पत्‍थरों का ध्‍यान तो तभी रखेंगे ना जब नदी में पानी हो

दुनिया में 5 ट्रिलियन यूएस डॉलर या उससे अधिक अर्थव्‍यवस्‍था वाले देशों में यूरोपियन यूनियन, अमेरिका, चीन और जापान शामिल हैं (स्रोत-विकीपीडिया)। बकौल वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमन, भारत तीन ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन चुका है और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि देश को 2024-25 तक पांच ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्‍यवस्‍था बना दिया जाए।

हम दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍थाओं को देखें तो पाएंगे कि पांच ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्‍यवस्‍था वाले क्‍लब में सबसे पहला नंबर यूरोपियन यूनियन का था जिसने यह लक्ष्‍य 1987 में यानी आज से 32 साल पहले हासिल कर लिया था, जबकि अमेरिका इस क्‍लब में 1988 में, जापान 1995 में और चीन 2009 में शामिल हुए।

2009 के बाद से चीन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2010 में वह जापान को पीछे छोड़ते हुए 6 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन गया। जापान को 6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने में एक साल और लगा और वह 2011 में इस मुकाम पर पहुंच पाया। 2010 के बाद चीन ने हर साल अपनी अर्थव्‍यवस्‍था में एक ट्रिलियन डॉलर का इजाफा किया और 2015 तक वह 11 ट्रिलियन डॉलर और 2017 आते आते 12 ट्रिलियन डॉलर वाली इकानॉमी बन गया।

लेकिन आज भी यूरोपियन यूनियन और अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में शामिल हैं और इनकी इकानॉमी 19 ट्रिलियन डॉलर से अधिक पहुंच चुकी है। इसमें भी यह बात नोट करने वाली है कि यूरोपियन यूनियन जहां 2008 में ही 19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था, वहीं अमेरिका को इस मंजिल तक पहुंचने में उसके बाद भी नौ साल लगे और वह 2017 में 19 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बना।

दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍थाओं पर नजर रखने वाले फोरम ‘फोकस इकानॉमिक्‍स’ के अनुसार जीडीपी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका 2019-20 में 21.5 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 22.33 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन जाएगा, जबकि चीन इसी अवधि में 14.24 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 15.67 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ दूसरे नंबर पर रहेगा। उसके बाद जापान, जर्मनी, यूके और भारत का नंबर है।

लेकिन इन आंकड़ों के समानांतर आर्थिक विशेषज्ञों का एक अनुमान बहुत दिलचस्‍प और ध्‍यान देने योग्‍य है। यह अनुमान कहता है कि ट्रिलियन डॉलर अर्थव्‍यवस्‍था वाले क्‍लब में शामिल टॉप टेन देशों में से एक अकेला भारत ही होगा जो 2019 में 7.4 और 2020 में भी इतनी ही जीडीपी ग्रोथ हासिल करेगा। जबकि बाकी सभी देशों के बारे में अनुमान यह है कि उनकी जीडीपी ग्रोथ में आंशिक ही सही पर कमी आएगी। इनमें अमेरिका की जीडीपी ग्रोथ 2.5 से घटकर 1.7 फीसदी और चीन की 6.3 से घटकर 6.1 रहने का अनुमान है।

विशेषज्ञों के मुताबिक जीडीपी में सर्वाधिक ग्रोथ करने के कारण भारत की अर्थव्‍यवस्‍था में भी सुधार होगा और हम आज की वैश्विक तालिका के संदर्भ में छठे नंबर से ऊपर उठकर, जर्मनी और यूके को पीछे छोड़ते हुए, जापान के बाद दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकानॉमी बन जाएंगे। अनुमान यह भी है कि 2019 में पूरी दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था में 3.2 फीसदी की बढ़ोतरी होगी लेकिन 2020 में यह रफ्तार घटकर 2.9 रह जाएगी। इसमें सबसे बड़ी भूमिका अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा व्‍यापार विवाद की होगी। यहां हमें यह भी याद रखना होगा कि इस विवाद से भारत भी अछूता नहीं है।

दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍थाओं को लेकर लगाए जाने वाले इन अनुमानों और भारत की मौजूदा सरकार द्वारा 2024-25 तक देश को पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्‍यवस्‍था बनाने के लक्ष्‍य के बीच यह जानना जरूरी है कि हम इस लक्ष्‍य को पाएंगे कैसे? क्‍या भारत का सामाजिक और आर्थिक ढांचा इस लक्ष्‍य का भार वहन करने लायक है?

इसके साथ ही यह सवाल भी नत्‍थी है कि इस लक्ष्‍य को पाने के लिए हमारी नीति और दिशा क्‍या होगी? क्‍या हम इसके लिए पश्चिमी देशों या अमेरिका का मॉडल अपनाएंगे या फिर मनमोहन सरकार के समय से शुरू हुई लुक ईस्‍ट पॉलिसी, जो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में प्रो-ईस्‍ट से होती हुई एक्‍ट-ईस्‍ट में तब्‍दील हो गई थी, को आगे बढ़ाते हुए चीनी मॉडल को अंगीकार करेंगे।

ईरान को लेकर बढ़ते दबाव और अपनी तेल जरूरतों को पूरा करने की छटपटाहट के बीच भारत को अमेरिका से रिश्‍तों के संदर्भ में अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर नए सिरे से सोचना पड़ रहा है। ट्रंप प्रशासन के अनिश्चित रुख को देखते हुए भारत की मुश्किलें फिलहाल कम होती हुई नहीं लगतीं। एक तरफ अमेरिका अपनी वैश्विक दादागिरी कायम रखते हुए चाहता है कि हम ईरान से दूरी बनाएं, वहीं वह यह भी चाहता है कि हम चीन की तरफ भी न झुकें।

लेकिन मोदी-02 कार्यकाल शुरू होने के बाद से ही भारत की अर्थनीति में कुछ अप्रत्‍याशित परिवर्तन देखने को मिले हैं। खासकर पांच जुलाई को वर्ष 2019-20 का पूर्ण बजट आने से एक दिन पहले संसद में पेश 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसकी झलक साफ दिखाई देती है। यह सर्वेक्षण साफ साफ संकेत देता है कि आर्थिक नीतियों के लिहाज से भारत का झुकाव चीन की तरफ बढ़ रहा है।

जरा सर्वेक्षण के इस पैराग्राफ को देखिए जो कहता है-‘’अंतर्राष्ट्रीय अनुभव, विशेषकर उच्च विकास दर वाले पूर्वी एशिया की अर्थव्यवस्थाओं का अनुभव यह सुझाव देता है कि, ऐसा विकास केवल बचत, निवेश और निर्यात के सद्चक्र से संचालित विकास मॉडल से ही बनाए रखा जा सकता है जिसे अनुकूल जनांकीय दौर (डेमोग्राफिक फेज) से मदद मिले।‘’

और जब हम पूर्वी एशिया के उदाहरण की बात कर रहे होते हैं तो निश्चित रूप से हमारा संकेत या तो चीन की तरफ होता है या फिर जापान की तरफ। इसमें भी चीन के प्रति रुझान इसलिए दिखाई दे रहा है क्‍योंकि आर्थिक सर्वेक्षण में चीन के मॉडल और वहां की प्रगति का प्रत्‍यक्ष और परोक्ष रूप से कई बार सकारात्‍मक संदर्भों में जिक्र किया गया है। आपको यह जानकर हैरत होगी कि आर्थिक सर्वेक्षण में न सिर्फ चीन का संदर्भ है, बल्कि उसमें चीन के पूर्व राष्‍ट्रपति देंग शियाओ पिंग को यह कहते हुए कोट किया गया है कि- ‘’नदी पार करते समय उसके पत्थरों का ध्यान रखें।‘’

पर पत्‍थरों का ध्‍यान रखने की नौबत तो तभी आएगी ना जब नदी में पानी बह रहा हो… क्‍या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारी आर्थिकी की नदी में पर्याप्‍त प्रवाह बना हुआ है 

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