आपको याद होगा कि सुप्रीम कोर्ट सख्त रुख के बाद चुनाव आयोग ने 16 अप्रैल को देश के चार बड़े नेताओं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर, उनकी आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर आदर्श आचार संहिता के तहत 48 से 72 घंटे तक चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगाया था।
उस प्रतिबंध के सिलसिले में 17 अप्रैल को मैंने इसी कॉलम में सवाल उठाया था कि- ‘’सजा तो है, पर सजा का डर और असर भी है क्या? मेरा यह सवाल आज भी ज्यों का त्यों है। क्योंकि चुनाव प्रचार प्रतिबंधित करने जैसी छुटपुट और प्रतीकात्मक सजाओं से अप्रभावित हुए नेताओं की ओर से आचार संहिता का उल्लंघन खुलेआम जारी है। यही नहीं कई लोग तो चुनाव आयोग और जनप्रतिनिधित्व कानून का मखौल उड़ाते हुए ऐसी सजाओं और प्रतिबंधात्मक कदमों का और उलटे मजा ले रहे हैं। ऐसी सजाओं ने उन्हें नुकसान पहुंचाने के बजाय फायदा पहुंचाने का काम ही ज्यादा किया है।
सबसे ताजा मामला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का है जिन्होंने शुरू से ही राफेल डील के संदर्भ में ‘’चौकीदार चोर है’’ के नारे को कांग्रेस के चुनाव अभियान का केंद्र बिंदु बना दिया। राहुल की एक भी सभा या रैली इस नारे के बिना पूरी नहीं हो रही है। लेकिन पिछले दिनों राहुल जोश जोश में यह एक गलती कर बैठे। उन्होंने अपने आरोप के पुरावे या सबूत के तौर पर सुप्रीम कोर्ट को भी लपेट लिया।
हुआ यूं कि दस अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए राफेल मामले में रिव्यू पिटिशन पर नए दस्तावेज के आधार पर सुनवाई का फैसला किया था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय बेंच ने एक मत से कहा था कि जो नए दस्तावेज सार्वजनिक हुए हैं उस आधार पर मामले में दायर पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस रुख ने राहुल को इतना अधिक उत्साहित कर दिया कि वे मीडिया से चर्चा करते हुए यह बयान दे बैठे कि “सुप्रीम कोर्ट ने क्लियर कर दिया है कि चौकीदार जी ने चोरी करवाई है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राफेल मामले में कोई न कोई करप्शन हुआ, कोई न कोई भ्रष्टाचार हुआ है।” राहुल के इस बयान ने भाजपा को सुनहरा मौका दे दिया और भाजपा ने उसे लपकने में कोई चूक नहीं की। भाजपा सांसद और वकील मीनाक्षी लेखी ने सुप्रीम कोर्ट में इस बयान को लेकर अवमानना याचिका दायर कर दी।
मामले में पेंच फंसता देख सोमवार को राहुल ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर खेद जताते हुए कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह का बयान उनमें मुंह से आवेशमें आकर निकल गया था। यह बात गलत है कि ऐसा उन्होंने जानबूझकर किया। वे कोर्ट का सम्मान करते हैं और अदालत की अवमानना के बारे में सोच भी नहीं सकते। राहुल ने कोर्ट में यह अंडरटेकिंग भी दी कि कोर्ट के हवाले से वे भविष्य में तब तक कोई राजनीतिक बयान नहीं देंगे जब तक कि कोर्ट ने वास्तव में वैसा न कहा हो।
निश्चित रूप से कोर्ट में इस तरह का हलफनामा देना राहुल की मजबूरी बन गई थी लेकिन ऐसा करके उन्होंने यह भी जता दिया कि उन्हें अपनी गलती मानने में कोई हिचक नहीं है। उनके इस कदम को लेकर लोग राहुल के बारे में कोई धारणा बनाते उससे पहले खुद राहुल ने ही सबकुछ गुड़गोबर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करने के चंद घंटों बाद ही वे अमेठी में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगाते और लगवाते पाए गए।
अब इससे पहले कि कोई यह तर्क दे कि चुनावी रैली में राहुल ने सुप्रीम कोर्ट का कोई जिक्र नहीं किया, कुछ बातों को ठीक से समझ लेना जरूरी है। पहला तो खुद सुप्रीम कोर्ट का ही मामला है। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई की प्रक्रिया में है और जब सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर यह कहा है कि उसने अभी तक राफेल डील में किसी को दोषी या चोर नहीं ठहराया है तो राहुल किस आधार पर राफेल का जिक्र करते हुए इस आशय की नारेबाजी करवा रहे हैं।
याद यह भी रखना होगा कि पिछले दिनों कांग्रेस ने रेडियो पर एक विज्ञापन चलवाया था जिसमें चौकीदार चोर है की लाइन को प्रमुखता से प्रचारित किया जा रहा था। भाजपा ने जब मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से इसकी शिकायत की थी तो वहां से इस विज्ञापन को प्रतिबंधित कर दिया गया था। अब जब सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाएं इस नारे या लाइन को गैरवाजिब मान रहे हैं तो सवाल सिर्फ इतना सा है कि क्या उनकी आपत्ति के बावजूद इस नारे का इस्तेमाल होना चाहिए?
राजनीतिक रूप से कहा जा सकता है कि कोई भी पार्टी अपना नारा गढ़ने के लिए स्वतंत्र है और चौकीदार चोर है वाले नारे में किसी का नाम नहीं लिया जा रहा, पर बात यदि इतनी ही सीधी और सरल होती तो फिर सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग को उसका संज्ञान नहीं लेना चाहिए था। उलटे मंगलवार को तो यह हुआ है कि राहुल के खेद वाले हलफनामे के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन्हें आपराधिक मानहानि के मामले में नोटिस जारी किया गया है।
और अकेले राहुल ही क्यों, हर पार्टी का नेता इस चुनाव में बढ़चढ़कर गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। चाहे वे आजम खान हो या उनके बेटे, बसपा सुप्रीमो मायावती हों या कांग्रेस नेता और पंजाब के मंत्री नवजोतसिंह सिद्धू… और अब तो यह सूची अंतहीन सी लगने लगी है। अब तक यह माना जाता रहा है कि चुनाव की पूरी प्रक्रिया का कर्ताधर्ता चुनाव आयोग ही है और वह आदर्श चुनाव आचार संहिता के अंतर्गत चुनावों की शुचिता और निष्पक्षता को निर्धारित करता है। पर 2019 के बाद से भारत के चुनाव इतिहास की यह स्थापित धारणा ध्वस्त होती लगती है…