राकेश अचल
नई सरकार देश में बन चुकी है इसलिए अब गंभीर मुद्दों पर विमर्श जरूरी है। मेरी कमजोरी है कि मै समय से दो कदम आगे चलने की गलती करता हूँ, लेकिन कभी-कभी मेरी यही गलती सुखद परिणाम भी देती है। हाँ तो मैं नई सरकार और पुराने मुद्दे की बात कर रहा था। सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आने के साथ ही इन अटकलों का बाजार गरम हो चुका था कि भाजपा के केंद्र में सत्तारूढ़ होते ही देश की वे तीन कांग्रेस शासित राज्य सरकारें खतरे में पड़ जायेंगीं जहाँ से भाजपा को अच्छी बढ़त हासिल हुई है।
देश में राजनीतिक जलन के चलते निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने के लिए केंद्र सरकारें संविधान प्रदत्त रामायुध धारा 356 का इस्तेमाल करती आई हैं। कांग्रेस की केंद्र सरकारों ने तो इस रामायुध से प्रतिद्वंदी दलों की अनेक राज्य सरकारों का जीवन समाप्त किया और अनेक राज्य इस रामायुध के स्थाई शिकार बने हुए हैं। राज्य सरकारों को गिराने के लिए धारा 356 का इस्तेमाल असंवैधानिक नहीं है, किन्तु विवादित अवश्य है और जब-जब इसका इस्तेमाल किया गया है विवाद हुआ है। राज्यों की सरकारें गिराने के लिए इसका इस्तेमाल राज्यपाल की सिफारिश पर किया जाता है, और आप जानते हैं कि राज्यपाल क्या चीज होते हैं। मैं राज्यपालों को ‘कठपुतली’ कह कर कठपुतली का अपमान नहीं करूंगा।
बहरहाल यदि आप अतीत पर जोर डालें तो जान जायेंगे कि इस देश में धारा 356 का इस्तेमाल 126 बार किया गया। जाहिर है कि राजनीति में ये एक अमोघ अस्त्र है जो कभी खाली नहीं जाता। देश के दो-तीन राज्यों को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा जिसकी सरकार कभी न कभी इस रामायुध का शिकार न बनी हो। जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकारों को तो इसका स्वाद स्थाई रूप से पता है, क्योंकि अब तक सर्वाधिक 7 बार धारा 356 का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में ही निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने के लिए किया गया। दुर्भाग्य से जब मैं ये आलेख लिख रहा हूँ तब भी जम्मू-कश्मीर में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति का शासन लागू है।
गोया कि दूसरी बार केंद्र की सत्ता में आई भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत है इसलिए उसे धारा 356 के तहत मिले रामायुध का इस्तेमाल करने के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, किन्तु मैं माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से अनुरोध करूंगा कि वे इस अमोघ अस्त्र का इस्तेमाल करने में कोई जल्दबाजी न करें। उनके मन में फिलहाल इसका विचार भी नहीं आना चाहिए अन्यथा उनमें और कांग्रेस के मूल चरित्र में कोई भेद रह ही नहीं जाएगा। मोदी जी के 57 सदस्यीय मंत्रिमंडल में एक भी सदस्य ऐसा नहीं है जो खड़े होकर उनके किसी भी फैसले का विरोध कर सके। मंत्रिमंडल माल्यवंत और विभीषणों से मुक्त है, इसलिए ये विवेक खुद प्रधानमंत्री जी को दिखाना होगा।
आने वाले दिनों में यदि केंद्र की नई सरकार देश की किसी गैर भाजपा सरकार के साथ छेड़छाड़ नहीं करती तो मानकर चलिए कि मोदी की इस सरकार का मान जनता और जनार्दन दोनों के मन में अपने आप बढ़ जाएगा। देश के बाहर भी इसकी सराहना होगी, और यदि ऐसा न हुआ तो देश फिर एक बार असहिष्णुता की राजनीति के पथ पर दो कदम आगे बढ़ जाएगा। प्रधानमंत्री जी ने चूंकि सबको साथ लेकर चलने और सबका विकास करने की शपथ ली है इसलिए उम्मीद करना चाहिए कि अब उनका स्वभाव भी बदलेगा और वे बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करेंगे।
अपने खिलाफ बनी धारणाओं को निर्मूल करने के लिए प्रधानमंत्री जी के पास यह स्वर्ण अवसर है। वे इसका लाभ लें या न लें यह उनके ऊपर है, किन्तु मैं कहूंगा कि उन्हें इस अवसर को भुना लेना चाहिए। छोटे मुंह बड़ी बात करना गलत है लेकिन जब जरूरी हो तो बात करना चाहिए, जैसे कि मैं कर रहा हूँ। देश में लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के अनेक उपाय और रास्ते हैं इन्हीं में से एक है सहकार। दूसरे दलों की सरकारों को शत्रु भाव से न देखा जाये तो बात बन सकती है। मैं तो कहता हूँ कि अब देश में जो भी निर्णय हों वे भावी सियासी नफा-नुक्सान को ध्यान में रखकर करने के बजाय देशकाल की जरूरतों के हिसाब से किये जाएँ। किसी राज्य को अपना हक मांगने के लिए केंद्र के सामने रिरियाना न पड़े। एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की जाये जो प्राथमिकताओं का निर्धारण अपने आप कर ले।
विकास के जिस प्रारूप की बात मैं कर रहा हूँ वो कठिन अवश्य है किन्तु नामुमकिन नहीं। फिर इस बार का तो नारा ही था-‘मोदी है तो मुमकिन है’ मुझे इस नारे पर यकीन करना चाहिए या नहीं, मैं नहीं जानता, लेकिन मैं मानता हूँ कि यदि मोदी जी चाहें तो ये भी मुमकिन हो सकता है कि देश सभी राजनीतिक दलों के सहकार से चले। इस देश को धार्मिक राष्ट्र बना पाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं है। मोदी जी के लिए भी नहीं, इसलिए नए भारत की बुनियाद जिन सिद्धांतों और मूल्यों को लेकर रखी गयी है, उन्हें मजबूत बनाने की आवश्यकता है। ये देखने से कुछ हासिल नहीं होगा कि इन सिद्धांतों और मूल्यों की जड़ में नेहरू हैं या और कोई। सब हमारे पुरखे हैं और सबका इस देश के विकास में योगदान है।
मै प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को अपनी शुभकामनाएं देते हुए अपने आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मोदी जी ने जो कहा है वे इस बार उससे पीछे नहीं हटेंगे और उन्हें हटना भी नहीं चाहिए। ये ठीक है कि मोदी जी स्वतंत्रता के बाद के नेता हैं इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी अपनी कोई भूमिका नहीं है, किन्तु नए भारत के निर्माण में उनकी एक मुख्यमंत्री के तौर पर और एक प्रधानमंत्री के तौर पर अविस्मरणीय भूमिका है और इसे झुठलाया नहीं जा सकता। उनकी इन दोनों भूमिकाओं को लेकर अपनी-अपनी धारणाएं बनाने के लिए सभी स्वतंत्र हैं।