कोरोना पूछता है, आपने संबंध कितने कमाए हैं?

कोरोना से डरना क्‍या? (चौथी कड़ी)
गिरीश उपाध्‍याय

होम क्‍वारंटीन या आइसोलेशन में रहना आपके धैर्य की परीक्षा तो लेता ही है, वह इस बात का भी टेस्‍ट लेता है कि आप कितने सामाजिक हैं। आपने जिंदगी में पैसा, पद, प्रतिष्‍ठा भले ही कितनी भी कमाई हो, आपने दूसरों से संबंध रखने की पूंजी कितनी कमाई है? दरअसल आइसोलेशन में सबसे ज्‍यादा आपको इसी पूंजी की जरूरत होती है और असल में यही पूंजी आपके काम आती है।

जैसा मैंने कहा, आइसोलेशन का पूरी तरह पालन करना और एक ही घर में रहते हुए संक्रमित व्‍यक्ति से खुद को बचाए रखना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन संयोग से हमारे साथ ऐसा नहीं था। घर में हम तीन लोग थे और तीनों ही संक्रमित थे। मुझे याद है पॉजिटिव आने के बाद जब हमने डॉक्‍टर से पूछा था कि अब क्‍या करना होगा तो उसने मुसकुराते हुए कहा था- ‘’कुछ नहीं कुछ दिन घर में ही हॉलीडे मनाइये।‘’

डॉक्‍टर ने वह बात बहुत हलके फुलके अंदाज में कही थी और शायद उसका मकसद यह भी रहा हो कि हमें पॉजिटिव आने के तनाव से थोड़ा दूर करे, लेकिन उसकी कही हुई बात पर ऐसे सभी मरीजों को ध्‍यान देना चाहिए। दरअसल कोरोना बीमारी से ज्‍यादा भारी उसका डर और उस डर से पैदा होने वाला तनाव है। जैसे ही यह खबर मिलती है कि आप कोरोना का शिकार हो गए हैं या आप पॉजिटिव हैं, ज्‍यादातर लोगों को एक झटका सा लगता है। चूंकि चारों तरफ कोरोना का शिकार हो जाने वाले लोगों की ही खबरें फैली हुई हैं इसलिए संक्रमित व्‍यक्ति को अपना हश्र भी कुछ कुछ वैसा ही लगने लगता है।

पर वास्‍तव में ऐसा है नहीं। यह सच है कि कोरोना के मरीज बहुत अधिक पीड़ा और संत्रास से गुजर रहे हैं और उनमें से कई अलग अलग कारणों से अकाल मृत्‍यु का शिकार भी हो रहे हैं, लेकिन कोरोना से ठीक हो जाने वालों की संख्‍या भी अच्‍छी खासी है, बल्कि यह कहना ज्‍यादा उचित होगा कि उनसे कई-कई गुना अधिक है। तो बेहतर होगा आइसोलेशन में हम अपना ध्‍यान शिकार हो जाने वालों के बजाय, शिकारी को पछाड़ने और पछाड़ देने वालों पर लगाएं।

आइसोलेशन में सबसे ज्‍यादा मुश्किल रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के मामले में होती है। चूंकि आपको होम क्‍वारंटीन रहना है, आप बाहर नहीं निकल सकते इसलिए घर में यदि किसी चीज की जरूरत हो या फिर घर में रोजमर्रा की जरूरत की कोई चीज अचानक खत्‍म हो जाए तो क्‍या किया जाए। वैसे तो ऐसी चीजों की होम डिलेवरी की सुविधाएं उपलब्‍ध हैं, लेकिन हमारा अनुभव रहा है कि कई बार ये सुविधा भी आपको राहत नहीं दे पाती। या तो उस दुकान पर वह सामान खत्‍म हो गया होता है या फिर उसका आपके इलाके में वितरण तंत्र नहीं होता।

ऐसे में आपके संबंध ही काम आते हैं। आपके आसपास के लोग ही आपकी मदद कर सकते हैं या करते हैं। कहने को कोरोना से बचने का एक उपाय ‘सोशल डिस्‍टेंसिंग’ भी है लेकिन यदि कोरोना हो जाए तो आपका ‘सोशल कॉन्‍टेक्टिंग’ बहुत जरूरी है। आपके कुछ ही मित्र, शुभचिंतक या परिजन ऐसे होते हैं जो इस समय में खतरा मोल लेकर भी आप तक जरूरी सामान पहुंचाने का जोखिम उठाते हैं। खतरा और जोखिम जैसे शब्‍दों का इस्‍तेमाल मैंने इसलिए किया क्‍योंकि आमतौर पर कोरोना के डर के चलते लोग संक्रमण का शिकार हुए लोगों से दूरी बनाए रखना ही उचित समझते हैं। वे किसी न किसी बहाने आपकी बात को टाल देते हैं। ऐसे में वे ही लोग काम आते हैं जिनकी या तो आपने कभी न कभी मदद की हो या जो सचमुच आपको चाहते हों, जिन्‍हें आपकी परवाह हो… यानी यह समय खुद के किए को तौलने और सही मायने में अपना कहे जाने वाले लोगों की पहचान का भी है।

खुद हमारे सामने एक संकट आया था जब कॉलोनी में दूध बांटने वाले को हमें मना करना पड़ा कि वो हमारे घर दूध न दे। यह दूसरों को संक्रमण से बचाने के लिए जरूरी भी था। अब मना तो कर दिया लेकिन दूध की जरूरत तो होती ही है। ऐसे में कॉलोनी के अध्‍यक्ष पवन गुरू ने यह बीड़ा उठाया और वे हमारे घर सप्‍लाय किया जाने वाला दूध अपने घर मंगाते और रोज नियमित रूप से हमें पहुंचाते। उन्‍होंने हमारी सब्‍जी आदि की जरूरतों को भी ऐसे ही पूरा किया।

जरूरत सिर्फ सामान की ही नहीं होती। कई बार आर्थिक संकट भी ऐसे समय में बहुत बड़ा कष्‍ट देता है। सामान आदि पहुंचाने का काम तो फिर भी कुछ लोग कर ही देते हैं, लेकिन आर्थिक जरूरत पूरी करने का काम करने वाले तो बहुत ही कम होते हैं। मुझे याद है मैंने जब अपने परिवार के कोरोना संक्रमित होने की सूचना सोशल मीडिया पर डाली तो इंदौर से मेरे स्‍कूल के जमाने के एक दोस्‍त का संदेश आया कि यार चिंता मत करना, तुम अपना अकाउंट नंबर मुझे भेज दो, मेरे सामर्थ्‍य में जितना होगा मैं तुम्‍हें भेज दूंगा… आप सोच नहीं सकते कि पचास साल पुरानी दोस्‍ती के इस रूप ने मुझे कितना संबल दिया होगा और कितना भावुक किया होगा…

जमाना जब अपने अनुभव से कहता है कि मुसीबत में अपने ही काम आते हैं, तो वह गलत नहीं कहता। बस जरूरत इस बात की है कि आपने यह ‘अपनापन’ किस मात्रा में अर्जित किया है और किस भाव से अर्जित किया है। कोरोना आपकी सेहत की, आपकी शारीरिक क्षमताओं की और आपकी मानसिक सुदृढ़ता की ही परीक्षा नहीं लेता, वह इस बात को भी कसौटी पर कस कर जाता है कि आपने दुनिया में और बहुत कुछ कमाया हो, ऐसे लोग कितने कमाए हैं जो संकट में बिना किसी डर के, बिना किसी स्‍वार्थ के आपके साथ खड़े हो सकें…
आइसोलेशन में सबसे ज्‍यादा सताने वाली चीज होती है अकेलापन… उससे कैसे निपटें, इस पर कल बात करेंगे… (जारी)
(मध्‍यमत)
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें madhyamat@gmail.com पर प्रेषित कर दें।संपादक

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