आजाद की अगुवाई में सोनिया-राहुल को फिर चुनौती

जम्‍मू/ कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वर्तमान नेतृत्‍व के खिलाफ एक बार फिर पार्टी के भीतर से ही आवाज उठी है। इस बार इस आवाज का केंद्र बने हैं जम्‍मू कश्‍मीर के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद। आजाद का राज्‍यसभा का कार्यकाल पिछले दिनों ही समाप्‍त हुआ है और उसके बाद से पार्टी ने उन्‍हें कोई नई जिम्‍मेदारी नहीं दी है। आजाद की पार्टी के प्रति निष्‍ठा और इतनी लंबी सेवाओं के साथ व्‍यापक राजनीतिक अनुभव का कांग्रेस नेतृत्‍व द्वारा कोई उपयोग नहीं किए जाने को लेकर पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं में नाराजी है।

आपको याद होगा पिछले साल भी पार्टी के कई नेताओं ने चिट्ठी लिखकर नेतृत्‍व से मांग की थी कि फैसले लेने की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए और पार्टी की कमजोरियों पर खुलकर बात हो। उस समय जिन नेताओं ने यह बात उठाई थी उन्‍हें जी-23 के नाम से पुकारा गया था। माना गया था कि इस समूह में शामिल लोग पार्टी के सांगठनिक ढांचे में आमूलचूल बदलाव चाहते हैं। वे ही नेता शनिवार को एकबार फिर जम्‍मू में इकट्ठे हुए और उनकी सारी गतिविधियों का केंद्र गुलाम नबी आजाद रहे।

जम्‍मू के आयोजन को शांति सम्‍मेलन नाम दिया गया। गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्‍बल जैसे नेताओं ने पार्टी नेतृत्‍व की कार्यशैली पर खुलकर नाराजी जताई है। कपिल सिब्‍बल अभी हाल ही में राहुल गांधी के उस बयान पर भी नाखुशी जाहिर कर चुके हैं जिसमें राहुल ने दक्षिण भारत की राजनीति को उत्‍तर भारत की राजनीति से बेहतर बताया था। शांति सम्‍मेलन में आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और राज बब्बर जैसे कई दिग्‍गज कांग्रेसी नेता शामिल हुए। आनंद शर्मा ने खुलकर कहा कि हमें कांग्रेसी होने का किसी से सर्टिफिकेट नहीं लेना है। कांग्रेस में रहने वाले और महात्‍मा गांधी की सोच को मानने वालों से कोई यह नहीं पूछ सकता कि वे कांग्रेसी हैं या नहीं- ‘जो कांग्रेस में हैं और महात्मा गांधी की सोच को मानते है- उनके अंदर सच बोलने की हिम्मत ना हो, ये कैसे हो सकता है?’

उन्होंने कहा ‘पिछले एक दशक में कांग्रेस कमजोर हुई है, हम नहीं चाहते कि अपनी बढ़ती उम्र के साथ हम कांग्रेस को कमजोर होता देखते रहें। हममें से कोई आसमान से नहीं आया,  किसी खिड़की दरवाजे से भी हमने प्रवेश नहीं किया। हम छात्र आंदोलन से आये हैं। ये अधिकार हमने किसी को नहीं दिया कि हमें बताये कि हम कांग्रेसी हैं या नहीं।’

जम्‍मू के कार्यक्रम को नेतृत्‍व विरोधी गुट की लामबंदी के रूप में देखा जा रहा है। वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने कहा ‘मुझे समझ नही आ रहा है कि कांग्रेस पार्टी गुलाम नबी आजाद के अनुभव का उपयोग क्यों नहीं कर रही?’ वहीं, मनीष तिवारी का कहना था कि हम सब यहां ग्लोबल फैमिली के बुलावे पर इकट्ठे हुए हैं। अभिनेता से राजनेता बने राज बब्बर ने कहा- ‘लोग इसे जी-23 कहते है पर मैं इसे गांधी-23 कहता हूं। हम कांग्रेस की भलाई चाहते हैं। जहां तक आजाद साहब का सवाल है, तो मैं कहूंगा कि उनकी यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि आधी भी नहीं हुई है।’

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