अफसरों और डॉक्‍टरों में टकराव होना ठीक नहीं है

गिरीश उपाध्‍याय

एक तरफ देश कोरोना महामारी के महासंकट से गुजर रहा है और दूसरी तरफ देश के कई हिस्‍सों से प्रशासनिक अफसरों और डॉक्‍टरों या स्‍वास्‍थ्‍य/चिकित्‍सा से जुड़े अमले के बीच टकराव की खबरें आ रही हैं। हम जिन हालात का सामना कर रहे हैं उनमें इस तरह का टकराव न केवल अफसरशाही और मेडिकल क्षेत्र में काम करने वालों के लिए ठीक है बल्कि उन मरीजों के लिए भी ठीक नहीं है जो इससे सबसे ज्‍यादा प्रभावित हो रहे हैं।

पिछली बार इसी कॉलम में मैंने लिखा था कि वस्‍तुओं और संसाधनों के संकट से भी बड़ा संकट इस आपदा से निपटने की समुचित रणनीति तैयार करने और प्रबंधन का है। जो लोग इस संकट से मैदानी स्‍तर पर निपटने के लिए जिम्‍मेदार और जवाबदेह हैं उनके बीच ही यदि टकराव होगा और एक दूसरे के प्रति अनादर एवं अविश्‍वास का भाव पैदा होगा तो संकट और ज्‍यादा गहराएगा। संकट के और ज्‍यादा गहराने का नतीजा सिर्फ और सिर्फ कोरोना मरीजों की और अधिक मौतों के रूप में ही सामने आना है। तो क्‍या हम चाहते हैं कि ऐसा हो?

पूरे देश की बात अभी छोड़ भी दें तो अपने मध्‍यप्रदेश में ही हुई कुछ घटनाओं का संदर्भ लीजिये। हाल ही में इंदौर क्षेत्र से खबर आई है कि वहां दो सरकारी डॉक्‍टरों ने प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई कथित अभद्रता के बाद नौकरी से इस्‍तीफा दे दिया है। इंदौर की जिला स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी पूर्णिमा गडरिया ने कलेक्‍टर मनीष सिंह पर अभद्रता का आरोप लगाया है तो मानपुर के मेडिकल ऑफिसर डॉ. आर.एस. तोमर ने एसडीएम पर।

इससे पहले इंदौर में ही कारोना को लेकर हुई एक बैठक में अफसरों की डांट फटकार के बाद तत्‍कालीन मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी डॉ. प्रवीण जडि़या की तबियत बिगड़ गई थी और उन्‍हें अस्‍पताल में भरती कराना पड़ा था। भोपाल में जयप्रकाश अस्‍पताल के वरिष्‍ठ डॉक्‍टर योगेंद्र श्रीवास्‍तव को विधायक एवं पूर्व मंत्री पीसी शर्मा और स्‍थानीय पार्षद गुड्डू चौहान ने सार्वजनिक रूप से अपमानित किया था और आहत होकर उन्‍होंने भी अपना इस्‍तीफा दे दिया था। बाद में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री प्रभुराम चौधरी के मनाने पर उन्‍होंने अपना इस्‍तीफा वापस लिया।

ये तो वे घटनाएं हैं जिनकी मीडिया या सोशल मीडिया में चर्चा हुई है। लेकिन ऐसी घटनाएं करीब करीब रोज ही, प्रदेश के अलग अलग इलाकों में हो रही हैं और डॉक्‍टरों में इस बात को लेकर क्षोभ और असंतोष गहराता जा रहा है। डॉक्‍टरों का कहना है कि उन पर वैसे ही शारीरिक और मानसिक दबाव कई गुना बढ़ गया है और ऊपर से प्रशासनिक अधिकारी अपनी असफलताओं को छिपाने या अपनी ओर से लोगों एवं सरकार का ध्‍यान हटाने के लिए डॉक्‍टरों को मोहरा बना रहे हैं।

ऐसे ही एक प्रकरण में भोपाल के सबसे बड़े सरकारी हमीदिया अस्‍पताल के जूनियर डॉक्‍टरों ने हड़ताल पर जाने का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि इस दौरान ओपीडी से लेकर ऑपरेशन और इमरजेंसी सेवाओं तक की गतिविधियां बंद रहेंगी। जूडा का आरोप है कि कोरोना काल में दवाओं से लेकर ऑक्‍सीजन तक की पर्याप्‍त व्‍यवस्‍था नहीं हो रही है और इसका गुस्‍सा उन पर उतारा जा रहा है। यदि सरकार ने उनकी परेशानी दूर नहीं की तो शुक्रवार से पूरे प्रदेश के जूनियर डॉक्‍टर्स हड़ताल पर चले जाएंगे।

ये सारी घटनाएं बता रही हैं कि कोरोना के इस महासंकट काल में जिस स्‍वास्‍थ्‍य और चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था पर सारा दारोमदार है वहां असंतोष का लावा अंदर ही अंदर खदबदा रहा है। यह बहुत गंभीर मामला है और इसे चेतावनी के तौर पर लिया जाकर, इसका तुरंत समाधान निकाला जाना चाहिए। ठीक है कि इन दिनों प्रशासन और डॉक्‍टर दोनों ही अत्‍यधिक दबाव में काम कर रहे हैं। लेकिन इस दबाव में यदि एप्रोच एक दूसरे को दोषी ठहराने या किसी पर रौब गांठने की रहेगी तो मामला और ज्‍यादा बिगड़ेगा।

यह सही है कि अस्‍पतालों से अच्‍छी खबरें नहीं आ रही हैं। वहां मरीजों को संतोषजनक समाधान या उपचार मिलने में काफी दिक्‍कतें हैं, लेकिन इसका कारण सिर्फ और सिर्फ डॉक्‍टरों की लापरवाही ही नहीं है। यह सवाल बहुत जायज है कि यदि अस्‍पताल में ऑक्‍सीजन न हो, दवाओं और इंजेक्‍शन का टोटा हो, नए मरीजों को भरती करने के लिए बेड खाली न हों तो उसमें डॉक्‍टर क्‍या करेंगे? उनका काम मरीजों का इलाज करना है। अस्‍पतालों में जरूरी चीजों की सप्‍लाई निर्बाध रूप से होती रहे, इसकी जिम्‍मेदारी सरकार और प्रशासनिक अमले की है। ऐसा कैसे हो सकता है कि डॉक्‍टरों को जरूरी संसाधन उपलब्‍ध न कराए जाएं और यदि उसके कारण कोई असंतोष या जनहानि हो तो उसका ठीकरा भी उन्‍हीं के सिर फोड़ा जाए।

याद रखना होगा कि यह आपदा का समय है। सरकारी अस्‍पतालों पर तो दबाव और तनाव के हालात और भी गंभीर हैं। इन हालात को एक दूसरे के सहयोग और समन्‍वय से ही ठीक किया जा सकता है। लक्ष्‍य यह होना चाहिए कि कैसे एक दूसरे से मिलकर या एक दूसरे को हरसंभव मदद कर मरीजों के कष्‍ट का निवारण किया जाए, न कि यह कि एक दूसरे को कैसे निपटाया जाए। एक दूसरे को निपटाने का यही रवैया जारी रहा तो, अफसरों और डॉक्‍टरों का तो ज्‍यादा कुछ नहीं बिगड़ेगा, बेचारे मरीज लगातार निपटते चले जाएंगे। क्‍या हम चाहते हैं कि ऐसा हो? (मध्‍यमत)
—————-
नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें madhyamat@gmail.com पर प्रेषित कर दें।संपादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here