भाषाओं से चिढ़ या मदरसों से

राकेश अचल 

भाजपा की खासियत है कि वो जहाँ भी सत्ता में आती है अपने आदिकालीन एजेंडे पर अमल करने से पीछे नहीं हटती। ये बात अलग है कि उसे कामयाबी मिलती है या नहीं। भाजपा की इस कर्मठता का मैं मुरीद हूँ। भाजपा ने अब असम में उर्दू की शिक्षा देने वाले मदरसों को बंद करने का निर्णय किया है, हालांकि असम सरकार ने उर्दू के साथ ही संस्कृत के भी सौ स्कूलों को बंद करने का फैसला किया है, ताकि कोई सरकार पर उंगली न उठा सके।

देश भर में मदरसे शुरू से विवादास्पद रहे हैं। भाजपा का तो मानना रहा है कि इन मदरसों में धार्मिक शिक्षा देने के बजाय आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है। भाजपा के सत्ता में आने से पहले देश में या प्रदेशों में जिस दल की भी सरकार रही, किसी ने मदरसों को बंद करने के बारे में नहीं सोचा, लेकिन भाजपा की कार्यसूची में मदरसों को बंद करना सबसे ऊपर है। मध्यप्रदेश में वर्षों पहले ये काम भाजपा सरकार चुपचाप कर चुकी है।

असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि नवंबर में सभी राज्य संचालित मदरसों को बंद करने के बारे में एक अधिसूचना जारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य में लगभग 100 संस्कृत स्कूल भी बंद हो जाएंगे। “सभी राज्य संचालित मदरसों को नियमित स्कूलों में परिवर्तित किया जाएगा या कुछ मामलों में शिक्षकों को राज्य संचालित स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा और मदरसों को बंद कर दिया जाएगा।”

देश में दो प्रकार की मदरसा शिक्षा प्रणाली के तहत संचालित मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 19132 है, जबकि 4878 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे भी संचालित हो रहे हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मदरसों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने के उद्देश्य से उनके आधुनिकीकरण और यहां पढ़ने वाले बच्‍चों का भविष्य संवारने के लिए गणित, विज्ञान, अंग्रेज़ी, कंप्यूटर और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाने की सिफ़ारिश की थी। मदरसा बोर्ड ने मदरसों के बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विषयवार और कक्षावार एनसीईआरटी की किताबें पाठ्यक्रम में शामिल करने और उर्दू के साथ हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम में भी पढ़ाई का प्रस्ताव भेजा था।

इससे पहले मदरसों में उर्दू, अरबी और फ़ारसी की ही पढ़ाई हो रही थी। लेकिन इस योजना के लिए सरकार की इच्छाशक्ति संदिग्ध नजर आती है, क्योंकि केंद्र सरकार स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसा (एसपीक्यूएम) यानी मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को 12 हज़ार और ग्रैजुएट शिक्षकों को 6 हज़ार प्रतिमाह मानदेय देती है। लेकिन ये मानदेय चाहे जब लटका दिया जाता है।

मदरसों को लेकर केंद्र की दोहरी नीति है। 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदरसों का आधुनिकीकरण करने का एजेंडा रखा था। इसके लिए उन्होंने बजट में 375 करोड़ रुपये का प्रावधान भी रखा था, लेकिन प्रकाश जावड़ेकर ने उसे कम कर 120 करोड़ कर दिया। यह रकम समूचे मदरसा शिक्षकों के वेतन के लिए बहुत कम है। समय पर वेतन न मिलने से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, और झारखंड समेत देश के 16 राज्यों के लगभग 50 हजार से अधिक मदरसा शिक्षकों की आर्थिक स्थिति ख़राब होती जा रही है।

मजे की बात ये है कि जो मदरसे सरकार के निशाने पर हैं उनके शिक्षकों की संख्या पूरे देश में 50 हज़ार है। सरकारी पोर्टल पर भी इन मदरसों के डेटा ऑनलाइन किए गए हैं। इनके आधुनिकीकरण के लिए करीब 1,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत है। यहां केवल मुसलमान शिक्षक ही नहीं हैं। इनमें करीब 20 फ़ीसदी शिक्षक हिंदू हैं। हाल के सालों में मदरसे लगातार सुर्खियों में रहे हैं। कई बार उन्‍हें चरमपंथ की पाठशाला कहा गया तो कभी उन्हें मुख्यधारा में लाने की बात हुई।

आम तौर पर कहा जाता है कि मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा देने वाले ये मदरसे बाकी दुनिया से कटे रहते हैं। लेकिन धीरे धीरे बदलाव की हवा वहां भी बहने लगी है। अब मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे भी स्मार्टफोन चलाते हैं। वहां कंप्यूटर आ गए हैं और कई जगह पर अंग्रेजी भी पढ़ाई जा रही है। लेकिन पिछले तीन सालों में उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या घट कर आधी रह गई है।

अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में थियोलोजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेहान अख्तर बताते हैं, “हम खुद मदरसे के पढ़े हुए हैं। लेकिन सरकार से मान्यता प्राप्त मदरसों में तमाम दिक्कतें हैं। वहां सरकार की पॉलिसी लागू करने की बात होती हैं जैसे कभी वन्दे मातरम, कभी उर्दू हटाओ। वरना इसके अलावा जो मदरसे हैं वहां बच्चे बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। ”असम से पहले यूपी में भाजपा की सरकार ने मदरसों की मान्यता की जांच की और 3,250 मदरसे हटा दिए गए। पहले प्रदेश में 19,125 मदरसे थे जो जांच के बाद केवल 13,296 रह गए।

असम के शिक्षा मंत्री कहते हैं कि, “मेरी राय में, कुरान का शिक्षण सरकारी धन की कीमत पर नहीं हो सकता है। अगर हमें ऐसा करना है तो हमें बाइबल और भगवद् गीता दोनों को भी सिखाना चाहिए। इसलिए हम एकरूपता लाना चाहते हैं और इस प्रथा को रोकना चाहते हैं।’’ अब ये राय मंत्री जी की अपनी है या उनकी पार्टी की ये कहना कठिन है। असम के राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड (एसएमईबी) के अनुसार, असम में 614 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। एसएमईबी की वेबसाइट के अनुसार, इनमें से 400 उच्च मदरसे हैं, 112 जूनियर उच्च मदरसे हैं और शेष 102 वरिष्ठ मदरसे हैं। कुल मान्यता प्राप्त मदरसों में से 57 लड़कियों के लिए हैं, 3 लड़कों के लिए हैं और 554 सह-शैक्षिक हैं। 17 मदरसे उर्दू माध्यम से चल रहे हैं।

मदरसे और संस्कृत स्कूल बंद होने से क्या ये दोनों भाषाएँ खत्म हो जाएंगी या धार्मिक शिक्षा प्रभावित होगी ये कहना कठिन है। आसान बात ये है कि हमारी शिक्षा नीति में भाषाओं के संवर्धन के लिए वैज्ञानिक सोच के बजाय फैसले राजनीतिक नजरिये से लिए जा रहे हैं। भाषाएँ वैसे ही अपनी मौत मर रही हैं, ऐसे में सरकार की नीतियां कोढ़ में खाज का काम कर रही हैं। इसका इलाज खोजा जाना चाहिए। अभी तो ये ही समझ नहीं आ रहा है कि सरकार को भाषा से चिढ़ है या फिर मदरसा शब्द से?

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