दुनिया भर से आ रही आर्थिक मंदी की खबरों, अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध, ईरान पर वैश्विक प्रतिबंधों के चलते खाड़ी में तनाव और भारत व पाकिस्तान के बीच कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे को लेकर बढ़ रही तनातनी के बीच दुनिया के कई देश इन दिनों न्यूयार्क में एक ऐसे अहम मसले पर बात कर रहे हैं जिससे समूची मानवता या यूं कहें कि पूरी पृथ्वी का भविष्य जुड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 23 सितंबर से शुरू जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन 2019 से पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने विश्व नेताओं से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने और वर्ष 2050 तक नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य करने के लिए ठोस समाधान सुझाने की अपील की थी। सम्मेलन के दौरान उन्होंने कहा कि धरती कराह रही है… हमें यह सब तत्काल रोकना होगा। समय हाथ से निकल रहा है, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है, हम अब भी चेत जाएं।
इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि भारत 2022 तक 450 गीगावॉट की रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन करेगा। मोदी ने जोर दिया कि अब बात करने का समय निकल चुका है हम यदि धरती को बचाना चाहते हैं तो हमें कुछ करके दिखाना होगा। पर्यावरण को बचाने के लिए दुनिया भर में बातें तो बहुत हो रही हैं लेकिन ठोस प्रयास उतने नहीं हो रहे। इसी सिलसिले में उन्होंने भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध और जल संरक्षण के लिए अगले कुछ सालों मे 50 मिलियन डॉलर खर्च करने की भी बात कही।
सम्मेलन के पहले ही दिन दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इनमें से पहली थी, मोदी के भाषण के दौरान, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बगैर किसी पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के सम्मेलन में पहुंचना। ट्रंप ने मोदी का भाषण ध्यान से सुना। वे मोदी के भाषण के बाद हुए जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का भाषण पूरा होने तक वहां रुके रहे। उसके बाद बाहर आकर उन्होंने कहा- पर्यावरण बचाने के लिए सभी देशों को खुद अपने स्तर पर प्रयास करना होंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति का अचानक सम्मेलन में पहुंचना इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद से ही पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को लेकर अमेरिकी नीतियों में जबरदस्त बलदाव आया है। एक समय था जब अमेरिका एक तरह से इस मामले में दुनिया की अगुवाई कर रहा था। लेकिन ट्रंप ने उस नीति से न सिर्फ अलग लाइन ली बल्कि अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से भी अलग कर लिया। इससे पूरे अभियान को बड़ा झटका लगा। ऐसे में ट्रंप का सम्मेलन में पहुंचना इस बात का संकेत हो सकता है कि ट्रंप प्रशासन इस मामले पर एक बार फिर सकारात्मक रुख अपना सकता है।
लेकिन सम्मेलन में ट्रंप की मौजूदगी से भी ज्यादा चर्चा, स्वीडन की युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के भाषण की रही। 16 साल की ग्रेटा दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण आंदोलन का युवा चेहरा बनकर उभरी हैं। ग्रेटा ने दुनिया भर के नेताओं को चेतावनी दे डाली कि यदि आपने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस निर्णय नहीं लिया तो विश्व भर के युवाओं के साथ धोखा होगा और वे कभी भी आपको माफ नहीं करेंगे।
ग्रेटा ने विश्व भर के नेताओं की तीखी आलोचना की और कहा कि आपकी अब तक हिम्मत कैसे हुई कि आपने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। आपने अनगिनत बच्चों के सपनों को अपने लुभावने वायदे से कुचल डाला। हम सबकी आंखें आप लोगों पर हैं और अगर आपने हमें फिर से असफल किया तो हम आपको कभी माफ नहीं पाएंगे।
ग्रेटा की पीढ़ी की चिंताएं वाजिब हैं। हम अपनी अगली पीढ़ी को जो दुनिया सौंपकर जाने वाले हैं उसके बारे में हम खुद ही निश्चित नहीं हैं कि वह उनके रहने लायक होगी या नहीं होगी। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से लेकर हवा, पानी जैसे बुनियादी और अनिवार्य प्राकृतिक तत्वों को प्रदूषित करने जैसे जो अपराध हुए हैं उनकी सजा अगली पीढ़ी को ही भोगनी है।
लेकिन ग्रेटा की पीढ़ी को सिर्फ पुरानी पीढ़ी को दोष दे देने या उसे जिम्मेदार बता देने से ही काम नहीं चलने वाला। पर्यावरण और जलवायु संरक्षण जैसे मुद्दे तुमने या हमने जैसे खांचों में बांटकर देखने वाले नहीं हैं। 16 साल की ग्रेटा का इस मुद्दे पर चिंतित होना लाजमी है और वह उम्मीद भी जगाता है। लेकिन ग्रेटा की पीढ़ी को यह भी देखना होगा कि उनकी अपनी पीढ़ी प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में कितना बड़ा रोल अदा कर रही है।
चूंकि बात पीढि़यों को लेकर उठाई गई है इसलिए तमाम गलतियों का दोष अपने सिर पर लेने के साथ ही पुरानी पीढ़ी की इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि उसने प्रकृति के साथ उतना खिलवाड़ नहीं किया जितना आज हो रहा है। उसने प्लास्टिक या थर्मोकोल की प्लेट के बजाय पत्तल को चुना था, कप के बजाय मिट्टी के कुल्हड़ का उपयोग किया था।
उस पीढ़ी ने पेट्रोल, डीजल और बिजली का भी उतना उपयोग या उपभोग नहीं किया था जितना आज की पीढ़ी कर रही है। वह पीढ़ी उपभोक्तावाद और उपभोगवाद का उतना शिकार नहीं थी जितना आज की पीढ़ी है। आज प्लास्टिक और पॉलीथीन के साथ साथ खान पान की पाउच संस्कृति पर्यावरण को क्या कम नुकसान पहुंचा रही है? और इनका ज्यादातर उपयोग कौनसी पीढ़ी कर रही है?
कुछ माह पहले कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के एक अध्ययन के हवाले से बताया गया था कि 2040 तक स्मार्टफोन्स और डेटा सेंटर जैसी इन्फर्मेशन और कम्यूनिकेशन टैक्नॉलजी (आईसीटी) पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगी। इस स्टडी से पता लगा कि न सिर्फ सॉफ्टवेअर के कारण आईसीटी का उपयोग बढ़ रहा है, बल्कि इससे भारी मात्रा में प्रदूषण भी फैल रहा है। अभी कुल प्रदूषण में इसका योगदान 1.5 फीसदी है, लेकिन यही ट्रेंड चलता रहा तो 2040 तक कुल ग्लोबल कार्बन फुटप्रिंट में आईसीटी का योगदान 14 फीसदी होगा जो दुनिया भर के ट्रांसपॉर्टेशन सेक्टर का लगभग आधा होगा।
ऐसे में ग्रेटा और उनकी पीढ़ी की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि इस तकनीक और इससे जुड़े संसाधनों का सबसे ज्यादा उपयोग यही पीढ़ी कर रही है। रही ग्रेटा की पीढ़ी के इस सवाल की बात, कि आपने हमारी पीढ़ी को क्या दिया, तो उसका जवाब यह है कि पुरानी पीढ़ी ने तो यह सवाल कर सकने लायक ग्रेटा जैसी पीढ़ी दे दी, पता नहीं ग्रेटा की पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी के लिए यह गुंजाइश भी छोड़ पाएगी या नहीं।