चोरी तो नीयत हुई है, गांठ में अब सीनाजोरी बची है

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के.एम. जोसेफ बुधवार को जब भारत के एटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से यह सवाल कर रहे थे कि क्‍या किसी भ्रष्‍टाचार की जांच सिर्फ इसलिए नहीं होनी चाहिए क्‍योंकि संबंधित सूचना देने वाला सोर्स असंवैधानिक है, तो वे न्‍याय, संविधान और मीडिया तीनों के संबंध में बहुत ही बुनियादी और नैतिक सवाल उठा रहे थे।

गुरुवार के अखबारों में यह खबर तो प्रमुखता से छपी है कि राफेल से संबंधित दस्‍तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी हो गए, लेकिन शायद बहुत सारे लोग इस चोरी की कहानी को ठीक से समझ नहीं पाए हैं। मैंने यूं ही इस खबर पर कुछ लोगों से बात की और सोशल मीडिया पर आने वाले कमेंट भी देखे, उससे लगा कि लोग मानकर चल रहे हैं कि कोई चोर रक्षा मंत्रालय में घुसा और वहां से राफेल से जुड़ी फाइलें चुरा लाया।

पर शायद बात ऐसी नहीं है। दरअसल जब से कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे में भ्रष्‍टाचार का मामला उठाया है, तब से, सरकार जहां इस आरोप को सिरे से खारिज कर रही है वहीं राहुल गांधी के अलावा कुछ और लोग भी हैं जो इस सौदे के सच को जानने की खोजबीन में लगे हैं। इनमें वकील,पत्रकार, राजनेता सभी शामिल हैं। इसी कड़ी में पिछले कुछ दिनों से ‘द हिन्‍दू’ अखबार में उसके चेयरमैन और वरिष्‍ठ पत्रकार एन.राम राफेल सौदे को लेकर कई खुलासे कर रहे हैं। ये वही हिन्‍दू अखबार और वही एन.राम हैं जिन्‍होंने राजीव गांधी के जमाने में बोफोर्स सौदे में दलाली का मामला जोरशोर से उठाया था।

अब जरा उस चोरी पर आ जाइए जिसका हवाला बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दिया गया। दरअसल हिन्‍दू अखबार में छपी रिपोर्ट्स के तथ्‍यों को लेकर सरकार की ओर से अपने बचाव में यह दलील दी गई कि ये जो जानकारियां छपी हैं ये रक्षा मंत्रालय में रखी राफेल सौदे की फाइलों की हैं। मतलब हिन्‍दू अखबार ने अपनी रिपोर्ट के लिए चोरी की है। मुझे अभी यह स्‍पष्‍ट नहीं हुआ है कि सरकार फाइलों में से जानकारी चुराने की बात कर रही है या फिर पूरी की पूरी फाइल ही चुरा लिए जाने की बात कह रही है।

जहां तक जानकारी चुराए जाने का सवाल है तो यह काम मंत्रालय का कोई ऐसा व्‍यक्ति ही कर सकता है जिसकी उन फाइलों तक पहुंच हो। और यदि पूरी की पूरी फाइल ही गायब कर दी गई है तो फिर शक की सुई उन लोगों तक जाती है जिनकी कस्‍टडी में ये फाइलें रहती हैं। ऐसे में प्रधान न्‍यायाधीश रंजन गोगोई का वेणुगोपाल से किया गया यह सवाल भी अहम है कि यदि राफेल के कागज चोरी हुए हैं और अखबारों ने चोरी किए हुए कागजों पर लेख लिखे हैं तो सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

दरअसल अब बात यह नहीं है कि रक्षा मंत्रालय से फाइल चोरी हुई या नहीं। और यह चोरी भी भौतिक रूप से फाइल की हुई या फिर उसमें दर्ज जानकारी किसी भी रूप में चुरा ली गई। चोरी का मामला तो सेकण्‍डरी है। मूल सवाल अब यह है कि चाहे चोरी से छपी हो या साहूकारी से, अखबार में जो जानकारी छपी है वह सही है या नहीं। सरकार का पहला दायित्‍व उस जानकारी के तथ्‍यों पर बात करने का है। जस्टिस जोसफ का यह सवाल भी मौजू है कि सबूत भले ही चोरी से जुटाया गया हो यदि उसमें दम है तो उसकी जांच क्‍यों नहीं होनी चाहिए।

इस मामले के तार मीडिया और अभिव्‍यक्ति की आजादी से इसलिए भी जुड़ते हैं क्‍योंकि अटॉर्नी जनरल ने अदालत से कहा कि अखबार ने कुछ गोपनीय जानकारियां सार्वजनिक कर दी हैं और इसलिए उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। वेणुगोपाल तो कोर्ट के कहने पर यह हलफनामा भी देने को राजी हो गए कि जो दस्तावेज न्यूज पेपर और न्यूज एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में इस्तेमाल किए हैं, वो चोरी किए गए हैं।

इस मामले में एन.राम का कहना है कि ”हमने रक्षा मंत्रालय से दस्तावेज़ चुराए नहीं हैं, हमें ये दस्तावेज़ गोपनीय सूत्रों से मिले हैं और इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी ताक़त नहीं है जो मुझे यह कहने पर मजबूर कर सके कि दस्तावेज किसने दिए हैं। जो रिपोर्ट हमने प्रकाशित की है वो जनहित में हमारी खोजी पत्रकारिता का हिस्सा है। रफ़ाल सौदे की अहम सूचनाओं को दबाकर रखा गया जबकि इन्‍हें सार्वजनिक करने की मांग संसद से लेकर सड़क तक होती रही।”

उधर सरकार के रवैये को लेकर संपादकों की संस्‍था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया में कहा है कि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का इस्तेमाल करना मीडिया की स्वतंत्रता के खिलाफ होगा। सरकार का ऐसा कोई भी कदम मीडिया को डराएगा और राफेल सौदे पर स्वतंत्र रिपोर्टिंग करने से भी रोकेगा। पत्रकारों से उनके स्रोतों का खुलासा करने के लिए कहना निंदनीय है।

अब आसार इस बात के अधिक हैं कि यह मामला आने वाले दिनों में देश में अभिव्‍यक्ति की आजादी और असहिष्‍णुता जैसे मुद्दों को फिर से बहस के केंद्र में ले आएगा। सरकार और सत्‍ता पक्ष तर्क देंगे कि क्‍या अब मीडिया खबरों के लिए चोरी चकारी भी करेगा? वहीं मीडिया के हिमायती और विपक्षी दलों का तर्क होगा कि जनहित में सच को सामने लाने के लिए जो भी जरूरी हो वह किया जाना चाहिए।

ऐसा लगता है कि राफेल मामले में सरकार बातों को जितना दबाने या छुपाने की कोशिश कर रही है उतना ही वह उलझती जा रही है। सरकार की ओर से संसद से लेकर सड़क तक इस मामले में कई बार कई तरह से सफाई दी जा चुकी है, लेकिन ऐसी तमाम कोशिशें कुंहासे को दूर करने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। और चोरी की बात कहकर तो सरकार ने खुद को और ज्‍यादा कठघरे में खड़ा कर लिया है। चोरी यदि हुई भी है तो नीयत की हुई है, इसे सीनाजोरी से ठीक नहीं किया जा सकता।

2 COMMENTS

  1. माननीय, चोरी तो चोरी है। फिर भले ही वह, चोरी राजनेता करें, न्यायाधीश करें या पत्रकार। चोरी के जेवर खरीदने वाले सुधार पर भी आईपीसी की धाराएं लगती हैं। अब ये मत कहिएगा कि एन राम तो इतने भोले पत्रकार हैं जिन्हें ओफिशियल सीक्रेट एक्ट और उसकी जद में आने वाले दस्तावेजों का भान नहीं। यह तर्क भी कुन्द ही है कि पत्रकारिता की राह में नियम-कानून की बाधा नहीं आ सकती।

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