अजय बोकिल
शादी में दिल से किया गया एक डांस भी आपको वैश्विक शोहरत कैसे दिलवा सकता है, यह ‘डांसिंग अंकल’ के नाम से मशहूर हुए संजीव श्रीवास्तव के डांस से साबित हुआ। यह भी सिद्ध हुआ कि सोशल मीडिया चंद मिनटों में ही आपको सरताज बना सकता है। पेशे से इंजीनियरिंग प्रोफेसर संजीव ने उम्र की अधेड़ावस्था में जिस गति और रिदम के साथ पेशेवराना स्टाइल में ठुमके लगाए, बदन लचकाया, उसने लोगों को दीवाना तो बनाया ही साथ ही बॉलीवुड डांस की पहुंच, लोकप्रियता और पकड़ को भी रेखांकित किया।
ग्वालियर में अपने साले की शादी में (जैसा कि रिवाज है) संजीव श्रीवास्तव ने खुशी में अपनी नृत्य प्रतिभा का घरेलू प्रदर्शन करने की नीयत एक पुराने फिल्मी गीत ‘मय से न मीना से न साकी से…’ पर जमकर डांस किया। किसी ने उसका वीडियो बनाकर न्यूज चैनलों को भेज दिया। चैनलों ने जीजाजी को इंटरनेशनल डांसर बना दिया।
इस हिसाब से साले साहब की शादी भी ऐतिहासिक बन गई। यह भी साबित हुआ कि इंजीनियरिंग जैसे शुष्क विषय का प्रोफेसर भी इस कदर नाच सकता है। चूंकि संजीव मूलत: विदिशा के हैं (शायद इसलिए भी) मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी। विदिशा नगर पालिका ने उन्हें अपना ब्रांड एंबेसेडर बना दिया। संजीव रातों रात बॉलीवुड सितारों के चहेते बन गए।
इस देश में शादी में नाचना अब नृत्य की नई और लोकप्रिय विधा बन चुकी है। शादी में किए जाने वाले ये डांस अमूमन बॉलीवुड डांस की (कई बार भौंडी) नकल होते हैं। इसका कोई कोरियोग्राफर नहीं होता। ये स्वप्रेरणा से, स्वानंद और स्वयंभू बारातियों के मनोरंजन के लिए किया जाने वाला राष्ट्रीय नृत्य होता है।
इस नृत्य का कोई घराना नहीं होता, सिवाय बारात डांस के। इसे परफार्म करने के लिए एक अदद बारात, डीजे या बैंड तथा नोट निछावर करने वाले चंद दिलदारों की जरूरत होती है। मस्ती में किए जाने वाला यह डांस (बारातियों के टुन्न होने से) कई बार तांडव नृत्य में भी बदल जाता है तो कई दफा वह बारात की घोड़ी के लिए भी ‘एलियन डांस’ जैसा होता है। नृत्य की इस विशुद्ध देसी शैली का अनिवार्य हिस्सा नागिन डांस और कई दफा गरबा भी होता है। इस डांस की सार्थकता का अंतिम पैमाना अधिकतम समय तक ट्रैफिक जाम होता है।
लेकिन प्रोफेसर संजीव श्रीवास्तव ने शादी समारोह में जो डांस किया, वह इसलिए सराहा गया कि उन्होंने अपने आदर्श हीरो गोविंदा को काफी कुछ सही ढंग से कॉपी किया। उनकी चपलता और रिदमिक मुद्राओं को देखकर अमेरिका तक में युवतियों ने उनको फॉलो किया। संजीव के नृत्य में लय थी। हालांकि उनका उद्देश्य केवल परिजनों को अपनी कला से अवगत कराना रहा होगा। लेकिन सोशल मीडिया ने इस डांस को बॉलीवुड तक पहुंचा दिया। यकीनन संजीव एक प्रशिक्षित डांसर हैं। लेकिन किस्मत ने उन्हें प्रोफेसर बना दिया।
यूं अपने देश की नृत्य कलाएं बेहद समृद्ध हैं। उनके लोक से लेकर शास्त्रीय तक अनेक प्रकार हैं, लेकिन बॉलीवुड डांस अपने आप में विभिन्न नृत्य शैलियों का एक कॉकटेल है। उसमें भरतनाट्यम, कथक जैसे शास्त्रीय नृत्यों से लेकर लोक नृत्यों और आधुनिक आरएंडबी डांस तक का सम्मिश्रण है। इसका नशा अलग ही है, जो पर्दे से लेकर बारातों तक छाया हुआ है। यही बॉलीवुड डांस बारात डांस बनकर और स्थानीय हो जाता है।
बारात डांसिग के इस ‘स्कूल में’ किसी को भी निशुल्क और बिना शर्त एंट्री है बशर्ते आप में नाचने की इच्छा हो और नाच कर आपका दिल खुश होता हो। यूं भी बारातों में सड़कों पर बेधड़क नाचने का कल्चर इस देश में (खासकर उत्तर-पश्चिम भारत में) मोटे तौर पर सत्तर के दशक में शुरू हुआ। एक जमाने में लोग जीतेन्द्र और मिथुन चक्रवर्ती के डांस के दीवाने हुआ करते थे, जो आज के ज्यादा कसरती नृत्यों की तुलना में सरल ही हुआ करता था। लेकिन तब भी डांस हर मौके पर खुशी के इजहार का प्रतीक नहीं बना था।
अस्सी के दशक के अंत में हीरो गोविंदा, अनिल कपूर आदि ने डांस को हमारी जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। वह हर मौके पर नाचने और नाच के लिए कोई भी मौका ढूंढ लेने के जुनून में तब्दील हो गया। यह युवा पीढ़ी के उन्मुक्त होने और बुजुर्गों के ज्यादा उदार होने का प्रमाण था। कुछ लोग इसे आर्थिक उदारीकरण के साथ जोड़कर ‘नर्तन उन्मुक्तिकरण’ के रूप में भी देखते हैं।
बदलते सामाजिक सोच, आर्थिक बेहतरी और रिश्तों में ज्यादा आजादी के आग्रह के चलते ऐसे डांस सामाजिक प्रतिबंधों और पारंपरिक वर्जनाओं को तोड़ने का खुला ऐलान बन गए। हर तरह का नाच ‘डांस’ में बदल गया। वरना चार दशक पहले तक महिलाओं का इस तरह सड़कों पर नाचना अभद्रता समझा जाता था, जबकि आज तकरीबन हर बारात में यह एक सांस्कृतिक इवेंट के रूप में देखा जाने लगा है। वह विवाह का अ-धार्मिक लेकिन अनिवार्य संस्कार बन गया है।
‘बाराती डांस’ का ही एक विस्तारित और ज्यादा ऑर्गनाइज्ड रूप विवाह समारोहों में स्टेज पर किया जाने वाला डांस है, जिस पर परफार्मेंस के कुछ बुनियादी नियम लागू होते हैं। संगीत और लाइट भी कंट्रोल्ड होते हैं। यहां ऑडियंस के रूप में बाराती भी किसी क्रांतिकारी मुद्रा के बजाए ज्यादा अनुशासित मानसिकता के साथ बैठे दिखते हैं। यहां बारात में जी भर मटकने का जोश एक कलात्मक थ्रिल हुआ जाता है।
किसी जमाने में बॉलीवुड फिल्मों में फैमिली फंक्शन का ऐसा मौका हीरोइन, हीरो अथवा किसी सहनायिका को नृत्य के माध्यम से दिल की बात कहने का या फिर फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने का अवसर हुआ करता था। इसी तारतम्य में प्रोफेसर संजीव श्रीवास्तव ने विवाह के मौके को एक अचीवमेंट में बदल दिया। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी कहना पड़ा कि ‘’मानो या ना मानो, मध्यप्रदेश के पानी में कुछ तो खास है।’
…ऐसा पानी जो बगैर मय, मीना और साकी के भी अच्छे-अच्छों को नचवा दे!
(सुबह सवेरे से साभार)