बेहतर है सोने से ज्‍यादा सोने की चिंता करें

अच्‍छा हुआ सरकार को समय रहते समझ आ गई। वरना देश की अर्थव्‍यवस्‍था का एक बार फिर वही हाल हो सकता था जैसा नोटबंदी के बाद हुआ था। नोटबंदी के झटके अभी तक लग रहे हैं और पिछले कुछ दिनों से जो खबरें आ रही थीं यदि वे सच साबित होतीं तो जैसे तैसे नोटबंदी के भूकंप को झेलने की ताकत जुटा रहे लोगों को तगड़ी सुनामी जैसा झटका लग सकता था।

कुछ दिनों से मीडिया में खबरें तैर रही थीं कि सरकार सोने के मामले में भी कुछ कुछ वैसा ही फैसला करने जा रही है जैसा उसने नोटबंदी के समय किया था। बताया जा रहा था कि वित्‍त मंत्रालय इस बात पर विचार कर रहा है कि लोगों के पास जो सोना है उसका और बारीक हिसाब किताब रखा जाए। इसके तहत योजना यह थी कि लोगों से एक निश्चित मात्रा के बाद उनके पास रखे सोने की जानकारी उजागर करने को कहा जाता।

बताया गया था कि इस कथित ‘गोल्ड एमनेस्‍टी स्कीम’ के तहत लोगों को अपने पास रखे सोने का हिसाब सरकार को देना होगा और बिना बिल वाले सोने पर टैक्स चुकाना होगा। इसे कालेधन के खिलाफ सरकार की मुहिम का एक और बड़ा कदम करार देते हुए कहा गया कि कालेधन का एक बड़ा हिस्सा सोने के रूप में ही मौजूद है। बिना बिल वाले सोने पर टैक्‍स की दर 30 प्रतिशत होने के अनुमान लगाए जा रहे थे और इस पर तीन प्रतिशत शुल्‍क लगाने की भी बात थी।

चर्चा यह चल रही थी कि इस योजना से जुटाए गए धन को सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) को विस्‍तार देने और उसके अंतर्गत गरीबों को और अधिक लाभ देने के लिए इस्‍तेमाल करेगी। नीति आयोग ने करीब दो साल पहले देश में स्‍वर्ण नीति बनाने का सुझाव दिया था और इस संभावित योजना को उसी की एक कड़ी के रूप में देखा जा रहा था।

लेकिन 31 अक्‍टूबर को सरकार ने मीडिया में वायरल हो रही ऐसी तमाम खबरों को खारिज करते हुए साफ किया कि सोने के रूप में जमा अघोषित संपत्ति का पता लगाने के लिए ‘स्वर्ण माफी योजना’ का कोई विचार नहीं है। आधिकारिक सूत्रों ने स्‍पष्‍ट किया कि आयकर विभाग ऐसा कुछ नहीं करने जा रहा। बजट प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और आमतौर पर बजट से पहले इस तरह के कयास सामने आते रहते हैं।

सरकार की इस सफाई के बाद माना जाना चाहिए कि फिलहाल यह मामला टल गया है। वैसे यह कब तक टला रहेगा और टलेगा भी या नहीं यह कहना कठिन है। देखा जाए तो सोने के प्रति भारत में लोगों का मोह सदियों से रहा है। हम जब भी अतीत में भारत की समृद्धि की बात करते हैं तो उसे ‘सोने की चिडि़या’ बताते हैं। देश में गरीबी की स्थिति भले ही कितनी भी विकट हो लेकिन सोने के प्रति मोह में कभी कोई गरीबी नहीं आई।

सितंबर 2019 में वर्ल्‍ड गोल्‍ड काउंसिल की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया था कि सोने के भंडार (गोल्‍ड रिजर्व) के मामले में भारत दुनिया के टॉप 10 देशों में पहुंच गया है। इस सूची में 8,133.5 टन स्‍वर्ण भंडार के साथ अमेरिका पहले और 3,366.8 टन भंडार के साथ जर्मनी दूसरे स्थान पर है। सूची में तीसरे स्थान पर कोई देश नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) है जिसके पास कुल 2451.8 टन सोना है। भारत का स्वर्ण भंडार 618.2 टन तक पहुंच गया है। जबकि सिर्फ 64.4 टन के साथ पाकिस्तान इस सूची में पिछले कई साल से 45वें स्थान पर बना हुआ है। वैसे गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तो भारत में 20 से 30 हजार टन सोना है।

गोल्ड भंडार या गोल्ड रिजर्व वह संपदा होती है जो किसी देश के केंद्रीय बैंक के पास सुरक्षित रखी जाती है। इसका उपयोग संकट के दौर में देश के धन की रक्षा करने और जरूरत पड़ने पर लोगों के धन की वापसी के लिहाज से किया जाता है। इस सोने की खरीद केंद्रीय बैंक ही करते हैं। 90 के दशक में भारत के सामने ऐसा ही संकट आया था और उस समय हमें अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था।

अब जब सरकार ने सोने की जानकारी न लेने के बारे में सफाई दे दी है तो उम्‍मीद की जानी चाहिए कि उन लोगों की नींद बरकरार रहेगी जिनकी रातें ‘स्‍वर्ण माफी योजना’ की खबरों से आंखों में ही कट रही थी। हालांकि कोई गारंटी नहीं है कि सरकार भविष्‍य में भी उनकी नींद में कोई खलल नहीं डालेगी।

वैसे मुझे लगता है कि भारत को इन दिनों सोने के बजाय सोने की चिंता ज्‍यादा करनी चाहिए। दूसरे सोने से मेरा आशय भरपूर नींद से है। देश में बन रही परिस्थितियां अपनी जगह हैं लेकिन हमारी दिनचर्या और खानपान की आदतों से लेकर हम पर पड़ने वाले मानसिक दबाव और तनाव ने हमारी नींद छीन ली है। इसलिए हमारी आंखों का सोना हमारे गले में लटके सोने से ज्‍यादा जरूरी है।

सरकार की सफाई आने से सिर्फ एक दिन पहले ही समाचार एजेंसी पीटीआई ने एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर खबर दी है कि रोजाना पैदल चलने और नींद लेने के मामले में दुनिया के कई देशों की तुलना में भारत के लोग काफी पीछे हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारतीय कम फुर्तीले होते हैं। औसतन हम प्रतिदिन सिर्फ 6 हजार 553 कदम ही चलते हैं, जो सर्वेक्षण में शामिल देशों की तुलना में सबसे कम है। यह रिपोर्ट अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और सिंगापुर सहित 18 देशों के लोगों के बीच किए गए अध्‍ययन के आधार पर तैयार की गई है।

रिपोर्ट कहती है कि नींद के मामले में भारत में 75 से 90 वर्ष के लोगों की स्थिति और भी खराब है। वे औसतन 6 घंटे 35 मिनट ही सो पाते हैं। हमारे यहां 18 से 25 वर्ष के युवा औसतन रात में साढ़े बारह बजे या उसके बाद सोते हैं, वहीं बुजुर्ग इससे एक घंटे पहले ही सोने चले जाते हैं। डॉक्‍टर्स भी कहते हैं कि खासतौर से शहरी आबादी में नींद न आने या कम नींद के कारण गई बीमारियां पनप रही हैं।

ऐसे में जरूरी है कि सरकार सोने के बजाय सोने (नींद) पर ज्‍यादा ध्‍यान दे। हो सके तो नींद के लिए काम से माफी जैसी कोई स्‍कीम लेकर आए। हो सकता है ऐसी स्‍कीम लाने पर उसे योजना को नकारने वाली कोई सफाई भी न देनी पड़े, जैसीकि उसे सोने (गोल्‍ड) को लेकर देनी पड़ी है। … आप क्‍या कहते हैं?

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