कितने जगनमोहन हैं देश में?

राकेश अचल

देश की न्यायप्रणाली पर जब कोई प्रशांत भूषण उंगली उठाता है तो लगता है कि बूढ़ा सठिया गया है, लेकिन जब सुदूर दक्षिण का कोई मुख्यमंत्री ऐसा करता है तो मुद्दा गंभीर हो जाता है, इसे न्यायालय की अवमानना का नहीं बल्कि न्यायालय की विश्वसनीयता का मामला कहा जाता है। आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी द्वारा देश के मुख्य न्यायाधीश को लिखे एक पत्र ने न्यायिक व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन रेड्डी का ये पत्र फिलहाल हाथरस और करौली की जघन्य खबरों के शोर में दब गया है।

अगर आप अखबार नहीं पढ़ते या टीवी के न्यूज चैनल नहीं देखते तो आपको बता दूँ कि आंध्र प्रदेश के नौजवान मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे को 8 पन्नों का एक पत्र लिखा है। रेड्डी ने शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस रमन्ना और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के कुछ जजों के खिलाफ सरकार को गिराने का आरोप लगाया है। उन्होंने लिखा है कि आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू के साथ मिलकर सरकार को अस्थिर किया जा रहा है।

गौरतलब है कि सीजेआई को यह चिट्ठी 6 अक्टूबर को लिखी गई थी। जगनमोहन रेड्डी इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर लौटे थे। रेड्डी ने पीएम से राज्य के विकास और आंध्र प्रदेश पुर्नगठन अधिनियम के तहत फंड के बारे में बातचीत की थी। दरअसल, ऐसा एक दिन या एक महीने में नहीं हुआ। सरकार और अदालत के बीच ये जंग काफी पहले से चल रही है। रेड्डी का ये विवादास्पद पत्र हैदराबाद में मीडिया के सामने जगनमोहन के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम की तरफ से सार्वजनिक किया गया।

चिट्ठी में उन मौकों का भी जिक्र किया गया है, जब तेलुगुदेशम पार्टी से जुड़े केसों को कुछ सम्मानीय जजों को सौंपा गया। इसके अलावा इसमें कहा गया, ‘मई 2019 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने पर जबसे चंद्रबाबू नायडू की सरकार की ओर से जून 2014 से लेकर मई 2019 के बीच की गई सभी तरह की डीलों की जांच के आदेश दिए गए हैं, तबसे जस्टिस एनवी रमन्ना राज्य में न्याय प्रशासन को प्रभावित करने में जुटे हैं।’

एक मुख्यमंत्री द्वारा इस तरह से पत्र लिखना भी अपने आप में एक इतिहास बन रहा है। रेड्डी ने आरोप लगाया है कि जमीन लेन-देन को लेकर राज्य के पूर्व एडवोकेट जनरल दम्मलपति श्रीनिवास पर जो जांच बैठी, उस पर हाईकोर्ट ने स्टे दे दिया, जबकि एंटी-करप्शन ब्यूरो ने उनके खिलाफ एफआईआर तक दायर कर दी थी। गौरतलब है कि 15 सितंबर को ही हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि एसीबी की तरफ से पूर्व एडवोकेट जनरल पर दर्ज की गई एफआईआर का विवरण मीडिया में रिपोर्ट नहीं किया जाए। यह एफआईआर श्रीनिवास पर अमरावती में जमीन खरीद को लेकर दर्ज हुई थी।

आपको बता दें कि आंध्र के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीके माहेश्वरी जी हैं। भारतीय न्याय व्यवस्था में विवादास्पद होने वाले हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेके माहेश्वरी ग्वालियर अंचल के दूसरे व्यक्ति हैं। इससे पहले ग्वालियर के ही श्री अरुण मिश्रा विवादों में रह चुके हैं। मुख्य न्यायाधीश माहेश्वरी जी ने आदेश में कहा था, ‘अंतरिम राहत के माध्यम से यह निर्देशित किया जाता है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ इस रिट याचिका को दायर करने के बाद (एफआईआर) दर्ज करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा।

अपनी शिकायत में मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने कहा कि जस्टिस रमन्ना सरकार को अस्थिर करने में नायडू का साथ दे रहे हैं। वह हाई कोर्ट के काम में दखलअंदाजी कर रहे हैं और जजों को प्रभावित कर रहे हैं। रेड्डी के अनुसार रमन्ना ऐसा टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के हितों के संरक्षण के लिए कर रहे हैं और वे वर्तमान सरकार को गिराना चाहते हैं। जगन ने देश के मुख्य न्यायाधीश से आंध्र प्रदेश में न्‍यायिक तटस्थता बरकरार रखने की गुजारिश की है।

ये खबर चौंकाने वाली ही नहीं बल्कि हतप्रभ करने वाली है। अभी तक सरकारों को अस्थिर करने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त ही होती थी, ये पहला मौक़ा है जब किसी न्यायाध्यक्ष का नाम इस तरह की साजिशों में जोड़ा गया है। जस्टिस माहेश्वरी एक सामान्य परिवार से इस उच्च पद तक पहुंचे हैं। वे पहले ग्वालियर में एक अभिभाषक के रूप में काम करते थे, यहीं से उनका चुनाव इस उच्च पद के लिए हुआ था।

29 जून 1961 को जौरा (मुरैना) जैसे छोटे कस्बे में जन्मे जस्टिस जीके माहेश्वरी को आंध्र प्रदेश गए अभी बहुत समय भी नहीं हुआ है। एक साल पहले ही उन्हें आंध्र का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। इससे पहले वे मध्यप्रदेश में काम कर रहे थे। जस्टिस माहेश्वरी की प्रतिष्ठा असंदिग्ध है, उनका न्यायजगत में अभूतपूर्व सम्मान है। अब देखना ये है कि क्या देश के मुख्य न्यायाधीश मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के पत्र को भी प्रशांत भूषण के मामले की ही तरह लेते हैं या फिर कोई ऐसा कदम उठाते हैं जिससे भविष्य में देश की न्याय व्यवस्था पर इस तरह के आरोप न लगाए जा सकें।

लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका के प्रति जनता की आस्था को बनाये रखना इस समय बहुत जरूरी है क्योंकि इस संक्रमण काल में सब कुछ संदिग्ध हो चुका है। सरकारें तो सबसे पहले संदिग्ध हुई हैं, कार्यपालिका पहले से संदिग्ध है और कथित चौथा स्तम्भ मीडिया किसी न किसी की गोदी में बैठा हुआ दिखाई दे रहा है। हमें उम्मीद करना चाहिए कि रेड्डी का ये दुःसाहस कोई न कोई सार्थक परिणाम अवश्य देकर जाएगा। क्योंकि देश में आखिर कितने जगनमोहन रेड्डी हैं जो ऐसा जोखिम उठा सकते हैं?

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