लेकिन राजनीतिक पराली से उठे धुंए का क्‍या करें?

मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दो नवंबर के दिन जब राज्‍य सरकार द्वारा ‘राइट टू हेल्‍थ’ को लेकर कानून बनाने पर आयोजित दो दिवसीय विमर्श के अंतिम दिन देश भर से आए विषय विशेषज्ञ लोगों की सेहत और स्‍वास्‍थ्‍य के अधिकार से जुड़े मुद्दों पर मंथन कर रहे थे, उसी समय दिल्‍ली से खबर आ रही थी कि राष्‍ट्रीय राजधानी पर जहरीले धुंए (स्‍मॉग) की चादर छा जाने के कारण वहां ‘हेल्‍थ इमरजेंसी’ घोषित कर दी गई है।

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने दिल्ली, हरियाणा और यूपी के मुख्य सचिवों को चिट्ठी लिखकर जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। ईपीसीए के चेयरमैन भूरेलाल के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में हवा लगातार जहरीली होती जा रही है और हवा की गुणवत्ता का स्‍तर बेहद गंभीर बना हुआ है। इन हालात का लोगों के, खासकर बच्‍चों व बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर होगा।

प्राधिकरण ने हालात पर काबू पाने और लोगों को उसके दुष्‍प्रभाव से बचाने के लिए दिल्ली, फरीदाबाद, गुरुग्राम, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 5 नवंबर तक निर्माण कार्य पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है। हॉट मिक्स प्लांट, स्टोन क्रशर भी इस दौरान बंद रहेंगे। दिवाली के अनुभव को देखते हुए ठंड के पूरे मौसम में पटाखे प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। बीमार, बच्चों और बुजुर्गों को घर से बाहर निकलने और लोगों को खुले में व्‍यायाम करने से बचने को कहा गया है। दिल्ली के अलावा गुड़गांव, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद में 5 नवंबर तक स्कूलों की छुट्टी कर दी गई है।

दिल्‍ली के लिए इस तरह के हालात बनना कोई नई बात नहीं है। पिछले कई सालों से वहां ठंड शुरू होते ही ऐसी स्थितियां बनने लगती हैं। मीडिया में दिल्‍ली के जहरीले हो जाने की खबरें छाई रहती हैं और मौसम बीत जाने के बाद अगले साल के लिए ऐसी ही खबरों के इंतजार में लोग फिर रूटीन जिंदगी जीने लगते हैं। खराब हवा को लेकर हाहाकार एक सालाना कर्मकांड की तरह हो गया है। सियासत से लेकर मीडिया तक हर बार यह स्‍यापा होता है। बीच बीच में सुप्रीम कोर्ट भी मामले पर ‘गंभीर चिंता’ जताते हुए सरकारों और प्रशासन को ‘कड़े’ दिशानिर्देश जारी कर देता है लेकिन होता जाता कुछ नहीं।

दिल्‍ली कहने को भले ही भारत की राजधानी है लेकिन कई मामलों में ऐसा लगता है कि राजधानी जैसी ‘आदर्श’ स्थितियां वहां कुछ भी नहीं है। किसी भी मामले में अव्‍वल आने पर छाती फुलाने वाले लोग पता नहीं इस बात पर किस तरह रिएक्‍ट करेंगे कि हमारी दिल्‍ली विश्‍व के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप पर है।

मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने वाली एजेंसी ‘एयर विजुअल’ के मुताबिक भारत में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 622 दर्ज किया गया है जो कि खतरनाक स्तर है। दुनिया के टॉप 10 प्रदूषित शहरों में 8 एशियाई देशों के हैं और दो यूरोपीय देशों के। दिल्ली के बाद सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर पाकिस्तान का लाहौर है। उसके बाद कोलकाता, पॉजनैन व क्राको (पोलैंड) हांगजउ (चीन), काठमांडू (नेपाल), ढाका (बांग्लादेश), बुसान (दक्षिण कोरिया), चॉन्गकिंग (चीन) का नंबर है।

याद कीजिये 23 सितंबर 2019 को संयुक्‍त राष्‍ट्र में जलवायु कार्रवाई सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण जिसमें उन्‍होंने कहा था- ‘‘हमें स्वीकार करना चाहिए कि अगर हमें जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर चुनौती से पार पाना है तो हम इस समय जो कुछ कर रहे हैं, वह पर्याप्त नहीं है।… बातचीत का समय पूरा हो गया है, अब दुनिया को कार्रवाई करनी होगी।‘’

प्रधानमंत्री ने कहा था- ‘‘हमें आदतों में बदलाव लाने के लिए वैश्विक जन आंदोलन की जरूरत है। प्रकृति के लिए सम्मान, संसाधनों का उचित दोहन, अपनी जरूरतों को कम करना और अपने साधनों के साथ रहना, ये सभी हमारे परंपरागत और वर्तमान प्रयासों के महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं और इसलिए आज भारत केवल इस मुद्दे की गंभीरता पर बात करने के लिए नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक रुख और खाका प्रस्तुत करने आया है।‘’

भारत के प्रधानमंत्री के उस भाषण को पूरी दुनिया ने बहुत ध्‍यान से सुना था। ऐसा इसलिए भी था क्‍योंकि पेरिस जलवायु समझौते में भी भारत ने बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन ऐसा लगता है कि अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर हमारी कथनी कुछ और है और घरेलू मोर्चों पर वास्‍तविकता या करनी कुछ और। हम दुनिया के सामने तो यह कहते हैं कि ‘’बातचीत का समय पूरा हो गया है, अब दुनिया को कार्रवाई करनी होगी‘’ लेकिन देश की राजधानी में ही यह ‘कार्रवाई’ नहीं हो पाती।

कार्रवाई के उलट, जहरीली हवाओं से लिपटी दिल्‍ली को जहरीले राजनीतिक बयानों और कुटिल चालों से और अधिक जहरीला और दमघोटू बनाया जा रहा है। बजाय प्रदूषण की समस्‍या का स्‍थायी हल निकालने के, दिल्‍ली की केजरीवाल सरकार जहां पड़ोसी राज्‍यों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली को हवा खराब करने के लिए दोषी ठहरा रही है वहीं पड़ोसी राज्‍यों का कहना है कि दिल्‍ली की हालत पराली के धुंए से नहीं बल्कि लाखों की संख्‍या में सड़कों पर चल रहे वाहनों, निर्माण गतिविधियों और उद्योगों से खराब हुई है।

एक तरफ केजरीवाल बच्‍चों से अपील कर रहे हैं कि वे हरियाणा के ‘खट्टर अंकल’ और पंजाब के ‘कैप्‍टन अंकल’ को चिट्ठी लिखें कि हमारी सेहत का खयाल रखें। वहीं दिल्‍ली प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष मनोज तिवारी केजरीवाल को सलाह दे रहे हैं कि वे (केजरीवाल) जितना पैसा अपने विज्ञापनों पर खर्च करते हैं, उसका एक चौथाई हिस्सा भी यदि किसानों से पराली खरीदने में लगाते तो दिल्ली गैस चैंबर कभी नहीं बनती और किसान भी खुशहाल होते।

आरोप प्रत्‍यारोप का यह सिलसिला हर साल यूं ही चलता रहता है और हर साल दिल्‍ली ठंड के दिनों में इसी तरह हाहाकार करती रहती है। एक तरफ खेतों, वाहनों और उद्योगों से उठने वाला धुंआ आबोहवा को जहरीला बनाता है तो दूसरी तरफ ‘पॉलिटिकल पराली’ से उठने वाला धुंआ दम घोटने लगता है। जमीन पर मामले से निपटने की रुचि किसी की नहीं लगती। जब हम कश्‍मीर में अनुच्‍छेद 370 हटाने का फैसला कर उसे लागू करने की हिम्‍मत और इच्‍छाशक्ति दिखा सकते हैं तो जहरीले धुंए से निपटने में ऐसा क्‍यों नहीं कर पाते?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here