अरविंद तिवारी

विद्यार्थी परिषद के जमाने से अभी तक मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के कई रंग देख चुके आरएसएस के एक खांटी का फायनल आब्जर्वेशन तो यह है कि शिवराज को समझना बड़ा मुश्किल है। एक नहीं अनेक उदाहरण देते हुए संघ के उक्त निष्ठावान ने बताया कि कुछ समय पहले तक जब शिवराज के भविष्य को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थी, तब वे सबको साध लेते थे। अब जब अपने राजनीतिक चातुर्य और आक्रामक शैली से वे सेफ जोन में आ गए हैं उन्हें किसी की परवाह ही नहीं है। कल तक जो खुद मुख्यमंत्री का खास मानते थे, वे ही अब उन्हें कोसते नजर आ जाते हैं।

वीडी के तेवर और संगठन का दबदबा

सरकार के आयोजनों में अपनी उपेक्षा से नाराज भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने अब तेवर दिखाना शुरू कर दिए हैं। अभी तक सरकार के साथ कदमताल कर रहे वीडी ने अब सरकार से जुड़े मुद्दों पर नजरें रखना शुरू कर दिया है। इसका असर यह हो रहा है कि सरकार से खफा लोग भी शर्मा के दरबार में फरियाद लेकर पहुंचने लगे हैं, इनमें कई मंत्री भी शामिल हैं। इन लोगों को अच्छी-खासी तवज्जो मिल रही है। शर्मा द्वय यानि वीडी और हितानंद की अगुवाई में संगठन ने अपना दबदबा दिखाना भी शुरू कर दिया है। दिक्कत यह है कि इन दोनों ने अपने तार सीधे दिल्ली दरबार से जोड़ रखे हैं और सरकार की बातें वहां पहुंचना भी शुरू हो गई हैं।

सेक्टर-मंडलम में बुरे फंसे एनपी प्रजापति

एक जमाना था जब एनपी प्रजापति की गिनती कमलनाथ के पंच प्यारों में होती थी। पहले सरकार और फिर संगठन से जुड़े हर निर्णय में प्रजापति भागीदार रहते थे। यही कारण है कि सेक्टर और मंडलम जैसा महत्वपूर्ण कार्य कमलनाथ ने उन्हें सौंपा था, लेकिन वे उनके भरोसे पर खरा नहीं उतर पाए। पिछले दिनों जब कमलनाथ जिलेवार मंडलम और सेक्टर के काम की समीक्षा करने बैठे तो उनकी आंखें फटी रह गईं। पता चला कि जिन लोगों को कागजों पर सेक्टर और मंडलम का पदाधिकारी बनाया गया है, उनमें से कई का अता-पता ही नहीं है और कुछ ऐसे निकले जिन्हें खुद यह पता नहीं था कि वे पदाधिकारी बना दिए गए हैं।

संघ की नजरें और सुलेमान का नुकसान

इकबालसिंह बैंस के उत्तराधिकारी का फैसला तो 15 नवंबर के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इतना जरूर सुनने में आ रहा है कि मोहम्मद सुलेमान के मुकाबले अनुराग जैन के अभी तक आगे निकलने का एक बड़ा कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सक्रिय होना माना जा रहा है। अगले साल चुनाव होना है और म.प्र. में जो हालत है, उसमें संघ की मदद से ही भाजपा की नैया पार होना है। ऐसे में संघ को अनदेखा करना बड़ा मुश्किल है। सुलेमान को लेकर संघ का एक अलग नजरिया है और वही उनके लिए परेशानी का कारण बन गया है। कोशिश सुलेमान के शुभचिंतकों की ओर से संघ को साधने की भी हुई थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। वैसे मुख्यमंत्री ने अभी सारे विकल्प खुले रखे हैं।

सीएम हाउस में नई इंट्री

लोकेश शर्मा भले ही घोषित तौर पर अटलबिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान के अपर मुख्य कार्यपालन अधिकारी हों, लेकिन वे अघोषित तौर पर मुख्यमंत्री के खास सलाहकार की भूमिका में हैं। इन दिनों मुख्यमंत्री सचिवालय में वे बेहद सक्रिय हैं और मुख्यमंत्री उनकी राय को बहुत तवज्जो भी दे रहे हैं। कहा ये जा रहा है कि जिन मामलों में शर्मा की विशेषज्ञता है, उन मामलों में सचिवालय के दूसरे अफसर ज्यादा प्रभावी साबित नहीं हो रहे थे, इसी का फायदा इन्हें मिल रहा है। शर्मा का सरकार में जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों के साथ ही मुख्यमंत्री की मीडिया टीम के साथ ही बहुत अच्छा तालमेल है।

इनकी पटरी नहीं बैठी, उन्होंने फैसला कर दिया

जनवरी में इंदौर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन और इन्वेस्टर समिट होना है। इस आयोजन में उद्योग नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग के प्रमुख सचिव संजय शुक्ला और औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध संचालक जॉन किंग्सली की भूमिका सबसे अहम थी। रविवार रात आला अफसरों के फेरबदल में इन दोनों अफसरों को दूसरे महकमों में भेज दिया गया है। चौंकना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। पता चला है कि शुक्ला और किंग्सली की पटरी बैठ नहीं रही थी और इसका सीधा असर दोनों महत्वपूर्ण आयोजनों की तैयारी पर पड़ रहा था। रास्ता यह निकाला गया कि दोनों को ही तत्काल इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाए।

मनीष सिंह से ज्यादा चौंकाने वाला है इलैया राजा का इंदौर आना

इंदौर के कलेक्टर के रूप में शानदार पारी खेलने के बाद मनीष सिंह फिर महत्वपूर्ण भूमिका में आ गए हैं। लेकिन उनका एकाएक तबादले का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा है। यह चर्चा जरूर थी कि फरवरी या मार्च में जब भी वह जाएंगे आशीष सिंह, अविनाश लवानिया या चंद्रमौली शुक्ला में से कोई उन्हें रिप्लेस करेगा। लेकिन सरकार ने बहुत ही चौंकाने वाला निर्णय लेते हुए बेहद साफ-सुथरी छवि वाले इलैया राजा को इंदौर भेज दिया‌। कहा यह जा रहा है कि इस फैसले में बड़े साहब की भी बड़ी भूमिका रही है। यह फैसला जबलपुर के भाजपा नेताओं के लिए भी कम चौंकाने वाला नहीं है जो इलैया राजा को लूप लाइन में देखना चाहते थे।

चलते-चलते

– संवाद, सौम्यता और समन्वय हमेशा सीनियर आईएएस अफसर नीरज मंडलोई का मजबूत पक्ष साबित होता है। यही कारण है कि चाहे कमलनाथ मुख्यमंत्री रहे हों या फिर शिवराजसिंह चौहान, मंडलोई हमेशा पावरफुल ही रहे हैं। खनिज और पीडब्ल्यूडी जैसे बड़े महकमों में सफल पारी के बाद ताजा बदलाव में भी उन्हें नगरीय प्रशासन और विकास जैसे बड़े और सीधे जनता से जुड़े महकमे की कमान सौंपी गई है।

– अगले कुछ महीनों में इंदौर के पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्रा नई भूमिका में दिख सकते हैं। देखना यह है कि मिश्रा के स्थान पर इंदौर में किसे मौका मिलता है। वैसे फेहरिस्त बहुत लंबी है और अनुशंसा करने वाले दिग्गज भी बहुत उम्मीद पाल के बैठे हैं।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्‍ट से साभार)
(मध्‍यमत)
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