मेगा पैकेज: गरीबों की तत्काल जरूरतें कैसे पूरा करेगा?

अजय बोकिल

देर से ही सही मोदी सरकार ने देशव्यापी लॉक डाउन के चलते गरीबों के लिए मेगा पैकेज घोषित कर जहां इस मुद्दे पर अब किसी भी राजनीति की संभावना पर विराम लगा दिया है, वहीं इसमें छिपा संकेत यह है कि लॉक डाउन लंबा खिंच सकता है। यानी कि मामला 21 दिन के आगे 2 माह तक भी जा सकता है। इसका सीधा मतलब यह है कि सरकार कोरोना से हरसंभव तरीके से लड़ने को तैयार है और जनता की भी इसमें पूरी सहभागिता चाहती है। गरीबों की मदद के बगैर यह लड़ाई अधूरी ही होती।

यह ठीक भी है, क्योंकि यह लड़ाई जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए ही है। हमारे सामने चीन का ताजा उदाहरण है, जिसने तमाम आलोचनाओं को दरकिनार कर पूरी ताकत से कोरोना को फिलहाल तो काबू कर ही लिया है। कम से कम कोरोना के मामले में चीन की खूबियां और खामियां हमारे लिए सबक हैं। फर्क यह है कि चीन में गरीबों की आबादी हमारे यहां की तुलना में काफी कम है। इसलिए वहां कोरोना से लड़ने का यह एंगल ज्यादा चुनौती भरा नहीं था। चीन में आज कुल आबादी के मात्र 1.7 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे (चीनी मानदंडों के अनुसार) रहते हैं जबकि भारत में यही संख्या कुल आबादी का करीब 22 फीसदी है। यानी लगभग 26 करोड़ आबादी (बीपीएल) ऐसी है, जिसकी आय ढाई हजार रुपये प्रतिमाह से भी कम है। यह आय एक बार की कोरोना टेस्ट फीस से भी काफी कम है। इसमें अगर निम्न मध्यमवर्गीय आबादी को भी मिला लिया जाए तो यह संख्या करीब 66 करोड़ होती है। यानी इस आबादी को सहारा दिए बगैर कोरोना से किसी भी तरह की मुठभेड़ बेमानी है।

इसमें भी बीपीएल के सामने कोरोना जितना ही बड़ा संकट पेट भरने का है। क्योंकि इनमें से ज्यादातर दैनिक मजदूरी कर अपना घर चलाते हैं। अर्थात काम मिला तो ही घर का चूल्हा जलता है, वरना भूखे पेट सोने की मजबूरी है। कोरोना लॉक डाउन से जिनके पेट भी लॉक डाउन होने का डर है, ये वही लोग हैं। जिनके पास न तो 24 घंटे कैद रहने के लिए घर हैं और न ही जमा करने के लिए राशन है। ये लोग क्या करें, खुद को कोरोना से बचाएं या फिर भुखमरी से? लॉक डाउन की गाज गिरते ही ये सवाल बार-बार पूछा जा रहा था कि आखिर इन 26 करोड़ लोगों के जिंदा रहने की क्या गारंटी है? केरल और दिल्ली जैसे राज्यों की सरकारों ने अपने स्तर पर इन के लिए पैकेज घोषित किए। मप्र, यूपी व कुछ अन्य सरकारों ने भी आर्थिक मदद के ऐलान किए। लेकिन समग्रता में किसी महापैकेज का इंतजार किया जा रहा था।

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने गुरुवार को जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान किया, उसके एक दिन पहले ही यह हृदय विदारक खबर आई थी कि काम धंधे बंद होने के बाद लाखों दिहाड़ी मजदूर संसाधनों के अभाव में पैदल ही अपने परिवारों के साथ हजारों किमी दूर अपने घरों को निकल पड़े हैं। आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता। कई के पास तो अपने फीचर फोन की बैटरी रिचार्ज कराने के लिए भी पैसे नहीं बचे। कुछ ने खुद को बीमार बताकर किसी तरह रास्ते में पुलिस की रोकटोक को चकमा दिया।

राजस्थान के जयपुर में एक कोल्ड स्टोरेज में लॉक डाउन के बाद कुछ मजदूर पैदल ही बिहार के सुपौल के लिए परिवार सहित निकल पड़े। दोनों शहरों के बीच की दूरी 12 सौ किमी से ज्यादा है। उनके पास थोड़े पैसे थे, लेकिन ले जाने वाला कोई साधन नहीं था। रास्ते में खाने को कुछ नहीं मिल रहा है तो कोरोना के डर से रास्ते में लोग कहीं रुकने भी नहीं दे रहे हैं। वाकई भयावह स्थिति है। ऐसे प्रवासी मजदूरों की संख्या लाखों में है, लेकिन उनकी चिंता किसी को है, ऐसा लग नहीं रहा था।

बहरहाल केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने जो आर्थिक पैकेज गरीबों के लिए घोषित किया है, वह सही कदम है। इसके मुताबिक सीतारमन ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के स्पेशल पैकेज का ऐलान किया। इसे इकॉनामी का बूस्टर डोज भी कहा जा रहा है। इस मेगा प्लान में गरीबों के लिए खाने का प्रबंध, डीबीटी के जरिए गरीबों के अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करना, बहुत छोटे संस्थानों में सरकार द्वारा अगले 3 महीनों तक कर्मचारी और नियोक्ता के ईपीएफ के ‍योगदान की भरपाई करना शामिल है। साथ ही कोरोना वारियर्स के लिए 50 लाख का इंश्योरेंस कवर भी इसमें है। इससे 20 लाख मेडिकल और पैरा मेडिकल स्टाफ को फायदा होगा। क्योंकि कोरोना से लड़ाई में जान का जोखिम सबसे ज्यादा इन्हीं लोगों को है।

पैकेज के तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को दो हिस्सों में बांटा गया है। पहला-प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को अगले तीन महीने तक 5 किलो चावल/गेहूं तथा 1 किलो दाल प्रति परिवार के मान से मुफ्त में दी जाएगी। साथ ही 8.7 करोड़ किसानों के अकाउंट में अप्रैल के पहले हफ्ते में 2000 रुपए की पहली किस्त डाली जाएगी ताकि उन्हें तुरंत फायदा मिले। 5 करोड़ मनरेगा मजदूरों की मजदूरी भी बढ़ाई गई है। जनधन योजना के तहत साढ़े 20 करोड़ महिलाओं के खाते में अगले 3 महीने तक डीबीटी के जरिए हर माह पैसे ट्रांसफर होंगे। करीब 8.3 करोड़ बीपीएल परिवारों को उज्‍ज्‍वला स्कीम के तहत 3 महीनों तक फ्री एलपीजी सिलेंडर मिलेंगे।

अब सवाल यह है कि लॉक डाउन और काफी हद तक संचार बंदी के इन हालात में क्या गरजमंदों को इन योजनाओं का लाभ मिल पाएगा, जो घोषणाएं की गई हैं, उन पर कितने कारगर तरीके से अमल हो पाएगा? गरीबों की तात्कालिक जरूरत क्या है? सरकार ये तमाम लाभ ऑनलाइन पहुंचाना चाहती है। इसका मतलब ये है कि बैंकों को पूरी क्षमता से काम करना होगा। देश में करीब (सरकारी आंकड़ों के मुताबिक) 36 करोड़ 21 लाख जन धन खाते हैं। इनमें जमा राशि 1 लाख करोड़ से भी ज्यादा है। हालांकि कई जन धन खाते जीरो बैलेंस के कारण बंद भी हुए हैं। लेकिन ये खाते सरकार के लिए उपभोक्ता को सीधे लाभ पहुंचाने का प्रभावी माध्यम हैं। ऑन लाइन ट्रांजेक्शन के तहत यह पैसा लोगों तक पहुंच जाएगा, यह मानना गलत नहीं होगा। लेकिन करोड़ों गरीबों की पहली जरूरत तत्काल नकदी और राशन की है। यह कैसे और कब मिलेगा, इसका जवाब मिलना बाकी है।

बहरहाल सवाल यह है कि क्या यह सारी तैयारी केवल फौरी राहत के लिए है या फिर यह कोरोना के खिलाफ लंबी लड़ाई का शंखनाद है? इसके लिए लोगों का मानस तैयार करने का महा प्रयास है? संकेत यही है कि सरकार ने गरीबों की चिंता इसीलिए की है कि बगैर उनकी सहभागिता के कोरोना को परास्त नहीं किया जा सकता। दूसरे, संयुक्त राष्ट्र संघ और चीन ने भारत को यह सलाह भी दी है कि केवल लॉक डाउन ही कोरोना का इलाज नहीं है। आपको दूसरे फ्रंट पर भी उतनी ही प्रतिबद्धता से काम करना होगा। इसमें मेडिकल फ्रंट सबसे महत्वपूर्ण है।

हमें कोरोना के इलाज पर केन्द्रित मेकशिफ्ट अस्पताल (ताबड़तोड़ तरीके से बनने वाले सर्व सुविधायुक्त अस्पताल) भी बड़ी संख्या में तैयार करने होंगे। रिलायंस समूह के मुकेश अंबानी ने ऐसा ही एक अस्पताल मुंबई में बीएमसी की मदद से तैयार किया है। दूसरे, हमें कोरोना टेस्टिंग की सुविधा का विस्तार करना होगा। गरीबों के लिए कोरोना टेस्टिंग मुफ्त या नाम मात्र के शुल्क पर कैसे हो यह भी देखना होगा।

जानकारों के मुताबिक अभी हम कोरोना की तीसरी स्टेज की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन अगर यह इटली की तरह चौथी और लगभग अनियंत्रण की स्थिति में पहुंच गया तो क्या होगा, इसकी कल्पना मात्र भी सिहराती है। कुछ लोग इस कोरोना वॉर में राजनीतिक बू सूंघने की कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन यह वक्त ऐसा करने का कतई नहीं है। यह एक महासंकल्प की घड़ी है और उस संकल्प को सिद्ध करने का समय है। राजनीतिक स्वार्थ इसके आगे गौण हैं। ये लड़ाई समग्रता में कैसे लड़ी जाए, यही आज की चिंता का मुख्य बिंदु है। मोदी सरकार का पैकेज इसकी कुछ आश्वस्ति तो देता है। लेकिन अभी यह शुरुआत है।

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