श्रद्धांजलियों के दौर में एक कविता

गिरीश उपाध्‍याय 
मेरे लिए
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बचा कर रखना तुम
मेरे लिए
थोड़ा सा गुड़, थोड़ी सी इमली
पूछे अगर कोई
कैसा था वो आदमी
तो बता सको, मेरा स्वाद
सहेज कर रखना तुम
थोड़ी सी चुभन, थोड़ी सी छुअन
पूछे अगर कोई
कैसा था वो आदमी
तो बता सको, मेरा स्पर्श
समेट कर रखना तुम
थोड़ी सी तपन, थोड़ी सी ठंडक
पूछे अगर कोई
कैसा था वो आदमी
तो बता सको मेरी तासीर
बीन कर रखना तुम
कुछ शब्द अपनी पोटली में
कहना पड़े तुम्हें कुछ यदि
मेरे जाने के बाद, मेरे बारे में
तो… कॉपी पेस्ट मत करना
‘विनम्र श्रद्धांजलि’
न ही चाहना मेरी ‘आत्मा की शांति’
नहीं चाहिये मुझे
कोई श्रद्धांजलि
और न मेरी आत्मा को शांति
चाहूंगा मैं, अतृप्त रहे मेरी आत्मा
बनी रहे जिसमें हमेशा
तुम्हारी और तुम्हारे अपनेपन की प्यास
तुम सिर्फ इतना भर कह देना
हां, जानता था मैं उसे
मेरा अपना था वो
बस…
तर जाऊंगा मैं
खाली होकर भी
भर जाऊंगा मैं…

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