31 अक्टूबर को जब भोपाल में एक लड़की से गैंग रेप हुआ था और 24 घंटे तक उसकी रिपोर्ट न लिखते हुए उसे एक थाने से दूसरे थाने तक टल्लाया गया था, तो उस घटना को लेकर बाद में, सरकार और पुलिस प्रशासन ने बहुत छातीकूट अंदाज में स्यापा करते हुए भाषण झाड़े थे कि पुलिस को संवेदनशील बनाना होगा। पुलिस का काम जनता की सेवा करना है, उन्हें जनता के साथ बेहतर तरीके से पेश आना चाहिए।
उस घटना के ठीक एक दिन पहले प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने एक राज्यस्तरीय कार्यक्रम में भाषण दिया था कि पुलिस वाले बेहद तनाव से गुजर रहे हैं, इसका असर उनके काम और उनके परिवार दोनों पर पड़ रहा है, लिहाजा पुलिसवालों में तनाव कम करने के उपाय किए जाने चाहिए। वैसे भी इसके लिए कुछ ट्रेनिंग टाइप टोटकों की बात तो समय समय पर होती ही रहती है।
लेकिन ऐसा लगता है कि या तो पुलिस वाले खुद तनाव में रहना चाहते हैं या फिर उन्हें लगता है कि तनाव में रहे बगैर पुलिसगीरी नहीं की जा सकती है। जो तनाव में न हो वह पुलिस वाला ही क्या? मूछों पर ताव और चेहरे पर तनाव यही तो एक आदर्श पुलिस वाले की पहचान है।
आप जब पुलिस को तनाव रहित बनाने की बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि लोगों को कानूनी और गैरकानूनी के मतलब समझाने वाली इस बिरादरी से उसकी पहचान छीनी जा रही है। दरअसल हमारा समाज ही ऐसा ढीठ है कि उसे ‘ठीक से समझाने’ के लिए पुलिस का तनाव में रहना और उनसे तनावपूर्ण व्यवहार करना ही एकमात्र तरीका है। जो बात चार लात खाकर भी लोग नहीं बताते, वो पुचकार से कैसे उगल देंगे?
और यही वजह रही होगी जब सोमवार को एक बार फिर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की पुलिस को गांधीनगर इलाके में अपना असली तनावपूर्ण चेहरा दिखाना पड़ा। किस्सा यह है कि गांधीनगर इलाके में पारदी समाज की बस्ती है। वहां कुछ दिन पहले तार चोरी के एक मामले में पुलिस जांच के लिए गई और उसने इंदरमल नामक महिला पर चोरी का आरोप लगाते हुए उसे थाने बुलाया।
महिला का आरोप था कि पुलिस कई दिनों से उसे इस मामले को लेकर परेशान कर रही थी। पुलिस के इस रवैये के खिलाफ बस्ती के लोगों ने 14 नवंबर को कलेक्टर को ज्ञापन भी दिया था। लेकिन कलेक्टर के यहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई और पुलिस की हरकतें जारी रहीं। शुक्रवार को भी पुलिस वाले महिला के घर पहुंचे और ‘पूछताछ’ की।
रोज रोज की ‘पूछताछ’ से तंग आकर इंदरमल ने पुलिस वालों को चेतावनी दी कि यदि उन्होंने बार बार आना और परेशान करना बंद नहीं किया तो वह खुद को आग लगाकर अपनी जान दे देगी। उसकी इस धमकी का पुलिसवालों पर कोई असर नहीं हुआ, उलटे कथित रूप से एक पुलिस वाले ने उसे माचिस पकड़ाते हुए कहा, ले लगा ले आग। महिला ने इस पर खुद को जलाने की कोशिश की। एक बार तो उसकी बेटी ने माचिस छीन ली, लेकिन दूसरे पुलिस वाले ने फिर उसे माचिस सौंप दी जिसके बाद महिला ने खुद को आग लगा ली।
गंभीर रूप से जली हुई महिला को अस्पताल में भरती कराया गया जहां उसने रविवार को दम तोड़ दिया। महिला के मरने की खबर फैलते ही बस्ती के लोग उग्र हो गए। पहले वे इस मामले में कार्रवाई की मांग को लेकर सोमवार सुबह पुलिस मुख्यालय पहुंचे, लेकिन वहां भी जब उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई तो बस्ती में पहुंचकर उन्होंने थाने को घेर लिया।
घेराव के दौरान भीड़ की तरफ से पथराव हुआ और पुलिस ने भी बल प्रयोग किया। इसमें दोनों ओर के कई लोग घायल हुए हैं। घटना के बाद महिला का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वह जली हुई अवस्था में अस्पताल में बता रही है कि पुलिस वाले उससे 20 हजार रुपए की मांग कर रहे थे। रोज रोज परेशान किए जाने से वह तंग आ चुकी थी।
इस मामले में सच क्या है यह तो पूरी जांच के बाद ही पता चल सकेगा। लेकिन इस घटना से फिर पुलिस प्रशासन पर कई सवाल उठ रहे हैं। अव्वल तो यदि बस्ती में कोई अशांति थी, तो उसका समय रहते हल निकाला जाना चाहिए था। ऐसा नहीं है कि बस्ती वालों ने अपनी शिकायत दर्ज कराने के ‘उचित माध्यम’ न अपनाए हों। उन्होंने कलेक्टर को भी ज्ञापन दिया था और वे अपनी बात रखने पुलिस मुख्यालय भी गए थे।
यदि समय रहते मामले की सुनवाई हो जाती तो हो सकता है एक महिला को न अपनी जान देनी पड़ती और न ही थाने के घेराव, पथराव,लाठीचार्ज आदि की कोई नौबत आती। दूसरे सबसे गंभीर बात, महिला की इस धमकी पर कि वह खुद को आग लगा लेगी, पुलिस वालों द्वारा कथित रूप से उसे माचिस थमा दिया जाना है। यह हद दर्जे की क्रूरता है।
यह सच है कि कुछ जरायमपेशा जातियां आदतन अपराधों में लिप्त होती हैं। कई बार इस तरह की बस्तियों और डेरों से चोरी का माल बरामद होने के साथ ही अपराधों के महत्वपूर्ण सुराग भी मिले हैं। लेकिन इससे बस्ती के सभी लोगों को 24 घंटे अपराधी ही मानकर चलना भी तो ठीक नहीं है। पुलिस इन जरायमपेशा जातियों को जिस नजर से देखती है, वैसा ही हाल खुद उसका भी तो है। हमारी यहां पुलिस खुद भी तो जरायमपेशा की तरह ही बर्ताव कर रही है।
पुलिस का ध्येय वाक्य है देशभक्ति और जनसेवा। गांधी नगर में जो घटना हुई उसमें कौनसी देशभक्ति और जनसेवा की भावना है क्या कोई इसे स्पष्ट करने की जहमत उठाएगा? और यदि आत्मदाह की चेतावनी देने वाली महिला को शौक से ऐसा करने की इजाजत देते हुए माचिस सौंपी जा सकती है तो क्या कोई यह बताएगा कि ऐसे ही यदि आपको माचिस सौंप दी जाए तो?