राजीव गांधी यूं ही नहीं आ गए हैं इस चुनाव में…

लोकसभा का चुनाव राजनेताओं को तो जो अनुभव दे रहा है सो दे ही रहा है, लेकिन जिन लोगों को यह मुगालता है कि वे राजनीतिक घटनाओं का बारीकी से विश्‍लेषण करने की क्षमता रखते हैं, उन्‍हें भी कुछ नया सीखने और अपने दिमाग का और अधिक इस्‍तेमाल करने का सबक भी दे रहा है।

चार मई को उत्‍तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभा में अचानक राजीव गांधी का जिक्र किया था तो मुझे भी आश्‍चर्य हुआ था कि इस मौके पर राजीव गांधी को बीच में घसीटने की क्‍या जरूरत है। मोदी ने अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में नेहरू और इंदिरा पर भले ही काफी कुछ बोला हो, लेकिन राजीव गांधी को उन्‍होंने इस तरह नहीं घसीटा।

लेकिन प्रतापगढ़ में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिये बगैर उन्‍होंने कांग्रेस पर हमला बोला-”आपके (राहुल गांधी) पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था। लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया।‘’

राजीव पर मोदी की इस टिप्‍पणी की व्‍यापक प्रतिक्रिया हुई थी। इससे मोदी के कई समर्थक भी खुश नजर नहीं आए थे। सोशल मीडिया पर मैंने ऐसे दर्जनों मोदी समर्थकों के कमेंट देखे जो राजीव विरोधी बयान का समर्थन नहीं कर रहे थे। ज्‍यादातर लोगों का मानना था कि जो व्‍यक्ति अब दुनिया में ही नहीं है उसके बारे में ऐसे कमेंट करने से प्रधानमंत्री को बचना चाहिए था।

उस समय मैंने कई टीवी डिबेट भी देखीं जिनमें भी इसी लाइन पर बात हो रही थी। लेकिन अब जाकर यह ‘भेद’ खुला है कि नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी का जिक्र यूं ही नहीं कर दिया है। न तो उनकी जबान फिसली थी और न ही यह ‘चौकीदार चोर है’के नारे से बौखला कर, नेहरू-गांधी परिवार पर किया गया उनका प्रतिघात था, बल्कि यह तो मोदी की सोची-समझी चुनावी रणनीति का हिस्‍सा था।

मैं ऐसा क्‍यों कह रहा हूं, इसे समझने के लिए आपको 6 मई को नरेंद्र मोदी का झारखंड के चाईबासा में दिया गया भाषण ध्‍यान से देखना होगा। राजीव को भ्रष्‍टाचारी नंबर वन कहने वाले बयान पर अपनी इतनी थू-थू होने के बावजूद, दो दिन बाद ही नरेंद्र मोदी चाईबासा में राजीव के नाम पर ही कांग्रेस से पंजा लड़ाते नजर आए।

उन्‍होंने उस सभा में कहा-‘’कुछ दिन पहले मैंने एक जगह से नामदार परिवार के एक सदस्‍य के पुराने कारनामों को याद किया।…मैंने सिर्फ पुराने बोफोर्स के भ्रष्‍टाचार को याद कराया, बस इतना ही बोला कि तूफान आ गया। मैंने तो बस एक शब्‍द बोला और आपको बिच्‍छू काट गया है…’’

इसके बाद मोदी ने जो कहा वह बताता है कि इस चुनाव में राजीव गांधी की एंट्री क्‍यों हुई, वे बोले-‘’मैं आज इस मंच से पूरी कांग्रेस पार्टी को…, उनके अध्‍यक्ष को…, नामदार के परिवार को…, उनके राज दरबारियों को… उनके चेले चपाटों को चुनौती देता हूं… आज का चरण तो पूरा हो गया, लेकिन आगे दो चरण बाकी है… अगर आपको पूर्व प्रधानमंत्री जिन पर बोफोर्स के भ्रष्‍टाचार के आरोप है, उनके मान सम्‍मान (की इतनी चिंता है तो) आइये मैदान में, उस मुद्दे पर चुनाव लडि़ये… देखिये खेल कैसा खेला जाता है…’’

गौर करिए, खुद प्रधानमंत्री ने खेल शब्‍द का इस्‍तेमाल किया है।

मोदी ने कहा-‘’आप में हिम्‍मत हो तो आपके उस पूर्व प्रधानमंत्री के, जिसको लेकर दो दिन से आप आंसू बहा रहे हो, उनके मान सम्‍मान के मुद्दे पर आइए दिल्‍ली के अंदर चुनाव लड़ें, आ जाओ मैदान में… आप में हिम्‍मत है तो आइए पंजाब में उसी मुद्दे पर चुनाव लड़ते हैं, देखते हैं जोर कितना बाजुओं में है…’’

मोदी यहीं नहीं रुके वे भोपाल तक आ गए और बोले-‘’आइये भोपाल में उनके मान सम्‍मान के नाम पर चुनाव लड़ते हैं। भोपाल में हजारों लोग जो गैस लीकेज होने के कारण मर गए थे और उस समय के प्रधानमंत्री ने जो काम किया था वो खुलकर के आ जाएगा सामने… जब हजारों परिवार तबाह हो गए थे…’’

‘’…आइये दम हो तो भोपाल हो, दिल्‍ली हो, पंजाब हो, उनके नाम पर चुनाव लड़ने की मेरी चुनौती मंजूर करें… यदि आप में इतना दम है तो मैदान में आइये, मुंडी नीची करके भागने की कोशिश मत करना।…मेरे में ताकत है इस चुनौती को आपके सामने रखने की अब मैं देखता हूं कि कांग्रेस वाले और उनके महामिलावटी इस चौकीदार की चुनौती को स्‍वीकार करते हैं या नहीं करते हैं।‘’

यानी भाजपा ने लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों में उन राज्‍यों में राजीव को सोच समझकर मुद्दा बनाया है जहां सिख आबादी अच्‍छी खासी संख्‍या में है। शायद वह इंदिरा गांधी की हत्‍या के बाद, राजीव गांधी के समय में हुए सिख विरोधी दंगों के घावों को हरा करना चाहती है।

12 और 19 मई को होने वाले मतदान के अगले दो चरणों में पंजाब की 13, दिल्‍ली की 7, चंडीगढ़ की 1, हरियाणा की 10,बिहार की 16, हिमाचल की 4, उत्‍तरप्रदेश की 27, मध्‍यप्रदेश की 16, झारखंड की 7 और पश्चिम बंगाल की 17 सीटों पर चुनाव होना है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इनमें से 30 सीटें ऐसी हैं जहां सिख वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं। उधर पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी भाजपा को बैठे बिठाए जय श्रीराम का मुद्दा थमा ही चुकी हैं।

ऐसे में आप चाहे जितनी नैतिकता और शुचिता की बातें करते रहें, फौरी तौर पर टीवी चैनलों की हेडलाइंस या वनलाइनर डिबेट देखकर उसी में फंसे रहें, राजनीति के इस खेल में वो सब जायज है जो युद्ध में होता है। वैसे भी राजनेता मानकर चलते हैं कि नैतिकता और शुचिता के मेंढक चुनाव के मौसम में कुछ ज्‍यादा ही टर्राते हैं, लेकिन मौसम बदलने के बाद सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट ही आता है।

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