मैं कंगना और रिया दोनों के अधिकार का सम्‍मान करता हूं

रमाशंकर सिंह

मैं इस पर कोई भी चर्चा नापसंद करता हूँ कि कौन किसके घर कब कब रहा? यह दो लोगों की निजी ज़िंदगी है और उस पर बोलने का अधिकर किसी को नहीं है। लेकिन यह ख़ास बात किसी के भी व्यक्तित्व का कुछ हद तक परिचायक तो है ही कि जब गर्दिश में हों और संघर्ष कर रहे हों तो मदद के बदले में किसी को भी बाप बनाने को तैयार हो जायें और जैसे ही सफलता के पायदान पर पहुँचें तो उसी बाप को बुरी बुरी गालियाँ देने लगें। टीवी पर लंबे लंबे मसालेदार इंटरव्यू दें कि लोग चटखारे लेकर सुनें और किसी ख़ास चैनल की टीआरपी बढ़े।

यह भी विवाद या सार्वजनिक बहस का विषय नहीं बनना चाहिये कि कोई स्त्री अपने जीवन में कितने पुरुष मित्रों के साथ लिवइन में रही या रहती है। यह चर्चा ही घोर बदसूरत और असभ्य है। लेकिन जिस शहर ने आपको इस मुक़ाम पर पहुँचाया है कि पहाड़ की एक असफल लड़की अपनी महत्वाकांक्षाओं को पंख लगाते हुये फ़िल्मी सफलता के कारण करोड़ों अरबों की मालकिन बन गई, वही शहर अकारण ही पीओके या मिनी पाकिस्तान लगने लगा।

मुंबई जैसी भी हो, आज भी किसी मामूली परिवार की संतानों के लिये सपनों का शहर है, जो सबको अपना लेता है। जिसे कहीं काम न मिले वह मुंबई, कलकत्ता, दिल्ली जैसे शहरों में आकर गुजरबसर कर ही लेता है और मेहनत के बूते अपने लिये सम्मानजनक ठौर भी बना लेता है। खुद कंगना का सफल अस्तित्व यह सिद्ध करता है कि मुंबई में मेहनत व प्रतिभा को कभी दबाया नहीं जा सकता और बग़ैर प्रतिभा के किसी को टिकाया नहीं जा सकता।

मान लीजिये कि आज की मौजूदा सरकार न होती तो क्या ये आवाज़ें इस घृणित वैचारिक रूप में कभी मुखरित हो पातीं, जब कि सब जान रहे हैं कि निशाना कहीं अन्य दूसरे स्थान पर है एवं शुद्ध राजनीतिक है। चलिये आधुनिक वीरांगना को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल गई जिसका भुगतान हम टैक्स पेयर करेंगें! आज किसी भी महिला के कम कपड़ों या छोटे कपड़ों में पुराने फ़ोटो साझा कर उसका चरित्र हनन नहीं किया जा सकता जैसा कि हम सोशल मीडिया पर आज देख रहे हैं।

एक बात ज़रूर गाँठ बाँध लीजियेगा कि समय पलटने पर ऐसे लोग वैसी ही, वही गंदी गंदी बातें आज के तीसमारखांओं के लिये, इतनी ही वाचालता के साथ मिर्च मसाला लगाते हुये करेंगे, क्योंकि जिसे यह आदत पड़ गई है कि काम निकालो और इतनी ज़ोर से गाली बको कि सहानुभूति में नये लोग जुड़ जायें, उसकी कोई मर्यादा व सीमा नहीं होती है।

मैं इस समय जितनी ताक़त से रिया चक्रवर्ती की निजता गरिमा और मानवाधिकार की वकालत कर रहा हूँ, उतनी ही प्रतिबद्धता से कंगना रनौत के अधिकारों की रक्षा भी करना चाहूँगा। चाहे मैं उसके निजी विचारों से कितना ही घोर असहमत रहूँ। भारत को नारी मर्यादा के सवालों पर अब तो एक वयस्‍क और संजीदा/गंभीर रुख़ अपनाना ही चाहिये। आख़िरकार यह 21वीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत की ओर जा रहा है।

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