एक समय होलकर राज्य में राजा ने घोषणा की कि वह इंदौर के शिव मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा। इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दी, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने सर सेठ हुकम चंद जी से 6000 रुपये का कर्ज लिया ।
नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए! पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी मन ही मन बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने !!
वह बहुत चिंतित हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा। वह सर सेठ हुकम चंद के पास गया और उनसे उपाय पूछा। हुकम चंद सेठ ने एक उपाय पुजारी जी को कान में बता दिया!! पुजारी ने अगले दिन पूरे इंदौर में ढिंढोरा पिटवाया कि राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं।
लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी, तो बोली लगने लगी। हुकमचंद सेठ ने 10,000 रुपये से बोली शुरू की। बोली बढ़ते बढ़ते 50,000 रुपये तक पहुंची और पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने से इनकार कर दिया तो यह बात राजा के कानों तक पहुंची ।
राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और कहा कि तुम उस वस्तु को नीलाम मत करो। मैं तुम्हें 50,000 रुपये के बजाय सवा लाख रुपए देता हूं। इस प्रकार राजा ने सवा लाख रुपए देकर प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया! कहते हैं तभी से यह मुहावरा चल पड़ा- बंद मुट्ठी सवा लाख की खुल गई तो खाक की !!
(सोशल मीडिया से साभार)