कोरोना में देरी ही दुर्घटना है
गिरीश उपाध्याय
कोरोना के इस महासंकट में सबसे बड़ी मुश्किल बीमारी के शुरुआती दिनों में टेस्ट को लेकर है। कई लोग टेस्ट करने का तरीका देखने के बाद उसे करवाने से डरते या घबराते हैं तो सोशल मीडिया पर उमड़ रही सूचनाओं के चलते कई लोगों के मन में टेस्ट की विश्वसनीयता को लेकर संशय है। जब इस तरह के कारणों के चलते टेस्ट ही नहीं होता और दूसरी तरफ हम कोरोना के लक्षणों को भी नजरअंदाज कर देते हैं तो फिर बात तो बिगड़नी ही है।
जैसाकि मैंने पहले कहा, इस बीमारी में हमें खुद सचेत होकर लक्षणों पर ध्यान देना होगा। सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन थोडे से भी लक्षण दिखने या शरीर में जरा सा भी कुछ असामान्य दिखने पर यह मानने के बजाय कि नहीं यह कोरोना नहीं है, आप यह मानकर आगे बढ़ें कि शायद यह कोरोना ही है। ऐसा मैं अपने अनुभव के आधार पर ही कह रहा हूं।
दरअसल जब हमारे घर में पत्नी और बेटी को शुरुआती लक्षण दिखाई दिये थे तब मुझे कोई भी लक्षण नहीं दिखा था। मैं अपनी सामान्य दिनचर्या पूरी कर रहा था। मेरे लिए सबकुछ ठीकठाक था। फिर भी एहतियात के तौर पर हमने घर में लक्षण दाखिल होने के 24 घंटे के भीतर ही सभी का आरटीपीसीआर टेस्ट करा लिया था। उसकी रिपोर्ट का इंतजार लंबा होता देख हम रैपिड टेस्ट के लिए गए तो मेरा सैंपल लेने के बाद डॉक्टर को टेस्ट की पट्टी पर आने वाले संकेत देखने और यह तय करने में बहुत मुश्किल हुई कि मैं पॉजिटिव हूं या नहीं। काफी देर तक पट्टी को इधर उधर घुमाने और अधिक उजाले में जाकर उसे देखने के बाद उन्होंने कहा- ‘’धुंधला सा दिख तो रहा है, आप तो मानकर चलिये कि आप भी पॉजिटिव ही हैं। और फिर जब घर में दो लोग पॉजिटिव हैं तो तय है कि इनके संपर्क में आने के कारण संक्रमण से आप बचे नहीं होंगे।‘’
डॉक्टर की इस बात पर सभी को ध्यान देना चाहिए। दरअसल घर में जब कोई व्यक्ति संक्रमित होता है तो उसका पता संक्रमण के शरीर में प्रवेश हो जाने के कुछ दिन बाद चलता है, जब तक कि संक्रमण के लक्षण नहीं दिखने लगते। उसके बाद संक्रमण की पुष्टि और देर से होती है क्योंकि टेस्ट करवाने और उसकी रिपोर्ट आने में समय लगता है। इस अवधि में जाने अनजाने में हम संक्रमित व्यक्ति के खूब संपर्क में होते ही हैं। और यही संपर्क हमें भी संक्रमित कर देता है।
घर के बाहर तो एक बार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आप कर भी लें लेकिन घर में साथ रहते हुए इसका पालन लगभग नामुमकिन ही है। तो सबक ये है कि घर में यदि एक व्यक्ति संक्रमित हुआ है तब आप भी मानकर चलिये कि वह संक्रमण आप तक पहुंचा ही होगा। भले ही आपको उसके लक्षण दिखें या न दिखें। जैसाकि मेरे साथ शुरुआती दौर में हुआ और डॉक्टरों को यह तय करने में मुश्किल हुई कि मैं पॉजिटिव हूं या नहीं।
खैर.. आरटीपीसीआर की रिपोर्ट का इंतजार करते हुए हम तीनों ने ही अपना कोरोना उपचार शुरू कर दिया था। और उपचार के लगभग चौथे दिन एक चौंकाने वाली घटना हुई। पत्नी और बेटी की आरटीपीसीआर रिपोर्ट तो पॉजिटिव आई लेकिन मेरी रिपोर्ट निगेटिव थी। अब कायदे से मुझे खुश होना चाहिए था कि क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक आधिकारिक रूप से मैं संक्रमित नहीं था, लेकिन मैं जान रहा था कि इस रिपोर्ट के साथ जरूर कुछ न कुछ लोचा है।
और ऐसा मैं इसलिए सोच रहा था क्योंकि चार दिन बीतते बीतते मुझे भी बुखार आने लगा था और साथ ही थकान व बदन दर्द भी। आगे चलकर मेरे मुंह का स्वाद भी गया और सूंघने की शक्ति भी। यानी रिपोर्ट भले ही कुछ भी कह रही हो, मेरा शरीर कह रहा था कि बाबू कोरोना ने तुमको भी आखिर दबोच ही लिया है… और मैं शरीर का शुक्रिया अदा करते हुए मन ही मन राहत महसूस कर रहा था कि अच्छा हुआ मैंने पहले दिन से ही उसकी बात सुन ली, और उसके लक्षणों/संकेतों की तरफ ध्यान दे दिया।
यहां मैं एक बात और कहना चाहूंगा। कोरोना के पहले दौर में लगभग सभी पॉजिटिव मरीजों को अस्पताल में दाखिल किया गया था। लेकिन इस बार अस्पतालों में जगह की मारामारी के चलते सामान्य लक्षण वाले सभी लोगों को घर में ही 15 दिन क्वारंटीन रह कर इलाज करवाने का परामर्श दिया जा रहा है। यह जो क्वारंटीन या आइसोलेशन वाला फंडा है ना, यह सुनने में तो बहुत आसान लगता है, पर इसे निभाना बहुत कठिन है।
ज्यादातर मामलों में हमारे घर इतने बड़े नहीं होते कि हम संक्रमित सदस्य के लिए अलग कमरा तय कर दें। और अलग कमरा हो भी जाए तो बाथरूम या टॉयलेट भी अलग हो यह संभव नहीं हो पाता। ऐसे में क्वारंटीन या आइसोलेशन सिर्फ नाममात्र का होता है, सिर्फ मन समझाने वाली बात। हम कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में संपर्क में आते ही हैं और संक्रमण का शिकार भी हो ही जाते हैं।
इसलिये जिन घरों में परिवार का एक भी सदस्य संक्रमित हुआ है वे अपने आपको निरापद मानकर न चलें। अपने शरीर पर, उसके लक्षणों पर और कोई भी असामान्य हरकत पर बराबर नजर बनाए रखें और जैसे ही कुछ असामान्य लगे तुरंत उपचार शुरू कर दें। ताकि बाद में खुद को और दूसरों को यह खेद जताने का मौका न मिले कि अरे तुमने थोड़ी देर कर दी। याद रखें सड़क पर चलते समय यह वाक्य आपके काम का हो सकता है कि ‘दुर्घटना से देर भली’ लेकिन कोरोना के मामले में देरी ही दुर्घटना है… देर हुई तो पता नहीं आपके साथ क्या क्या अंधेर हो और शायद अंधेरा भी…
क्वारंटीन तो हो गए, पर ये दिन बीतें कैसे?… कल बात करते हैं… (जारी)
(मध्यमत)
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