राकेश दुबे
कितने आश्चर्य की बात है, भारत और उसके सर्वाधिक साक्षर राज्य केरल में इस 21 वीं सदी में अमीर बनने की लालसा में तन्त्र और नरबलि जैसे जघन्य अपराध हो रहे हैं। यह घटना उन तमाम उपलब्धियों व साक्षरता के लक्ष्यों पर पानी फेरती है, जिसके दावे सरकारें करती हैं। इसमें अमीर बनने की लालसा लिये एक दंपति ने अपराधी तांत्रिक की मदद से दो महिलाओं की बलि दे दी। इस अपराध ने देश में सबसे ऊंची साक्षरता दर वाले केरल को ही शर्मसार नहीं किया, पूरे देश को असहज स्थिति में डाल दिया।
यह बात अलग है कि वास्तविक तथ्य व्यापक जांच के बाद सामने आएंगे, लेकिन जो पिशाची कृत्य इन अपराधियों द्वारा किये गये, उनसे हर इंसान की रूह कांपती है। कई अपराधों में वांछित एक यौन अपराधी कैसे सार्वजनिक रूप से विज्ञापन देकर तंत्र-मंत्र से अमीरी लाने का भरोसा देता है और कैसा वो दंपति था जिसने मान लिया कि नरबलि से अमीरी आ सकती है? बलि चढ़ाई गई महिलाओं के शरीर से क्रूरता के किस्से हर किसी संवेदनशील इंसान को झकझोरते हैं। यदि आधुनिक तकनीक की मदद न मिलती तो यह अपराध कभी भी सामने न आ पाता।
मोबाइल फोन व सीसीटीवी कैमरे की मदद से यह सत्य सामने आ सका कि मानव स्वार्थों के लिये किस हद तक पतनशील हो सकता है। एक वृद्धा के यौन उत्पीड़न के आरोप में जेल की सजा काट चुका कथित तांत्रिक अमीरी के ख्वाब देख रहे दंपति को इस हद तक भ्रमित कर गया कि एक के बाद दूसरी महिला की बलि देने के लिये तैयार कर लिया। एक समय था आजादी से पहले भारत की छवि सांप-सपेरों व तंत्र-मंत्र के देश के रूप में बनायी जाती थी। आजादी के बाद देश की विकास यात्रा ने इस मिथ को झुठलाया। ऐसी घटनाएं हमारी तमाम उपलब्धियों पर आंच लाती हैं।
पिछले दिनों दिल्ली में भी एक बच्चे की बलि देने की घटना ने देश को उद्वेलित किया था। आखिर वामपंथी सरकार वाले प्रगतिशील केरल में तंत्र-मंत्र की ऐसी वीभत्स घटनाओं के लिये कोई सख्त कानून क्यों नहीं बन पाया? बताया जाता है कि राज्य में बड़ी संख्या में अंधविश्वास व तंत्र-मंत्र की घटनाओं को रोकने के लिये राज्य विधि आयोग ने ड्राफ्ट बिल 2019 में गृह मंत्रालय को भेजा था। जो अभी टप्पे खा रहा है।
यह घटना कई सवालों को जन्म देती है। आखिर क्यों कोई व्यक्ति सोच लेता है कि धन-संपदा अर्जित करने का शार्टकट तंत्र-मंत्र हो सकता है? आखिर क्यों साक्षर व्यक्ति की भी सोच सोलहवीं सदी की है जो अब तक नहीं बदल पा रही है। कैसे फर्जी तांत्रिक समाज में खुले प्रचार-तंत्र का सहारा लेकर जघन्य अपराधों को अंजाम दे देते हैं और पुलिस-प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं मिलती या वे मूक दर्शक बने रहते हैं। कहीं न कहीं यह सब अंधविश्वास का विस्तार, समाज में एक तबके की दकियानूसी सोच व अज्ञान का ही परिचायक है।
देश में पहले यह धारणा रही है कि पिछड़े व शिक्षा के प्रकाश से दूर इलाकों में ऐसी घटनाएं अज्ञान के चलते सामने आती हैं, लेकिन जब देश के सबसे साक्षर राज्य केरल में ऐसी घटनाएं होती हैं, तो तमाम तरह के यक्ष प्रश्न खड़े हो जाते हैं। इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिये जहां समाज में वैज्ञानिक चेतना के प्रसार-प्रचार की जरूरत है, वहीं अपराध को रोकने के लिये कड़े कानूनों का भी प्रावधान जरूरी है।
अब समाज में ऐसी स्थिति बनाने की जरूरत है कि कोई तंत्र-मंत्र का सार्वजनिक प्रचार करके भोले-भाले लोगों को शिकार न बना सके। विडंबना है कि इन हादसों का शिकार तमाम ऐसे भोले-भाले लोग होते हैं जिनका कोई कसूर नहीं होता। कसूर होता है तो यह कि वे किसी के झांसे में आसानी से आ जाते हैं। सरकार को सूचना माध्यमों के जरिये ऐसे पाखंडी तांत्रिकों की कारगुजारियों पर लगाम लगाने के लिये राष्ट्रव्यापी मुहिम चलाने की जरूरत है। अज्ञान और कूपमंडूकता की स्थिति को दूर करने के लिये समाज के प्रगतिशील संगठनों को आगे आने की दरकार है। जिसके लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का बखूबी उपयोग किया जा सकता है।
(मध्यमत)
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