गड़बडि़यां तो बहुत सी संस्थाओं में होती हैं लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि कोई संस्था ही गड़बडि़यों का प्रतीक या पर्याय बन जाए। कई मामलों में खुद को अव्वल बताने वाला मध्यप्रदेश ऐसी ही एक संस्था विकसित करने का श्रेय भी अपने खाते में डाल सकता है। अनेक घपलों, घोटालों और भ्रष्टाचार के लिए बदनाम हो चुका मध्यप्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं ऐसी ही संस्था बन गया है। व्यापमं का नाम लेते ही जेहन में किसी सरकारी संस्थान की नहीं, बल्कि एक बदनाम तंत्र की छवि उभरती है।
कहने की जरूरत नहीं कि मेडिकल कॉलेजों में दाखिले से लेकर सरकारी भरतियों की परीक्षा तक यहां इतना भ्रष्टाचार हो चुका है कि अब इसकी कुख्याति के बारे में अलग से कुछ कहने की जरूरत नहीं, बस नाम ही काफी है। आप तो व्यापमं बोल भर दीजिए, बाकी बातें लोग अपने आप समझ जाएंगे।
व्यापमं से जुड़ा ताजा मामला मध्यप्रदेश में पटवारी भरती की परीक्षा का है। संस्थान ने शनिवार को इसकी जो परीक्षा आयोजित की, उसमें हुई गड़बडि़यों और हजारों की संख्या में छात्रों के परीक्षा से वंचित रह जाने की खबरों से रविवार के अखबार भरे पड़े हैं। बड़ी संख्या में छात्र परीक्षा देने से इसलिए वंचित रह गए क्योंकि उनके आधार कार्ड आदि का वेरिफिकेशन संभव नहीं हो सका।
वैसे पटवारियों की यह परीक्षा पहले दिन से ही सुर्खियों में रही है। व्यापमं ने 9235 पटवारियों की भरती के लिए अक्टूबर में विज्ञापन निकाला था। इसके लिए दस लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आवेदन करने वालों में बड़ी संख्या में कला, विज्ञान और वाणिज्य के स्नातकोत्तर उम्मीदवारों के अलावा एमबीए और बीई किए हुए बेरोजगार भी शामिल थे। यहां तक कि कुछ आवेदक तो पीएचडी की डिग्री लिए हुए थे, जबकि पटवारी के लिए न्यूनतम योग्यता स्नातक ही मांगी गई थी।
आवेदनों की यह स्थिति बताती है कि प्रदेश में रोजगार की हालत क्या है। जहां जरा सी गुजाइश हो हजारों-लाखों की संख्या में आवेदन आ जाते हैं। इनमें न्यूनतम योग्यता से कई गुना अधिक योग्यता वाले उम्मीदवार भी शामिल होते हैं। इसी स्थिति को देखते हुए पिछले दिनों एक समीक्षा बैठक में प्रदेश के उच्च शिक्षा आयुक्त ने टिप्पणी भी की थी कि ‘’पटवारी की परीक्षा के लिए दस लाख आवेदन आए हैं, इसमें पीएचडी, एमफिल सहित उच्च शिक्षित युवा शामिल हैं, यह शर्म से सिर झुकाने वाली बात है।‘’
खैर इस मुद्दे को भी छोड दीजिए कि कितने छोटे पद के लिए कितनी बड़ी शिक्षा प्राप्त किए लोग आवेदन कर रहे हैं। जरा मूल मुद्दे पर आ जाइए। हालत यह है कि एक तरफ रोजगार पाने की इतनी ज्यादा मारामारी है और दूसरी तरफ हमारा सिस्टम रोजगार देना तो दूर रोजगार के लिए ली जाने वाली परीक्षा भी ठीक से आयोजित कराने की स्थिति में नहीं है।
और जो राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था रोजगार संबंधी परीक्षा तक ठीक से न करवा पाए उससे क्या उम्मीद करें कि वह पढ़ लिख कर बेकार घूम रहे लाखों बेरोजगारों को रोजगार दिलवा पाएगी। ऐसा नहीं है कि व्यापमं को स्थिति का पता नहीं था। उसने जब आवेदन बुलवाए तो उसके पास यह आंकड़ा तो जरूर होगा कि आखिर कितने लोगों की परीक्षा उसे लेनी है। लेकिन उसका भी समुचित इंताजम वह नहीं कर पाया।
बहुत अधिक संख्या में आवेदन आने के कारण पटवारी भरती की परीक्षा प्रदेश भर में बनाए गए 85 परीक्षा केंद्रों पर 29 दिसंबर तक रोज दो पालियों में आयोजित की जा रही है। लेकिन शनिवार को पहले ही दिन परीक्षा की कराने वाली एजेंसियों के सर्वर चीं बोल गए। इसके कारण पहली पाली में आठ हजार से ज्यादा उम्मीदवार परीक्षा नहीं दे पाए।
परीक्षा देने से वंचित छात्रों की पीड़ा और चिंता का अनुमान उनके अलावा शायद और कोई नहीं लगा सकता। उन्हें इस परीक्षा के जरिए अपने रोजगार की जो आस बंधी थी उस उम्मीद पर जो चोट लगी है उसके घाव यह सिस्टम शायद कभी नहीं समझ पाएगा। हालांकि मंडल के अफसरों का कहना है कि जो लोग परीक्षा देने से वंचित रह गए हैं उनकी परीक्षा 29 दिसंबर के बाद लेने के इंतजाम किए जाएंगे, लेकिन उन बेरोजगारों के ये 20 दिन किस दुविधा में कटेंगे इसका अंदाजा किसी को नहीं…
कहने को कहा जा सकता है कि इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित करना कोई मामूली काम नहीं है। व्यापमं के अफसर दूध के जले हैं इसलिए हो सकता है वे कोल्ड ड्रिंक को भी फूंक कर पीने जैसे सावधानियां बरत रहे हों। परीक्षा में किसी भी गड़बड़ी को रोकने के लिए उन्होंने कई चैकिंग और वेरिफिकेशन सिस्टम बनाए होंगे, लेकिन यही तो मंडल का काम है।
परीक्षाएं सफलतापूर्वक संचालित हों और उनकी प्रामाणिकता भी बनी रहे इसके लिए ही तो मंडल का इतना बड़ा तामझाम है। यह बहाना कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि परीक्षा आयोजित करने वाली कंपनी का सर्वर डाउन होने से ये हालात बने। ये सारे खतरे पहले से भांप कर वैकल्पिक इंतजाम क्यों नहीं रखे गए।
और अब तो मीडिया रिपोर्ट कह रही हैं कि खुद विभाग के ही मंत्री ने इस बात पर आश्चर्य जताया है कि जिस कंपनी का सर्वर प्रदेश में नहीं है, जो टेंडर प्रक्रिया में दूसरे नंबर पर थी, उसे बिना सोचे समझे इतना बड़ा काम कैसे दे दिया गया। बकौल मंत्री जी इस मामले में जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन कार्रवाइयों की बात तो पहले भी होती रही है। संभव है इस मामले में भी छोटी मोटी कार्रवाई कर एक दो अफसरों को इधर उधर कर दिया जाए। बड़ा सवाल यह है कि व्यापमं का ढर्रा कैसे सुधरेगा? इसका चाल चलन ठीक हो, उसके लिए प्रभावी कार्रवाई कब होगी? जो संस्था प्रदेश के माथे पर बदनामी का ठीकरा फोड़ चुकी है उसे दुरुस्त करने का माद्दा इस सरकार में है या नहीं…?
व्यापमं में लगातार चल रही बदइंतजामी बताती है कि वहां आज भी सबकुछ उसी ढर्रे पर चल रहा है। सरकार हर बार फौरी तौर पर बस चिंता जताकर या कार्रवाई का वादा करके अपनी खाल बचा लेती है। इतना बड़ा व्यापमं कांड हो जाने के बाद भी कोई नहीं सुधरा है। सजा की बात तो छोडि़ए, यहां तो सबक लेने को भी कोई तैयार दिखाई नहीं देता…