरी खाना हम भारतीयों की जीवटता की निशानी है। इसे खाने वाले की रससिक्त मुद्राएं जीवन के प्रति रस जगाती हैं।

बताया जाता है कि प्राचीन काल में पानी-पुरी सबसे पहले पानी मगध (आज का दक्षिण बिहार) में बनाई गई। वहां इसे फुल्की नाम से ही जाना जाता है। पानी-पुरी के जन्म की एक कथा महाभारत आख्यान से भी जुड़ती है। कहते हैं कि जब द्रौपदी शादी के बाद ससुराल आई तो पांडव वनवास में थे। तब सास कुंती ने नई बहू से वहां उपलब्ध आटे और आलू से ही कुछ खाने के लिए बनाने को कहा। तब कुंती ने पानी-पुरी (फुल्की) बनाई। तब से आज तक यह हमारी खाद्य संस्कृति का अहम हिस्सा है।

पाक शास्त्र की दृष्टि से भी पानी-पुरी बनाने की विधि बहुत कठिन नहीं है। आजकल तो यह मशीन से भी बनती है। रवे और मैदे से बनी पानी-पुरी ज्यादा खस्ता होती है। पानी-पुरी के भी कई प्रकार हैं, जैसे खट्टी पानी पूरी, मीठी पानी-पुरी, तीखी पानी-पुरी आदिा। यूं खाली पूरी भी खाने में अच्छी लगती है, लेकिन बिना चटपटे पानी के वह वैसी ही है जैसे बिना चाशनी के जलेबी। दरअसल पानी-पुरी का पानी ही स्वाद की असली कसौटी है।

पानी और पूरी का रिश्ता तबले और डग्गे जैसा है। इसका पानी उसे बनाने वाले के हाथ (और पसीने का भी) का कमाल होता है। अमूमन इसे इमली, सोंठ, पुदीना, गुड़ और नमक आदि मिलाकर बनाया जाता है। कुछ लोग तीखा पानी पसंद करते हैं तो कुछ खट्टे-मीठे स्वाद वाला। आजकल इसके मॉडर्न वर्जन जैसे पानी-पुरी मार्गरीटा, पानी-पुरी शॉट्स और चॉकलेट पानी-पुरी भी आ गए हैं। यहां तक कि आइसक्रीम पानी-पुरी भी लोकप्रिय हो रही है। हालांकि पानी-पुरी को हाई कैलोरी फूड माना जाता है।

लेकिन स्वाद की दुनिया के सिपाही ऐसी बातों से डरा नहीं करते। पानी-पुरी खुद स्त्रीलिंगी शब्द है और इस नाते वह महिलाओं की भी पहली पसंद है। चाट की दुकानों में सबसे ज्यादा जमावड़ा इन्हीं का मिलेगा। तीन साल पहले झांसी में एक किशोरी ने इसलिए खुदकुशी कर ली थी कि घर वालों ने उसे पानी-पुरी खाने के ‍लिए पैसे देने से इंकार कर दिया था। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पानी-पुरी बिजनेस की सही-सही जानकारी होती तो वे युवाओं को पकौड़ों के बजाए पानी-पुरी बनाने की सलाह देते।

इस पानी-पुरी महात्म्य के बावजूद अगर बडोदरा नगर पालिका ने इस पर रोक लगाने की हिमाकत की है तो पानी-पुरी सम्प्रदाय इसे स्वीकार नहीं करेगा। क्यों‍कि यह एक ऐसा व्यंजन है, जिसमें सफाई से ज्यादा स्वाद की अहमियत है। दस्ताने पहन कर गोल गप्पे परोसना वैसा ही है जैसा कि कैलोरी चार्ट देखकर रबड़ी खाना। ऐसी चीजों का केवल भरपूर आनंद लिया जाता है। ऐसा आनंद, जो खाने के सुरूर को अपने चरम पर पहुंचा दे।

यह तो खाए जाओ वाली संस्कृति का अग्रदूत है। पानी-पुरी की बिक्री पर रोक लगाई जा सकती है। लेकिन उनका क्या, जो पानी-पुरी के लिए ही जी रहे हैं? किसी कवि ने कहा भी है- चल तो देते हम भी हिमालय ये मोह सब त्याग के, पानी-पुरी तेरा ही फिर खयाल ज़हन में आ जाता है।

(सुबह सवेरे से साभार)

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