विश्‍वास के इस संकट को हलके में मत लीजिए

दुनिया भर में इन दिनों आतंकवाद और आर्थिक मंदी जैसे खतरों पर बहुत चर्चा हो रही है। इसके अलावा पर्यावरण और जलवायु संकट भी विश्‍व के लिए चिंता का विषय है। लेकिन इन तमाम संकटों के बीच एक संकट ऐसा भी है जिसकी ओर बहुत कम लोगों का ध्‍यान जा रहा है। इस अलग तरह के संकट पर चर्चा भी कम ही हो रही है।

और यह संकट है विश्‍वास का। दुनिया के तमाम क्षेत्रों में इन दिनों अलग-अलग तरीके से विश्‍वास का संकट छाया हुआ है। यह संकट यदि इसी तरह बढ़ता रहा तो भविष्‍य में यह अर्थजगत और राजनीति को ही नहीं बल्कि पूरे समाज और मानवता के लिए भी गंभीर चिंताएं पैदा करेगा। इस संकट के साथ सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि बाकी संकटों के कारण और उनके कुछ-कुछ निदान मनुष्‍य के पास उपलब्‍ध हैं, लेकिन विश्‍वास का संकट मनुष्‍य की मूल प्रवृत्ति से जुड़ा होने के कारण उसका निदान उतना ही मुश्किल है।

ताजा मामला दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले गूगल से जुड़ा है। भारत में जब लोग दिवाली का त्‍योहार मनाने की तैयारियों में व्‍यस्‍त थे उसी दौरान 25 अक्‍टूबर को वाशिंगटन पोस्‍ट ने एक खबर प्रकाशित की जिसमें कहा गया कि गूगल कंपनी इन दिनों अपने कर्मचारियों के बीच पनप रहे विश्‍वास के संकट से बहुत चिंतित है।

वाशिंगटन पोस्‍ट ने यह खबर गूगल के सीईओ सुंदर पिचई की अपने वरिष्‍ठ अधिकारियों के साथ हुई बंद कमरे वाली मीटिंग के लीक हुए वीडियो के हवाले से छापी है। इस मीटिंग में सुंदर पिचई ने कहा- ‘’हम कुछ मामलों को लेकर निश्चित तौर पर बहुत ही संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं। इनमें एक तरफ पारदर्शिता है तो दूसरी तरफ विश्‍वास। मैं समझता हूं विश्‍वास हमारी कंपनी के लिए बुनियादी तौर पर सबसे महत्‍वपूर्ण मुद्दा है। मैं इसे गंभीरता से लेता हूं। मैं उस बात को समझने की कोशिश करता हूं जब मुझे लगता है कि कुछ ऐसा हो रहा है जो विश्‍वास को तोड़ रहा है। हम इसे रोकने के लिए क्‍या कर सकते हैं। हमारे लिए तब ऐसा करना और भी ज्‍यादा कठिन हो जाता है जब हम देखते हैं कि हम किस पैमाने पर अपना काम कर रहे हैं।‘’

पिचई का यह बयान पिछले कुछ सालों में कंपनी की योजनाओं और अन्‍य मुद्दों को लेकर कर्मचारियों की ओर से ही उठे विरोध के सुरों के बाद आया है। इन मुद्दों में कंपनी के भीतर कामकाज की संस्‍कृति से लेकर अमेरिकी सेना के लिए प्रोजेक्‍ट बनाना और चीन के लिए सेंसर्ड सर्च इंजन विकसित करने जैसे मुद्दे शामिल हैं।

गूगल को पिछले साल नवंबर में भी उस समय बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था जब दुनिया भर में उसके करीब 50 दफ्तरों के 20 हजार से ज्‍यादा कर्मचारी कथित यौन प्रताड़ना और दुराचरण जैसे मामलों से निपटने के तरीके का विरोध करते हुए दफ्तरों से बाहर आ गए थे। इस घटना के छह महीने बाद इन कर्मचारियों ने अपने विरोध के मामले में कंपनी की ओर से की गई कार्रवाई को लेकर भी धरना दिया था।

अप्रैल 2018 में न्‍यूयार्क टाइम्‍स ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें अखबार को भेजे गए गूगल कर्मचारियों के एक पत्र के हवाले से कहा गया था कि कंपनी के कर्मचारियों ने इस बात का सख्‍त विरोध किया है कि कंपनी अमेरिकी सेना द्वारा इस्‍तेमाल किए जाने वाले ड्रोन विमानों की बमबारी को और सटीक बनाने वाली तकनीक पर काम करे। कर्मचारी कंपनी से यह आश्‍वासन भी चाहते थे कि भविष्‍य में वह किसी भी सैन्‍य तकनीक को विकसित करने का काम नहीं करेगी।

मोटे तौर पर लग सकता है कि ये सब गूगल कंपनी के आंतरिक मामले हैं जिनका संबंध गूगल की नीतियों और कंपनी के अपने ही कर्मचारियों से रिश्‍तों व कार्यव्‍यवहार को लेकर है। लेकिन बारीकी से देखें तो ऐसी घटनाएं पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय हैं। इन पर उसी तरह से ध्‍यान दिया जाना चाहिए जिस तरह दुनिया परमाणु युद्ध जैसे मामलों पर देती है।

दरअसल गूगल का पूरा कारोबार ही विश्‍वास पर टिका है। और गूगल के सीईओ यदि कंपनी में विश्‍वास के संकट का जिक्र करते हैं तो यह संकट सिर्फ गूगल पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर है। आप कल्‍पना करके देखिये कि गूगल के कर्मचारी यदि विश्‍वास की लक्ष्‍मण रेखा को तोड़ दें या फिर कंपनी अपने ग्राहकों के विश्‍वास को भंग करे तो उसके परिणाम कितने भयानक होंगे।

आज दुनिया का आधे से ज्‍यादा कारोबार गूगल के भरोसे चल रहा है। इसमें बैंकिंग से लेकर सरकारी ढांचे का संचालन तक शामिल है। ऐसे में विश्‍वास की डोर टूटना तो दूर, जरा सी भी ढीली हुई तो सोचिए बात कहां तक जाएगी। लोगों की निजी जानकारी से लेकर करोड़ों कारोबारी व सरकारी जानकारियां गूगल पर अपलोड हैं। रक्षा और अनुसंधान संबंधी कई योजनाओं को अंजाम देने में प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से गूगल की मदद ली जा रही है। वहां से जानकारियों का लीक होना पूरी दुनिया के अस्तित्‍व के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

और ऐसा नहीं है कि यह सब गूगल में ही हो रहा हो। सूचना और संपर्क की दुनिया में बराबरी से भागीदार फेसबुक भी इसी तरह के संकट से गुजर रही है। 30 अक्‍टूबर को ही खबर आई है कि कंपनी के कर्मचारी अपने सीईओ मार्क जुकरबर्ग की सियासी विज्ञापन नीति से सहमत नहीं हैं।

फेसबुक के सैकड़ों कर्मचारियों ने जुकरबर्ग और अन्‍य शीर्ष अधिकारियों को पत्र लिखकर राजनेताओं को सोशल नेटवर्किंग प्‍लेटफार्म्‍स पर अपने विज्ञापनों में मनचाहे दावे करने की छूट देने की नीति का विरोध किया है। न्‍यूयार्क टाइम्‍स की रिपोर्ट है कि कर्मचारी इस नीति को कंपनी के लिए खतरा मान रहे हैं। कंपनी ने हाल ही में अपनी पुरानी नीति के उलट यह फैसला किया है कि नेताओं और उनके चुनावी अथवा अन्‍य सियासी अभियानों से जुड़ी पोस्‍ट लगभग किसी भी नियंत्रण से मुक्‍त रहेगी।

चाहे गूगल हो या फेसबुक, इनके भीतर चल रही यह उथल पुथल सिर्फ किसी कंपनी की आंतरिक या कारोबारी उथल पुथल नहीं है। यह एक ऐसी सुनामी की परिस्थितियां तैयार होने का संकेत है, जो यदि आई तो पता नहीं दुनिया में क्‍या क्‍या मटियामेट कर देंगी…

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