अजय बोकिल
चुनाव कोई-सा हो, किसी स्तर का हो, उसकी घोषणा होते ही नेताओं में ‘टिकट वायरस’ इतनी तेजी से और गहरे तक फैलता है कि इसके लिए और इसे गंवाने पर वो कुछ भी कर सकते हैं। पार्टी से चुनाव का टिकट पाना जीवन-मरण से भी बड़ा प्रश्न बन जाता है। यानी टिकट मिला तो जन्नत में होने का अहसास और टिकट कटा या न मिला तो चारों ओर घनघोर अंधेरे का भास। इस बार भी बिहार में विधानसभा चुनाव और मप्र सहित कुछ राज्यों के विस उपचुनाव में टिकट संघर्ष के कई दिलचस्प नजारे देखने को मिल रहे हैं।
टिकट न मिलने पर कोई संन्यास ले रहा है तो कोई इस कदर फूट-फूट कर रो रहा है (जितना वह अपने मां-बाप को खोकर भी न रोया होगा)। कोई अंतर्मन से दुखी होकर पार्टी तज रहा है तो कुछ लोग पार्टी बदल नए चूल्हे पर अपनी हांडी पकाने में जुट गए हैं। कुछ टिकटार्थी टिकट न मिलने पर ‘सेल्फ क्वारेंटीन’ हो गए हैं तो जिन्हें किसी तरह टिकट मिल गया है तो उनके होठों पर मतदान से पहले ही जीत की मुस्कान तैरने लगी है।
खास बात ये है कि राजनीतिक पार्टियों और कार्यकर्ताओं में कोरोना की जगह सारा मातम और खुशी चुनाव टिकट गंवाने अथवा जुगाड़ने की है। बेखौफ चुनाव प्रचार कर रहे ये नेता लगातार साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि, उन्हें कोरोना से ज्यादा डर चुनाव हार जाने का है। ऐसा न हो, इसके लिए कुछ भी करेगा। टिकटों की इस मार-काट में राजनीतिक हताहतों के आर्त स्वर खूब सुनाई दे रहे हैं। इस वजह से होने वाली मारपीट पर भी सियासी मुलम्मा पलक झपकते चढ़ रहा है।
मसलन यूपी के देवरिया विधानसभा उपचुनाव में टिकट न मिलने से ‘आहत’ कांग्रेस की नेता तारा यादव इस कदर भड़कीं कि उन्होंने कांग्रेस सचिव एवं प्रदेश प्रभारी सचिन नायक पर स्वागत के लिए लाया गुलदस्ता ही फेंक मारा। बदले में वहां मौजूद कांग्रेस कार्यकर्ताओ ने तारा की धुनाई कर दी। इस घटना का वीडियो वायरल होते ही हाथरस कांड की जली भाजपा ने कांग्रेस पर तुरंत यह कह कर हमला किया कि अब ‘अवॉर्ड वापसी गैंग’, तथाकथित फेमिनिस्ट कहां हैं? अब महिला सुरक्षा की बात कहां है?
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, एक राजनीतिक पार्टी के लोग महिला के साथ गुंडों जैसा व्यवहार कर रहे हैं। यह गंभीर मामला है। दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए। उधर इस सियासी हमदर्दी के बरखिलाफ तारा देवी ने अपनी ही पार्टी के नेताओं को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि एक तरफ हमारी पार्टी के नेता हाथरस केस में पीड़िता को लिए न्याय दिलाने के लिए लड़ रहे हैं, दूसरी तरफ हमारी पार्टी एक बलात्कारी को चुनाव टिकट दे रही है। हालांकि तारा यादव ने यह भी कहा कि मैं कांग्रेस को बीजेपी नहीं बनने दे सकती।
बता दें कि इस सीट से कांग्रेस ने उन मुकुंद भास्करमणि त्रिपाठी को टिकट दिया है, जिन पर बलात्कार का आरोप है। पार्टी ने उनका ‘स्वागत समारोह’ भी आयोजित किया था। भास्करमणि का कहना है कि पार्टी ने मेरी ‘काबिलियत’ को देखकर ही टिकट दिया है। हालांकि बाद में कांग्रेस ने महिला से मारपीट करने के आरोप में दो कार्यकर्ताओं को निष्कासित कर दिया है।
उधर बिहार के आरा से राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व विधायक अनवर आलम को चुनाव टिकट कटने पर इतना गहरा सदमा लगा कि उन्हें हार्ट अटैक आ गया। अनवर को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बताया जाता है कि वे टिकट कटने की खबर के बाद डिप्रेशन में चले गए थे। अनवर को यह मानसिक झटका इसलिए भी लगा कि महागठबंधन के सीट शेयरिंग में यह सीट सीपीआई (माले) को चली गई है।
चुनाव टिकट गंवाने पर फूट-फूट कर रो पड़ना, ब्याह के बाद बेटी की विदाई की माफिक मर्मांतक होता है। बिहार में कैमूर जद (यू) के जिलाध्यक्ष प्रमोद कुमार सिंह को चुनाव टिकट न मिलने से इतने व्यथित हुए कि अपने आंसुओं की धार न रोक सके। प्रेस काफ्रेंस में भी रो-रोकर उन्होंने दिल का दर्द बयां किया। बिहार में ही मुजफ्फरपुर जिले की औराई सीट से राजद के पूर्व विधायक प्रोफेसर सुरेन्द्र राय का टिकट क्या कटा, उन्हें सारी दुनिया ही निस्सार लगने लगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में पंजाब में तो और गजब हुआ था। वहां होशियारपुर सीट से भाजपा ने विजय सांपला का टिकट काटकर दूसरे को दे दिया। मोदी सरकार में मंत्री रहे सांपला टिकट कटने के दंश से इतने आहत हुए कि उन्होंने इसे ‘गऊ हत्या’ बता दिया। सांपला ‘गऊ’ कैसे हुए, यह पहली कोई बूझ नहीं पाया। वैसे चुनाव टिकट कटने या न देने पर सम्बन्धित पार्टी कार्यालय में तोड़फोड़, मारपीट, धरने पर बैठना, अनशन करना, कोप भवन में चले जाना, अपनी ही पार्टी को हराने भीतरघात करना, पार्टी नेताओं को अपनी अपरिहार्यता जताना इत्यादि टिकट राजनीति के जाने-पहचाने कारक हैं।
इससे हटकर अगर हम कुछ अलग ट्रेंड देखें तो चुनाव टिकट संघर्ष के चार ट्रेंड दिखाई पड़ते हैं, जिनके माध्यम से हम इस ‘टिकट शास्त्र’ को भी समझ सकते हैं।
चोकर बाबा ट्रेंड: इसमें टिकटार्थी चुनाव टिकट न मिलने पर अन्न त्याग कर सकता है। उदाहरण के लिए बिहार में अमनौर विधानसभा सीट पर चुनाव टिकट न मिलने पर पूर्व विधायक चोकर बाबा उर्फ शत्रुघ्न तिवारी ने (देशहित में) अन्न त्याग करने का ऐलान किया है। चोकर बाबा अब बाकी जिंदगी फलाहार और टिकट की अदम्य कामना के सहारे काटेंगे। इस सीट पर भाजपा ने किसी दूसरे को टिकट दे दिया है। इससे खफा बाबा ने बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूड़ी को जमकर खरी-खोटी सुनाई।
चोकर बाबा का आरोप है कि उनका टिकट ‘साजिशन’ काटा गया और इससे भी बड़े दुख की बात यह कि टिकट उसे दिया गया, जिसको बाबा ने पिछले चुनाव में हराया था। हालांकि बाबा ने कहा कि “मैं सन्यासी हूं और अपना विरोध संन्यासी की तरह ही करूंगा।‘’ लेकिन बाबा ने अगर मप्र के वर्तमान उपचुनाव की हकीकत जान ली होती कि यहां लगभग सभी टिकट दलबदलुओं को ही मिले हैं तो वो शायद अन्न नहीं त्यागते।
सरताज/उदितराज ट्रेंड: पूरी उम्मीद के बाद भी पार्टी द्वारा टिकट न दिए जाने पर ताबड़तोड़ तरीके से शत्रु पार्टी में चले जाना। यह एक अलग किस्म का और हताशाजनित ‘राजनीतिक हृदय परिवर्तन’ है। पिछले लोकसभा चुनाव में दलित नेता उदितराज ने सांसद का टिकट फिर न मिलने पर गुस्से में भाजपा छोड़ी और कांग्रेस की जर्सी पहन कर चुनाव मैदान में उतरे और खेत रहे। इसका प्रीक्वल मप्र विधानसभा चुनाव में हुआ। जब सारी जिंदगी भाजपा में खपाने वाले सरताजसिंह ने इटारसी सीट से टिकट न मिलने पर कांग्रेस का तिरंगा दुपट्टा ओढ़ा और राजनीति से बाहर हो गए। वैसे इसका उलटा भी होता है। जैसे कि इस बार विस उपचुनाव में हर पार्टी का पानी पी चुके फूलसिंह बरैया को कांग्रेस ने क्या सोचकर टिकट दिया, यह बरैया के अलावा कोई बूझ नहीं पा रहा है।
भागीरथ प्रसाद ट्रेंड: यह चुनाव में ऐन वक्त पर सियासी पाला बदलने वाला ट्रेंड है। पूर्व आईएएस डॉ. भागीरथ प्रसाद को 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी हसरतों के साथ भिंड सीट से अपना प्रत्याशी बनाया था। उन्होंने रात तक कांग्रेसी भाइयों से बधाइयां लीं और सुबह की पहली किरण के साथ वो भाजपा का भगवा दुपट्टा ओढ़े नजर आए। उनकी वैचारिक निष्ठाएं अचानक 180 डिग्री के कोण से बदलीं और मोदी लहर में वो जीत भी गए। मजे की बात यह है कि भागीरथ प्रसाद ने उस चुनाव में कांग्रेस की जिन इमरती देवी को हराया था, आज विस उपचुनाव में भाजपा उन्हीं इमरती देवी के लिए समर्थन की दाल फेंट रही है।
गुप्तेश्वर पांडे ट्रेंड: यह चौथा और ‘माया मिली न राम’ वाला ट्रेंड है। इसमें कोई आला अधिकारी या शख्सियत ऐन चुनाव के पहले अपने ऊंचे ओहदे से इस प्रत्याशा में इस्तीफा देता है कि राजनीति के बाड़े में उतरते ही टिकट मिल जाएगा। लेकिन कर्म के साथ किस्मत भी चले, जरूरी नहीं होता। नतीजा ये कि राजनीतिक गुणाभाग के बाद कोई भी पार्टी उन्हें टिकट नहीं देती। पांडेजी ‘हलुआ मिला न मांडे’ वाली सूरत में आ जाते हैं। खुद को यह कहकर समझाते हैं कि हम तो समाज सेवा के लिए राजनीति में आए हैं।
लेकिन भारतीय राजनीति में ऐेसे भी लोग हैं जो चुनाव टिकट कटने का मातम अलग तरीके से मनाते हैं। उन्हें टिकट के लिए आंसू बहाना ठीक नहीं लगता। दो साल पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय कुछ ऐसा ही वाकया हुआ। वहां कांग्रेस नेता और वकील ब्रजेश कलप्पा ने चुनाव टिकट न मिलने पर फेसबुक पर अपनी पार्टी के नेताओं को फिल्म ‘अमरप्रेम’ में सुपर स्टार राजेश खन्ना का डायलाग कोट करते हुए कोसा-‘पुष्पा.. आई हेट टीयर्स..।‘ पर ये डायलाग क्या कलप्पा की अंतरात्मा से निकला था? आप भी सोचें।