गिरीश उपाध्याय
नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का पुनर्गठन हो जाने के बाद अधिकांश नए मंत्रियों ने अपने अपने मंत्रालय का कार्यभार संभाल लिया है। मीडिया में नए मंत्रियों के इंटरव्यू और उनकी भावी योजना संबंधी बयान छप रहे हैं। लेकिन इन सारी उत्सवी और कर्मकांडी गतिविधियों के बीच भाजपा का एक पुराना नारा रह रहकर याद आता है। वो नारा जिसमें कभी राजनीति की चाल, चरित्र और चेहरा बदलने की बात कही गई थी।
जब भी कोई व्यक्ति नया पद या जिम्मेदारी संभालता है तो उसके पास कहने को बहुत सारी आदर्शवादी बातें होती हैं। ज्यादातर ये बातें परंपरागत रूप से चले आ रहे बयानों की जुगाली से अलग नहीं होतीं। नए मंत्री भी कमोबेश वे ही बातें दोहराते हैं जो कभी उन नेताओं ने भी मंत्री बनने पर कही थीं जो अब हटा दिए गए हैं। नई जिम्मेदारी मिलने पर उत्साहित होना और नए जोश से काम करने की बात कहना स्वाभाविक भी है। लेकिन दिक्कत हमेशा से यही होती आई है कि यह सारा उत्साह, सारा जोश जल्दी ही ठंडा पड़ जाता है और पूरा कामकाज एक बार फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगता है।
नरेंद्र मोदी ने जब प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर अपना पहला मंत्रिमंडल गठित किया था तब उनके बारे में कहा गया था कि वे राजनेता होने के साथ साथ बहुत सख्त और अनुशासनप्रिय प्रशासक हैं। उनके बारे में यह भी प्रचलित है कि वे 24 घंटे में से 18 घंटे तक काम करते हैं। यानी सरकार का नेतृत्वकर्ता जब खुद अपने आपको काम में खपाए रखता हो तो उसकी टीम से अपेक्षा और बढ़ जाती है। मोदी सरकार के शुरुआती दिनों में यह बात भी बहुत जोर शोर से कही गई थी कि उनके साथ काम करने वाले मंत्रियों और नौकरशाहों को अब अपनी कार्यशैली में आमूल चूल परिवर्तन लाना होगा। सरकार के आरंभिक दौर में यह बात दिखाई भी दी थी लेकिन धीरे धीरे उसमें ढिलाई आती गई।
दरअसल होता यह है कि नेता अपने सहयोगियों से जो अपेक्षा रखता है वह उसका अपना नजरिया और काम करने का अपना तरीका होता है। यह उन लोगों पर निर्भर करता है, जो उसकी टीम का हिस्सा बने हैं, कि वे अपने काम को अपने नेता की इच्छा और मंशा के अनुरूप अंजाम दें। सरकार कोई भी हो उसका मूल काम सिर्फ एक तंत्र को चलाना नहीं बल्कि जनता के दुख दर्द को समझना और उसे दूर करना है। इसके लिए पूरी संवेदनशीलता के साथ काम के प्रति पूरी निष्ठा और पूरा समर्पण भी चाहिए। अन्यथा न सिर्फ नेतृत्व बल्कि पूरी सरकार पर ही सवाल खड़े होने लगते हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में जिन लोगों को जो भी जिम्मेदारी मिली है उनसे अपेक्षा यही है कि वे जबानी जमाखर्च में उलझने के बजाय जमीनी परिणामों पर ध्यान दें। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए मंत्रियों से बातचीत करते हुए अपेक्षा की है कि वे फिजूल के बयानों से बचें, समय से मंत्रालय पहुंचें और मीडिया में चेहरा चमकाने के दुष्चक्र में फंसने के बजाय अपनी पूरी ऊर्जा काम पर लगाएं।
देखा जाए तो प्रधानमंत्री की अपने मंत्रियों से यह अपेक्षा बहुत सामान्य बात है। वैसे तो मंत्रियों को ऐसी नसीहत दिए जाने की नौबत ही नहीं आनी चाहिए थी, लेकिन शायद प्रधानमंत्री के अपने अनुभवों ने उन्हें अपने मंत्रियों को यह नसीहत देने पर मजबूर किया होगा। इस नसीहत में प्रधानमंत्री की पीड़ा भी झलकती है कि मंत्री अपने कामकाज पर ध्यान देने के बजाय बेकार की बातों में ज्यादा उलझते रहते हैं। सबसे बड़ी बात चेहरा चमकाने की होड़ की है। आने वाले दिनों में हम देखेंगे कि नया पद या नई जिम्मेदारी पाने वाले नेता अपने अपने क्षेत्रों में दौरा करेंगे, वहां एक तरह का शक्ति और प्रभाव प्रदर्शन होगा। उनकी स्वागत रैलियां निकलेंगी, शहरों कस्बों की सड़कें उनके स्वागत और अभिनंदन के इश्तहारों वाले बैनर व होर्डिंग से पाट दी जाएंगी। यही होता आया है और यही होगा भी…
जरूरत इस बात की है कि मंत्री समय की नजाकत, प्रधानमंत्री की नसीहत और अपनी जिम्मेदारी को पूरी गंभीरता से समझें। यह कोरोना महामारी का विकट समय है। ऐसे समय में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन तो अनिवार्य है ही साथ ही किसी भी प्रकार की फिजूलखर्ची भी अनावश्यक है। प्रधानमंत्री को जो कहना था वो उन्होंने इशारों इशारों में सब कह दिया है अब बारी मंत्रियों की है कि वे प्रधानमंत्री की मंशा पर खरा उतरें। अपनी वाहवाही और अपना चेहरा चमकाने के बजाय अपने मंत्रालय में पुख्ता कार्यसंस्कृति विकसित करें।
महत्व व्यक्ति का नहीं संस्था का होता है। व्यक्ति रहे न रहे पर संस्था बिना बाधा के चलती रहे इसके लिए ठोस कार्यसंस्कृति का विकसित होना बहुत जरूरी है। बयानों के महल खड़े करने के बजाय परिणामों के पायदान तय किए जाएं। तभी जनता को भी बदलाव का असर महसूस हो सकेगा। वरना मक्खी की जगह मक्खी बिठाने से कोई बात नहीं बनती। मंत्रिमंडल के पुनर्गठन का उद्देश्य बेहतर कार्यसंस्कृति का विकास, परिणामोन्मुखी प्रशासन और लोगों के साथ पूरी संवेदनशीलता के साथ न्याय करते हुए उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। इसके लिए काम करके दिखाना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए मंत्री और मंत्रालयों के नए मुखिया अपने स्वागत सत्कार के बीच इस बात को अच्छी तरह समझ रहे होंगे… (मध्यमत)
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