चिल्‍लाने से काम नहीं चलेगा, गंभीरता से सोचना पड़ेगा

खबर गंभीर है। और इसीलिये यह फौरी तौर पर फनफना कर प्रतिक्रिया देने, चीखने चिल्‍लाने या खुद को खुदा समझने के मुगालते से दूर रहकर मामले पर गंभीरता से सोचने की मांग करती है।

पहले खबर सुन लीजिए। इस खबर को इंडियन एक्‍सप्रेस ने 31 मार्च को प्रकाशित किया है। खबर के मुताबिक कर्नाटक विधानसभा ने प्रदेश में मीडिया के कामकाज पर निगाह रखने और गैर जिम्‍मेदाराना रिपोर्टिंग को रोकने के उपाय सुझाने के लिए सदन के 13 सदस्‍यों का एक पैनल बनाया है।

इस पैनल का गठन विधानसभा अध्‍यक्ष के.बी. कोलिवाड ने उन शिकायतों के बाद किया है जिनमें कर्नाटक मीडिया पर गैर जिम्‍मेदाराना तरीके से रिपोर्टिंग करने का आरोप लगाया गया था। अध्‍यक्ष को सदन के करीब-करीब सभी दलों से जुड़े विधायकों से इस तरह की शिकायतें मिली थीं।

इन शिकायतों के बाद गत मंगलवार को अध्‍यक्ष ने मीडिया पैनल की घोषण की। इस पैनल का नेतृत्‍व राज्‍य के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री और पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष के.आर. रमेश कुमार करेंगे। यह पैनल किस तरह काम करेगा और इसका दायरा क्‍या होगा, इन सारी बातों पर फैसला इसकी पहली बैठक में किया जाएगा।

दरअसल कर्नाटक मीडिया में हाल ही में कई विधायकों के बारे में इन संदर्भों के साथ खबरें छपी थीं कि वे गलत कामों से जुड़े हुए हैं। इन खबरों के बाद विधायकों ने अध्‍यक्ष से मांग की थी कि इस तरह की गैर जिम्‍मेदार रिपोर्टिंग रोकने के लिए कुछ कायदे कानून होने चाहिए।

मूल रूप से यह मामला कर्नाटक विधानसभा में पिछले सप्‍ताह जनता पार्टी के विधायक बी.आर. पाटिल ने उठाया था। उनका आरोप था कि 2016 में हुए राज्‍यसभा चुनाव के पहले, दो राष्‍ट्रीय टीवी चैनलों द्वारा राज्‍य में किए गए कथित स्टिंग ऑपरेशन के सिलसिले में मीडिया राजनेताओं का ‘चरित्र हनन’ कर रहा है। वरिष्‍ठ विधायक पाटिल का कहना था कि इस मामले में मीडिया वादी, वकील और जज तीनों की भूमिकाएं खुद ही अदा कर रहा है।

विधानसभा पैनल की खास बात यह है कि इसमें वे विधायक भी शामिल हैं जिन्‍होंने मीडिया पर खुद को प्रताडि़त करने की शिकायत की है। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस के सदस्‍य और पूर्व उच्‍च शिक्षा मंत्री बसवराज रायारेड्डी ही एकमात्र ऐसे विधायक रहे जिन्‍होंने फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि प्रेस की आजादी को खत्‍म या कम करने का कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।

कर्नाटक की यह घटना न तो किसी एक राज्‍य के संदर्भ में देखी जानी चाहिए और न ही यह माना जाना चाहिए कि वहां से उठी यह लहर वहीं खत्‍म हो जाएगी। दरअसल कर्नाटक की घटना पूरे मीडिया जगत के लिए चेतावनी है कि यदि उसने अपने धरातल को कमजोर किया, यदि खुद को राह से भटकने दिया, तो देश में ऐसा मानस तैयार हो रहा है जो उसे कुचलने के लिए उतारू है।

जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं, या फिर मीडिया को कानून कायदों के दायरे में लाने की बात उठती है, बड़ी चिल्‍ला चोट होनी लगती है कि यह अभिव्‍यक्ति की आजादी को कुचल डालने की कोशिश है। हम अभी तक यही कहते आए हैं कि मीडिया पर कोई बाहरी कायदा नहीं थोपा जा सकता। अपनी आचार संहिता वह खुद तय करेगा।

निश्चित रूप से स्‍वतंत्र और दबावमुक्‍त मीडिया लोकतंत्र की बुनियादी जरूरत है। लेकिन इन दिनों मीडिया जिस तरह से व्‍यवहार कर रहा है, वह खुद अपनी आजादी में सुरंग खोदने के औजार मुहैया कराने जैसा है।

मीडिया का काम सूचना देना है, वह सूचक है, प्रचारक नहीं। लेकिन सूचक, प्रचारक तो छोडि़ए, इन दिनों तो भाट और चारण बनने की होड़ लगी है। या तो हम भटैती कर रहे हैं या फिर लठैती। विश्‍वसनीयता किस चिडि़या का नाम है, यह हम भूल ही गए हैं। और जब हम खुद ही अपना पैर कुल्‍हाड़ी पर मारने को तुले हैं, तो कर्नाटक जैसी समितियां हमारा गला घोंटने को तैयार क्‍यों नहीं होंगी।

हो सकता है कर्नाटक की घटना पर मीडिया थोड़ा बहुत हो हल्‍ला मचा ले, लेकिन याद रखना होगा कि अब माहौल बदल रहा है। पहले मीडिया सही बात को लेकर लोगों को एकजुट करने का काम करता था, लेकिन अब लोग मीडिया से नाराज होकर एकजुट हो रहे हैं। अभिव्‍यक्ति की आजादी की ढाल और खुद की आचार संहिता जैसे परंपरागत कवच अब छलनी होते जा रहे हैं। एक तरह से हम तमाम हमलों के सामने निहत्‍थे और कवचविहीन खड़े हैं। और जब हमला आपके भीतर से हो रहा हो तो बच निकलने की गुंजाइश न के बराबर ही होती है।

मीडिया विलेषक उर्मिलेश जी की यह बात गौर करने लायक है कि- ‘’मुख्यधारा मीडिया के बड़े हिस्से, खासकर न्यूज चैनलों की मौजूदा स्थिति और उनकी भूमिका पर लोगों के सवाल आज गहरी नाराजगी का रूप लेते जा रहे हैं। सेमिनारों, गोष्ठियों और यहां तक कि चायघरों, नुक्कड़ और सड़क की चर्चाओं में भी चैनलों की जन-आलोचना का स्वर सुना जा सकता है। अचरज इस बात का है कि न्यूज रूम्स और प्रबंधकों-मालिकों तक इसकी अनुगूंज क्यों नहीं पहुंच रही है!’’

हम समय की इस दस्‍तक को, इस चेतावनी को भले ही न सुनें या सुनकर अनसुनी कर दें, लेकिन यह जान लें कि यदि हमने खुद को ‘ठीक’ नहीं किया, तो हमें ‘ठीक’ करने वाली ताकतें तैयार बैठी हैं… 

 

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