बुधवार को देश में स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 के नतीजे आए और मध्यप्रदेश के लिए यह गर्व की बात है कि उसके शहरों ने तीन अलग अलग श्रेणियों में देश में पहला स्थान पाया है। सबसे अव्वल दर्जा अपने इंदौर का रहा है जिसने देश के शहरों की समग्र सूची में लगातार तीसरे बार सबसे साफ सुथरे शहर का दर्जा हासिल करते हुए हेट्रिक लगाई है। देश की स्वच्छ राजधानियों की सूची में भोपाल अव्वल रहा है तो पांच लाख तक की आबादी वाले शहरों की सूची में धार्मिक नगरी उज्जैन ने पहला स्थान पाया है।
देश के सबसे साफ टॉप टेन शहरों की सूची के लिहाज से देखें तो इंदौर नंबर वन रहा है जबकि उज्जैन ने चौथा और देवास ने दसवां स्थान पाया है। इन्हें मिलाकर पहले सौ शहरों की सूची में मध्यप्रदेश कुल 20 शहर हैं इनमें भोपाल को 19वां स्थान मिला है। जबकि खरगोन-17, नागदा-18, सिंगरौली-21,जबलपुर-25, छिंदवाड़ा-26, नीमच-47, सागर-48, पीथमपुर-50, ग्वालियर-59, रतलाम-62, रीवा-75, दमोह-78, शिवपुरी-82, होशंगाबाद-87, खंडवा-93 और कटनी-97वें स्थान पर रहे हैं। राज्य रैंकिंग के हिसाब से मध्यप्रदेश देश में चौथे नंबर पर रहा है, जबकि हमारा सहोदर पड़ोसी छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर आया है।
निश्चित रूप से यह मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन की मशीनरी की सफलता तो है ही, उसके साथ ही प्रदेश में साफ सफाई के प्रति आई जनजागरूकता का नतीजा भी है। बल्कि मैं कहूंगा कि प्रशासनिक मशीनरी से भी ज्यादा श्रेय इस मामले में लोगों को की इच्छाशक्ति को दिया जाना चाहिए।
इंदौर का बाशिंदा होने के नाते मैं कह सकता हूं कि उस शहर को अव्वल लाना तो दूर सामान्य रूप से साफ रखना भी कितना मुश्किल था। लेकिन सरकारी अमले ने पहल की और शहर के लोगों ने उसे पूरा करने का बीड़ा उठा लिया। नतीजा आज पूरे देश के सामने है।
इसके समानांतर भोपाल ने देश की स्वच्छ राजधानियों की सूची में भले ही पहला नंबर पा लिया हो लेकिन पिछली बार पूरे भारत में सफाई के मामले में दूसरे नंबर पर रहा यह शहर बहुत नीचे खिसक कर 19वीं पायदान पर जा गिरा है। भोपाल के अलावा भी प्रदेश के कई ऐसे शहर हैं जो अपनी पिछली पायदान पर कायम नहीं रह सके। यानी इंदौर के लोगों ने सफाई को सिर्फ सालाना कर्मकांड की तरह नहीं लिया बल्कि उसे अपनी आदत बनाया और यही बात उन्हें देश में अव्वल बना गई।
अपने आसपास साफ सफाई रखने की बातें तो पीढि़यों से चली आ रही हैं लेकिन इस बात को मानना होगा कि सफाई को राजनीतिक एजेंडा बनाने का काम एनडीए सरकार ने किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से अपने भाषण में इसका जिक्र किया था। हालांकि उस समय एक तरह से खिल्ली उड़ाते हुए कहा गया था कि क्या अब भारत के प्रधानमंत्री के पास करने को यही मुद्दा रह गया है।
‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री ने देश के नाम अपने संदेश में कहा था कि हम, 02 अक्तूबर (2014) से भारत को स्वच्छ बनाने के लिए बड़े स्तर पर जन आंदोलन ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू कर रहे हैं। वर्ष 2019 में जब हम बापू की 150वीं जयंती मना रहे होंगे तो एक स्वच्छ भारतउनको सच्ची श्रद्धांजलि होगा। मैं, स्वच्छ भारत के निर्माण के इस सामूहिक प्रयास में आप सबकी भागीदारी और सक्रिय योगदान का अनुरोध करता हूं।”
राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन यदि कोई अच्छी शुरुआत हो रही हो तो उसकी सराहना भी की जानी चाहिए। करीब पांच साल पहले शुरू किए गए इस अभियान ने निश्चित रूप से लोगों में स्वच्छता के प्रति आग्रह पैदा किया है। यह दावा तो कोई नहीं कर सकता कि अब देश में गंदगी नहीं रही,लेकिन हां, सफाई के प्रति जागरूकता जरूर बढ़ी है।
जैसाकि आमतौर पर होता है, ऐसे अभियान राजनीतिक दुराग्रह और पूर्वग्रह का शिकार भी हो जाते हैं। आकाओं के सामने अपने नंबर बढ़वाने के लिए कुछ दुरुत्साही लोग दिखावा करने से बाज नहीं आते। स्वच्छ भारत अभियान के दौरान शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक यह भी बहुत हुआ कि हाथ में झाड़ू लेकर नेताओं ने फोटो सेशन करवाए और मीडिया में उन्हें प्रकाशित और प्रसारित करवाया।
लेकिन ऐसी तमाम कुचेष्टाओं और कमियों-कमजोरियों के बावजूद इस अभियान ने समाज पर अपना असर डाला है। 2016 से शुरू हुए स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर मजाक में एक बात और कही जाती है कि इसमें इतने तरह की श्रेणियां बना दी गई हैं कि सर्वे में शामिल शायद ही कोई ऐसा शहर बचे जिसे कुछ न कुछ उपलब्धि हासिल न हो।
पर यहां सवाल उपलब्धि हासिल होने या न होने का नहीं है। यदि अलग अलग श्रेणियों के बहाने ही सही, कोई भी शहर अपने यहां स्वच्छता के प्रति जागरूकता को प्रोत्साहित करने में कामयाब होता है, या उसकी नींव ही रख पाता है, तो यही बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज जब नीचे गिरने और गलत करने की होड़ चल रही हो, ऐसे में यदि किसी अच्छे काम के लिए शहरों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है तो उसे प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए।
आखिर में एक बार फिर अपने इंदौर की बात… इंदौर ने लगातार तीसरी बार स्वच्छता में अव्वल आकर अपनी संकल्पशक्ति का लोहा मनवा लिया है। मेरा सुझाव है कि अब इंदौरवासी एक संकल्प और लें कि वे देश में सबसे बेहतर ट्रैफिक वाला शहर बनकर दिखाएंगे। अभी इंदौर का ट्रैफिक देखकर मुंह से सिर्फ तौबा तौबा ही निकलता है। इंदौर के लोगों में वह जज्बा है कि वे इस नए संकल्प को पूरा करने की ठान लें तो उसमें भी कामयाब होकर दिखा सकते हैं। इसमें भी इंदौर को रोल मॉडल बनाएं। मुझे भरोसा है कि यह हो सकता है।
यही सुझाव भारत सरकार और राज्य सरकार के लिए भी है कि स्वच्छता अभियान की तरह शहरों में अब बेहतर यातायात व्यवस्था और ट्रैफिक जागरूकता का अभियान भी चलाया जाए। इस मामले में भी अखिल भारतीय सर्वे हो। संभव है एक नई प्रतिस्पर्धा के चलते धीरे धीरे शहरों का यातायात भी सुधरने लगे। जिस तरह लोगों ने साफ सफाई को आदत बनाया उसी तरह ट्रैफिक नियमों के पालन को भी वे अपनी आदत बना लें। यदि ऐसा हो पाया तो निश्चित रूप से शहरों का कायाकल्प हो जाएगा। इससे न सिर्फ कई दुर्घटनाएं होने से बचेंगी, बल्कि शहरों के पर्यावरण में भी अप्रत्याशित सुधार होगा।
हो सके तो आप भी इस विचार को आगे बढ़ाएं…