अंतरिक्ष की बधाई, लेकिन थोड़ी नजर जमीन पर भी डाल लें

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्‍ट्र के नाम संदेश में देश की एक महान उपलब्धि को रेखांकित करते हुए बताया कि भारत ने अंतरिक्ष में किसी उपग्रह को नष्‍ट करने की क्षमता हासिल कर ली है। अभी तक यह क्षमता दुनिया के सिर्फ तीन देशों अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी इस लिहाज से भारत यह क्षमता अर्जित करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।

भारत के वैज्ञानिक निश्चित रूप से इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए बधाई के पात्र हैं। यह भारत की निरंतर चली आ रही विज्ञान और तकनीक के विकास की परंपरा में मील का नया पत्‍थर है और देश यदि कोई उपलब्धि हासिल करता है तो स्‍वाभाविक है कि उस पर प्रत्‍येक भारतीय गर्व करे।

लेकिन गर्व के इन क्षणों के बावजूद आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जो यह जरूरत महसूस करवाते हैं कि उन पर ध्‍यान देना बहुत जरूरी है। चूंकि यह चुनाव का समय है इसलिए आकाश में हासिल की गई उपलब्धि पर गर्व के साथ साथ या उसके बावजूद यह जरूरी हो जाता है कि हम जमीन की भी बात करें।

वैसे तो अब तक यह लग रहा है कि इस बार का चुनाव किसी ठोस मुद्दे या एजेंडे के बिना ही लड़ा जा रहा है। लेकिन कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी द्वारा पिछले दिनों गरीबों की न्‍यूनतम आय को लेकर घोषित की गई ‘न्‍याय योजना’ ने एक तरह से चुनाव का एजेंडा सेट करने की कोशिश की है और बुधवार को प्रधानमंत्री के राष्‍ट्र के नाम संदेश के बाद आने वाले दिनों में चुनावी बहस मोटे तौर पर जमीन की बात और आसमान की बात पर केंद्रित हो सकती है।

ऐसे में आसमान से उतर कर हम अगर जमीन की बात करें तो हाल ही में देश की प्रतिष्ठित संस्‍था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्‍स (एडीआर) ने 2019 के आम चुनाव से पहले किए गए अपने मतदाता सर्वेक्षण के जो नतीजे जारी किए हैं उन्‍हें सभी राजनीतिक दलों को बारीकी और गंभीरता से देखना चाहिए। अक्‍टूबर 2018 से दिसंबर 2018 के बीच किए गए इस सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि मतदाताओं की शीर्ष 10 प्राथमिकताओं, जिनमें रोजगार से लेकर स्‍वास्‍थ्‍य, पेयजल और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे भी शामिल हैं, को लेकर लोग सरकारों के कामकाज से संतुष्‍ट नहीं हैं।

सर्वे में कुल 31 मुद्दों पर मतदाताओं के मानस को आंका गया लेकिन इनमें भी जो टॉप टेन मुद्दे रहे वे थे- रोज़गार के बेहतर अवसर, बेहतर अस्पताल/बेहतर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पेयजल, बेहतर सड़कें, बेहतर सार्वजनिक परिवहन, कृषि के लिए जल की उपलब्धता, कृषि ऋण की उपलब्धता, कृषि उत्पादों के लिए अधिक मूल्यों की प्राप्ति, बीजों/उर्वरकों के लिए कृषि सब्सिडी और बेहतर कानून व्यवस्था।

लोगों से कहा गया था कि वे प्रत्येक मुद्दे पर सरकार के कामकाज को लेकर पांच में से अंक प्रदान करें। समग्र आकलन के लिए जो पैमाना तैयार किया गया उसके मुताबिक पूरे पांच में से पांच अंकों के लिए ‘अच्छा’, तीन अंकों के लिए ‘औसत’ और एक या उससे कम के लिए ‘बुरा’ श्रेणी तय की गई थी। सर्वे के परिणाम बताते हैं कि ऊपर बताए गए टॉप टेन मुद्दों में से किसी भी मुद्दे पर सरकारों को लोगों ने ‘अच्छा’ का प्रमाण पत्र नहीं दिया है।

इससे भी बढ़कर सरकारों और राजनीतिक दलों के लिए चिंताजनक बात यह है कि इन सभी टॉप टेन मुद्दों पर सरकारों के प्रदर्शन को औसत श्रेणी से भी कम यानी पांच में से सिर्फ 2.28 (औसत) अंक ही मिले हैं। हां, सरकारें चाहे तो इस बात पर संतोष कर सकती है कि लोगों ने उन्‍हें किसी भी मामले में ‘बुरा’ की श्रेणी में नहीं रखा है।

सर्वे के दौरान जब लोगों से उनकी प्राथमिकताओं का क्रम पूछा गया तो जवाब में 46.80 फीसदी लोगों ने रोजगार के बेहतर अवसर को सबसे बड़ी जरूरत बताया। दूसरे नंबर पर स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं और तीसरे नंबर पर पेयजल का मामला रहा। आश्चर्यजनक रूप से बेहतर कानून व्यवस्था को लोगों ने टॉप टेन प्राथमिकताओं की सूची में सबसे अंतिम स्थान दिया और इसे 23.95 फीसदी की ही रेंटिंग मिली।

ध्‍यान देने वाली बात यह भी है कि दस प्राथमिकताओं की तालिका में छह से लेकर नौ नंबर तक के मुद्दे कृषि से ताल्‍लुक रखते हैं और इन मुद्दों पर लोगों की राय का औसत निकाला जाए तो सरकारों के कामकाज को पांच में से सिर्फ 2.15 अंक ही मिले हैं। समग्र सूची में परफार्मेंस के लिहाज से जिस क्षेत्र में सरकारों को सबसे कम अंक मिले हैं वह बीज व खाद के लिए सबसिडी का है। इस मामले में लोगों ने सरकारों को पांच में से सिर्फ 2.06 अंक ही दिए हैं।

सबसे कम अंकों के मामले में दूसरा नंबर रोजगार के अवसर उपलब्‍ध कराने का है और इस मोर्चे पर कामकाज को 2.15 अंक ही दिए गए हैं। इसके मुकाबले सबसे बेहतर परफार्मेंस सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में आंका गया जहां लोगों ने 2.2.58 अंक दिए। इसके बाद पेयजल के मामले में पांच में से 2.52 और बेहतर सड़कों के मामले में 2.41 अंक दिए गए हैं।

यहां एक बात स्‍पष्‍ट करना जरूरी है कि यह सर्वे किसी राज्‍य या केंद्र सरकार के कामकाज को केंद्र में रखकर नहीं किया गया था। बल्कि इसका उद्देश्‍य आम चुनाव से पहले मतदाताओं से यह जानना था कि उनकी दृष्टि में कौनसे मुद्दे हैं जिन पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए। इसके अलावा उनसे यह भी जानने की कोशिश की गई कि इन मुद्दों पर सरकारों के अब तक के परफार्मेंस को वे किस स्‍तर पर आंकते हैं।

इस सर्वे के साथ विडंबना यह रही कि ज्‍यादातर मीडिया में यह इस तरह छपा या इससे यह ध्‍वनि निकली मानो यह केंद्र सरकार के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड हो, जबकि यह मूलत: मतदाताओं का मानस पता करने के लिए किया गया था। लेकिन मीडिया में हुए इस घपले के बावजूद यह सर्वे उन सभी दलों के लिए आंखें खोलने वाला है जो आम जनता के मानस में उमड़-घुमड़ रहे मुद्दों से ध्‍यान भटकाते हुए हवाहवाई बातों या गैर मुद्दों को चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

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