हम भूखे हैं तो क्या हुआ, दिल वाले हैं!

राकेश अचल

दुनिया भर के भूखों की फेहरिस्‍त में हम जहाँ थे, वहां से और आगे बढ़ गए हैं। भूख हमारा प्रिय शगल है इसलिए ही हमने ये उपलब्धि हासिल की है और आप हैं कि रंज कर रहे हैं। वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में हम 94वें स्थान पर है और भूख की ‘गंभीर’ श्रेणी में है। पिछले साल 117 देशों की सूची में भारत का स्थान 102वां था। अर्थात हमने तरक्की की है। हम भूख के मामले में और नीचे -ऊपर हो सकते हैं।

सूचकांक कहता है कि पड़ोसी बांग्लादेश, म्यामांर और पाकिस्तान भी ‘गंभीर’ श्रेणी में हैं। लेकिन इस साल के भूख सूचकांक में भारत से ऊपर हैं। बांग्लादेश 75वें, म्यामांर 78वें और पाकिस्तान 88वें स्थान पर हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल 73वें और श्रीलंका 64वें स्थान पर हैं। दोनों देश ‘मध्यम श्रेणी में आते हैं। चीन, बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत सहित 17 देश भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में शीर्ष रैंक पर हैं।

भूख तो भूख है, इसके लिए क्या रोना? रिपोर्ट कहती है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.7 प्रतिशत थी। इसके अलावा ऐसे बच्चों की दर 37.4 थी जो कुपोषण के कारण नहीं बढ़ पाते। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के लिए 1991 से अब तक के आंकड़ों से पता चलता है कि वैसे परिवारों में बच्चों के कद नहीं बढ़ पाने के मामले ज्यादा हैं जो विभिन्न प्रकार की पोषण संबंधी कमी से पीड़ित हैं। इनमें पौष्टिक भोजन की कमी, मातृ शिक्षा का निम्न स्तर और गरीबी आदि शामिल हैं। अब साहिब बच्चों का कद न बढ़े तो न बढ़े, हमारे नेताओं का कद तो लगातार बढ़ ही रहा है। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।

भूख ही है जिसका असर भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर पर भी पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समय से पहले जन्म और कम वजन के कारण बच्चों की मृत्यु दर विशेष रूप से गरीब राज्यों और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि खराब क्रियान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी की कमी और कुपोषण से निपटने के लिए दृष्टिकोण में समन्वय का अभाव, अक्सर खराब पोषण सूचकांकों का कारण होते हैं।

भूख बढ़ाने-घटाने में हमारे राम-राज वाले उत्तर प्रदेश का बड़ा हाथ है क्योंकि भारत में पैदा होने वाला हर पांचवां बच्चा उत्तर प्रदेश से है। इसलिए यदि उच्च आबादी वाले राज्य में कुपोषण का स्तर अधिक है तो यह भारत के औसत में बहुत योगदान देगा। स्पष्ट है कि तब भारत का औसत धीमा होगा। अब इसके लिए हम और आप किसी योगी को तो जिम्मेदार ठहरा नहीं सकते। ये तो भगवान की लीला है। भगवान तो भगवान है। वो जिसे जैसा चाहे रख सकता है। भगवान से तो कोई भी कुछ नहीं कह सकता, न हम, न आप?

न्यूट्रीशन रिसर्च की प्रमुख श्वेता खंडेलवाल कहती हैं कि देश में पोषण के लिए कई कार्यक्रम और नीतियां हैं, लेकिन जमीनी हकीकत काफी निराशाजनक है। उन्होंने कहा कि पौष्टिक, सुरक्षित और सस्ते आहार तक पहुंच को बढ़ावा देना, मातृ और बाल पोषण में सुधार लाने के लिए निवेश करना, बच्चे का वजन कम होने पर शुरुआती समय में पता लगाने और उपचार के साथ ही कमजोर बच्चों के लिए पौष्टिक और सुरक्षित भोजन महत्वपूर्ण हो सकते हैं। श्वेता जी को पोषण कार्यक्रमों की हकीकत का शायद पता ही नहीं है। ये पोषण कार्यक्रम ही हैं जिनकी वजह से देश का लोकतंत्र मजबूत हुआ है। लोकसेवक मजबूत हुए हैं, और इतने मजबूत हुए हैं कि कहीं-कहीं तो पांच साल में दो बार चुनाव लड़ सकते हैं। एमपी में लड़ ही रहे हैं न!

गोया कि हम विश्व गुरु बनने वाले हैं इसलिए भारत के खिलाफ भूख-भूख का हल्ला मचाया जा रहा है। हमारे यहां भूख से कोई मरता ही नहीं है। जो मरता है बीमारी से मरता है। आपको यकीन न हो तो चलिए आगरा के कलेक्टर से पूछ लेते हैं। वहां एक बच्ची के भूख से मरने की खबर थी। आगरा के डिस्ट्रिक्‍ट मजिस्‍ट्रेट का दावा है कि बच्‍ची की मौत बीमारी की वजह से हुई। पांच साल की बच्ची की जिस दिन मौत हुई, उस दिन उसे दूध पिलाया गया था। डिस्ट्रिक्‍ट मजिस्‍ट्रेट ने कहा, ‘हमें पता चला है कि बच्‍ची को उल्टियां हो रही थीं और उसे छह दिन से डायरिया था। जिस दिन बच्‍ची की मौत हुई थी, उस दिन उसने दूध पिया था लेकिन उसे उल्‍टी हो गई। बच्‍ची की मां दैनिक मजदूर के तौर पर काम करती है। जब तक वह घर पहुंची, बच्‍ची की मौत हो चुकी थी। परिवार गरीब है लेकिन बच्‍ची की मौत बीमारी की वजह से हुई है। ‘

अब बताइये कि हम अपने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की बात सच मानें या वैश्विक सूचकांक बनाने वालों की। भारत में भुखमरी कोई समस्या है ही नहीं। यहां अनाज न हो तो भी लोग घास-फूस खाकर भूख से लड़ सकते हैं, लेकिन भूख से मर नहीं सकते। घास-फूस में सबसे ज्यादा न्यूट्रिशन होता है ये शायद मैडम खंडेलवाल को नहीं मालूम। वे नहीं जानतीं कि भूखे लोग भजन नहीं कर सकते और हमारे यहां भजन करने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे यहां कोई भूखा नहीं है। ये सूचकांक गलत है।

हम गीत सम्राट गोपालदास नीरज के देश के लोग हैं। हम जानते हैं कि-
‘तन की हवस मन को गुनाहगार बना देती है,
बाग के बाग़ को बीमार बना देती है
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो
भूख इन्सान को गद्दार बना देती है’

आखिर हम किसी को भूखा क्यों रहने देंगे। यदि हम भूखे होते तो क्या आठ महीने कोरोनाकाल में सब कुछ ठप्प होने के बाद कोरोना से लड़ सकते थे। कोरोनाकाल में हमारे यहां भूख से एक आदमी नहीं मरा, हाँ कोरोना से जरूर 1, 14, 064 लोग मर गए, जबकि इस मामले में हम अभी भी अमेरिका से पीछे हैं। जाहिर है कि हम सबका ख्याल रखते हैं। हम चाहें तो एक छलांग में अमेरिका को पछाड़ सकते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं कर रहे। आखिर दोस्ती भी तो कोई चीज होती है! हमारे पास भगवान का दिया सब कुछ है।

हम भूख से क्योंकर मरने लगे? हमारी मांग है कि वैश्विक भूख सूचकांक से हमारा नाम हटाया जाये या फिर हमारी पोजीशन सुधारी जाये, अन्यथा हम इस सूचकांक का बहिष्कार कर देंगे, इस पर पाबंदी लगा देंगे। ये सूचकांक अपमानजनक है, किसी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है। हमें बदनाम करने की कोशिश है। पिछले कई सालों से हम देख रहे हैं कि लोग हमसे जलते हैं। जो भी सूचकांक बनाते हैं हमें सबसे नीचे रख देते हैं, फिर चाहे वो खुशियों का सूचकांक हो या भूख का। हम खाते-पीते लोग हैं। हमारे यहां कोई न दुखी है और न भूखा। हमारे यहां तो राम राज है। राम राज बैठे तिरलोका। हर्षित भये, गए सब सोका।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here