ओव्‍हर स्‍मार्ट न बनें, न खुद कोरोना प्रूफ समझें

गिरीश उपाध्‍याय 

कोरोना हुआ तो डरना क्‍या? 
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में एक बड़ा अंतर यह देखने में आया है कि हम इस खतरे से बेपरवाह हो गए हैं। पहली लहर में हम कोरोना से डरे थे तो शायद हालात पर थोड़ा बहुत काबू भी कर पाए थे। पर दूसरी लहर में हमने डरना छोड़ दिया और यही लापरवाही हमें ले डूबी। ऐसा लगता है कि हम सबकुछ जानते समझते हुए भी अनजान बने रहने के लिए जैसे अभिशप्‍त हैं। यह मैं क्‍यों कह रहा हूं उसका कारण अपने अनुभव से ही बताता हूं।

दरअसल कोरोना काल के संक्रमण और लॉकडाउन जैसी स्थिति के चलते हम लोगों ने घर से बाहर निकलने के बजाय छत पर ही घूमना शुरू किया था। सड़क किनारे का घर होने के कारण छत पर धूल काफी हो जाती है। धूल की मोटी परत देखते हुए पत्‍नी ने एक दिन छत की सफाई कर डाली। शाम को उसके गले में खराश हुई। अब आपको धूल से एलर्जी हो या न हो पर धूल में काम करने के कारण गले में खराश का हो जाना बहुत स्‍वाभाविक है। तो पत्‍नी ने पहला निष्‍कर्ष यही निकाला कि छत की धूल साफ करने के कारण उसका गला खराब हो गया है।

कोरोना में एक गफलत यह भी होती है कि लक्षणों का कारण पता नहीं चलता। हम जान ही नहीं पाते कि संक्रमण हमें कहां से और किस कारण से हुआ है। पर हमारे साथ तो गले में खराश का प्रत्‍यक्ष कारण मौजूद था और उसे कारण न मानने की कोई वजह भी नहीं थी। लेकिन इसी समय हमारी सतर्कता और अपने आसपास हो रही घटनाओं से लिया गया सबक हमारे काम आया। हमने पत्‍नी का बुखार नापा तो वह 99 था। और इसीसे माथा ठनका। सामान्‍य तौर पर गले की खराश से एकदम बुखार नहीं होता।

बेटी और मैंने दोनों ने, यह जानते हुए भी कि गले की खराश का प्रत्‍यक्ष कारण धूल ही है, बुखार के संकेत को गंभीरता से लेते हुए तत्‍काल डॉक्‍टर से संपर्क किया और खुद ही कोरोना की आशंका जाहिर करते हुए सलाह मांगी। डॉक्‍टर ने वो दवाएं सुझाईं जो कोरोना होने पर भी एंटीबॉयोटिक के तौर पर दी जाती हैं। यानी एक तरह से हम हलका और पहला लक्षण दिखने के 24 घंटे बीतने से पहले ही परोक्ष रूप से कोरोना की लाइन वाला उपचार शुरू कर चुके थे।

अब इसे मानसिक तौर पर प्रभावित होना कहें या कुछ और… बेटी ने अगले दिन कहा कि उसे थोड़ी थकान और हरारत सी महसूस हो रही है। वैसे यह भी बहुत सामान्‍य बात थी और इसका भी प्रत्‍यक्ष कारण हमारे सामने था, वो ये कि वर्क फ्रॉम होम करते हुए वह रोज करीब 12 घंटे काम कर रही है। ऐसे में थकान होना स्‍वाभाविक है। लेकिन बेटी की थकान को भी हमने कोरोना के लक्षणों से ही जोड़कर देखा और खुद ही फैसला किया कि सबसे पहले कोरोना का टेस्‍ट कराया जाए। और हां, इस बीच हम डॉक्‍टर से बात करके बेटी के लिए भी उपचार शुरू कर चुके थे।

कोरोना काल में टेस्‍ट कराना भी आसान नहीं है। सरकारी अस्‍पतालों में इसके लिए भारी भीड़ है तो निजी अस्‍पतालों में यह काम काफी खर्चीला है। हमने आसपास के सभी सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों को तलाशा, कुछ में जाकर भी देखा पर वहां टेस्‍ट नहीं हो रहे थे। संपर्क करने पर हमारे एक परिचित ने सलाह दी कि मिसरोद की सरकारी डिस्‍पेंसरी में टेस्‍ट हो रहे हैं और वहां भीड़ कम होती है, इसलिए आप वहां जाकर करवा लें। भीड़ से बचने की एक वजह यह भी थी कि हम सोच कर चल रहे थे कि यदि वास्‍तव में कोरोना हुआ तो हमारी वजह से कहीं और लोगों को संक्रमण न हो। खैर हम टेस्‍ट कराने के लिए घर से करीब 12 किमी दूर मिसरोद की डिस्‍पेंसरी पहुंचे और वहां डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद हमारा आरटीपीसीआर टेस्‍ट हो गया।

टेस्‍ट के बाद रिपोर्ट का इंतजार जारी था और इस बीच कोरोना का लाक्षणिक उपचार भी शुरू हो चुका था। टेस्‍ट कराने के अगले दिन जब यह पता चला कि रिपोर्ट आने में तीन से चार दिन का समय लगेगा तो हमें चिंता हुई। लगा कि यदि कोरोना ही हुआ तो इतने दिनों का विलंब पता नहीं क्‍या गुल खिलाए। हमने फिर उसी डिस्‍पेंसरी के डॉक्‍टर से संपर्क किया और उन्‍होंने सलाह दी कि आरटीपीसीआर की रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी, तब तक हम रैपिड टेस्‍ट करा लें क्‍योंकि उसका नतीजा हाथोंहाथ पता चल जाता है। हम फिर डिस्‍पेंसरी पहुंचे और रैपिड टेस्‍ट करवाया। और वही हुआ जिसकी आशंका हमें पहले दिन से थी। उस टेस्‍ट में हम तीनों पॉजिटिव पाए गए। डॉक्‍टर ने उसी समय हमें 15 दिन होम क्‍वारंटीन रहने की हिदायत के साथ कोरोना उपचार की सारी दवाएं लिख दीं और हमारा कोरोना का विधिवत इलाज शुरू हो गया।

ये बातें आपको बहुत लंबी और उबाऊ लग सकती हैं। लेकिन इन्‍हें बताना मैंने इसलिये जरूरी समझा कि कोरोना से लड़ाई में हमेशा सतर्क रहने और समय पर एक्‍शन लेने का कितना महत्‍व है। हम भी चाहते तो गले की सामान्‍य खराश और थकान को हलके में ले सकते थे, और हमारे पास तो उसके प्रत्‍यक्ष कारण भी मौजूद थे, पर ऐसा न करते हुए हमने पहली ही नजर में खुद को कोरोना के शिकार के रूप में देखा और जाहिर है हमें बाद में इस सतर्कता का फायदा भी मिला।

पर राह इतनी आसान नहीं होती… यह मैं क्‍यों कह रहा हूं इस पर कल बात करेंगे…

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